Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
हे धीर! हे मुनिवर! ग्रह्यां-छोड्यां शरीर अनेक तें,
तेनुं नथी परिमाण कंई निःसीम भवसागर विषे. २४.
विष-वेदनाथी, रक्तक्षय-भय-शस्त्रथी, संक्लेशथी,
आयुष्यनो क्षय थाय छे आहार-श्वासनिरोधथी; २५.
हिम-अग्नि-जळथी, उच्च-पर्वतवृक्षरोहणपतनथी,
अन्याय-रसविज्ञान-योगप्रधारणादि प्रसंगथी. २६.
हे मित्र! ए रीत जन्मीने चिर काळ नर-तिर्यंचमां,
बहु वार तुं पाम्यो महादुख आकरां अपमृत्युनां. २७.
छासठ हजार त्रिशत अधिक छत्रीश तें मरणो कर्यां
अंतर्मुहूर्तप्रमाण काळ विषे निगोदनिवासमां. २८.
रे! जाण एंशी साठ चाळीश क्षुद्रभव विकलेंद्रिना,
अंतर्मुहूर्ते क्षुद्रभव चोवीश पंचेन्द्रिय तणा. २९.
वण रत्नत्रयप्राप्ति तुं ए रीत दीर्घ संसारे भम्यो,
भाख्युं जिनोए आम; तेथी रत्नत्रयने आचरो. ३०.
निज आत्ममां रत जीव जे ते प्रगट सम्यग्द्रष्टि छे,
तद्बोध छे सुज्ञान, त्यां चरवुं चरण छे;मार्ग ए. ३१.
१. विष-वेदनाथी = झेर खावाथी तथा पीडाथी.
२. आहार-श्वासनिरोध = आहारनो ने श्वासनो निरोध.
३. उच्च-पर्वतवृक्षरोहणपतनथी = ऊंचा पर्वत ने वृक्ष पर चडतां पडी
जवाथी.
४. तद्बोध = तेनुं ज्ञान; निज आत्माने जाणवुं ते.
५. चरण = चारित्र; सम्यक्चारित्र.
अष्टप्राभृत-भावप्राभृत ]
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