Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
भिन्न परात्मा सेवीने तत्सम परम थवाय;
भिन्न दीपने सेवीने बत्ती दीपक थाय. ९७.
अथवा निजने सेवीने जीव परम थई जाय;
जेम वृक्ष निजने मथी पोते पावक थाय. ९८.
एम निरंतर भाववुं पद आ वचनातीत;
पमाय जे निजथी ज ने पुनरागमन रहित. ९९.
चेतन भूतज होय तो मुक्ति अयत्न ज होय,
नहि तो मुक्ति योगथी, योगीने दुख नो’य. १००.
स्वप्ने द्रष्ट विनष्ट हो पण जीवनो नहि नाश;
जागृतिमां पण तेम छे, भ्रम उभयत्र समान. १०१.
अदुःखभावित ज्ञान तो दुख आव्ये क्षय थाय;
दुःख सहित भावे स्वने यथाशक्ति मुनिराय. १०२.
इच्छादिज निज यत्नथी वायुनो संचार;
तेनाथी तनयंत्र सौ वर्ते निज व्यापार. १०३.
जड निजमां तनयंत्रने आरोपी दुखी थाय;
सुज्ञ तजी आरोपने लहे परमपद-लाभ. १०४.
जाणी समाधितंत्र आज्ञानानंद-उपाय,
जीव तजे ‘हुं’बुद्धिने देहादिक परमांय;
छोडी ए भवजननीने, थई परमातमलीन,
ज्योतिर्मय सुखने लहे, धरे न जन्म नवीन. १०५.
१. बत्ती = दिवेट. २. पावक = अग्नि.
३. भूतज = पृथ्वी, पाणी, तेज अने वायुरूप भूतोमांथी उत्पन्न थयेलुं.
४. उभयत्र = बन्ने बाजुए.
समाधितंत्र ]
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