Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
सौथी भले हो हीन, रूपविरूप, यौवनभ्रष्ट हो,
मानुष्य तेनुं छे सुजीवित, शील जेनुं सुशील हो. १८.
प्राणीदया, दम, सत्य, ब्रह्म, अचौर्य ने संतुष्टता,
सम्यक्त्व, ज्ञान, तपश्चरण छे शीलना परिवारमां. १९.
छे शील ते तप शुद्ध, ते द्रगशुद्धि, ज्ञानविशुद्धि छे,
छे शील अरि विषयो तणो ने शील शिवसोपान छे. २०.
विष घोर जंगम-स्थावरोनुं नष्ट करतुं सर्वने,
पण विषयलुब्ध तणुं विघातक विषयविष अतिरौद्र छे. २१.
विषवेदनाहत जीव एक ज वार पामे मरणने,
पण विषयविषहत जीव तो संसारकांतारे भमे. २२.
बहु वेदना नरको विषे, दुःखो मनुज-तिर्यंचमां,
देवेय दुर्भगता लहे विषयावलंबी आतमा. २३.
१०तुष दूर करतां जे रीते कं ११द्रव्य नरनुं न जाय छे,
तपशीलवंत १२सुकुशल, १३खळ माफक, विषयविषने तजे. २४.
१. हीन = हीणा (अर्थात् कुलादि बाह्य संपत्ति अपेक्षाए हलका).
२. रूपविरूप = रूपे विरूप; रूप-अपेक्षाए कुरूप.
३. मानुष्य = मनुष्यपणुं (अर्थात् मनुष्यजीवन).
४. सुजीवित = सारी रीते जिवायेलुं; प्रशंसनीयपणे
सफळपणे जीववामां
आवेलुं.५. अरि = वेरी; शत्रु.
६. शिवसोपान = मोक्षनुं पगथियुं.
७. विषयलुब्ध तणुं विघातक = विषयलुब्ध जीवोनो घात करनारुं (अर्थात् तेमनुं
अत्यंत बूरुं करनारुं). ८. संसारकांतारे = संसाररूपी मोटा भयंकर वनमां.
९. दुर्भगता = दुर्भाग्य. १०. तुष दूर करतां = धान्यमांथी फोतरां वगेरे कचरो
काढी नाखतां.११. द्रव्य = वस्तु (अर्थात् धान्य).
१२. सुकुशल = कुशळ अर्थात् प्रवीण पुरुष. १३. खळ = वस्तुनो रसकस
विनानो नकामो भागकचरो; सत्त्व काढी लेतां बाकी रहेता कूचा.
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[ शास्त्र-स्वाध्याय