श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
श्री
इष्टोपदेश
(पद्यानुवाद)
(दोहरा)
सकल कर्मनो क्षय करी, पाम्या स्वयं स्वभाव,
सर्वज्ञानी परमात्मने, नमुं करी बहु भाव. १.
योग्य उपादाने करी पथ्थर सोनुं थाय;
तेम सुद्रव्यादि करी, जीव शुद्ध थई जाय. २.
छाया आतप स्थित जो, जन पामे सुख दुःख;
तेम देवपद व्रत थकी, अव्रते नारक दुःख. ३.
आत्मभावथी मोक्ष ज्यां, त्यां स्वर्ग शुं दूर?
भार वहे जे कोश बे, अर्ध कोश शुं दूर? ४.
इन्द्रियजन्य निरामयी, दीर्घकाल तक भोग्य;
भोगे सुरगण स्वर्गमां सौख्य सुरोने योग्य. ५.
सुख-दुःख संसारीनां, वासनाजन्य तुं मान,
आपदमां दुखकार ते, भोगो रोग समान. ६.
मोहे आवृत ज्ञान जे, पामे नहीं निजरूप;
कोद्रवथी जे मत्त जन, जाणे न वस्तुस्वरूप. ७.
तन, धन, घर, स्त्री, मित्र-अरि, पुत्रादि सहु अन्य,
परभावोमां मूढ जन, माने तेह अनन्य. ८.
ॐ