Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
छे भद्र, गोळ, विशाळ ने खंडात्म अंग शरीरमां,
ते सर्व होय सुप्राप्त तोपण शील उत्तम सर्वमां. २५.
दुर्मतविमोहित विषयलुब्ध जनो इतरजन साथमां
अरघट्टिकाना चक्र जेम परिभ्रमे संसारमां. २६.
जे कर्मग्रंथि विषयरागे बद्ध छे आत्मा विषे,
तपचरण-संयम-शीलथी सुकृतार्थ छेदे तेहने. २७.
तप-दान-शील-सुविनयरत्नसमूह सह, जलधि समो,
सोहंत जीव सशील पामे श्रेष्ठ शिवपदने अहो! २८.
देखाय छे शुं मोक्ष स्त्री-पशु-गाय-गर्दभ-श्वाननो?
जे तुर्यने साधे, लहे छे मोक्ष;देखो सौ जनो. २९.
जो मोक्ष साधित होत विषयविलुब्ध ज्ञानधरो वडे,
दशपूर्वधर पण सात्यकिसुत केम पामत नरकने? ३०.
जो शील विण बस ज्ञानथी कही होय शुद्धि ज्ञानीए,
दशपूर्वधरनो भाव केम थयो नहीं निर्मळ अरे? ३१.
विषये विरक्त करे सुसह अति-उग्र नारकवेदना
ने पामता अर्हंतपद;वीरे कह्युं जिनमार्गमां. ३२.
अत्यक्ष-शिवपदप्राप्ति आम घणा प्रकारे शीलथी
प्रत्यक्षदर्शनज्ञानधर लोकज्ञ जिनदेवे कही. ३३.
१. अरघट्टिका = रेंट.२. सोहंत = सोहतो; शोभतो.
३. जीव सशील = शीलसहित जीव; शीलवान जीव.
४. तुर्यने = चतुर्थने (अर्थात् मोक्षरूप चोथा पुरुषार्थने).
५. विषयविलुब्ध = विषयलुब्ध; विषयोना लोलुप.
६. विषये विरक्त = विषयविरक्त जीवो.
७. सुसह = सहेलाईथी सहन थाय एवी (अर्थात् हळवी).
८. अत्यक्ष = अतींद्रिय; इंद्रियातीत.
अष्टप्राभृत-शीलप्राभृत ]
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