Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
द्रश्यमान देहादिनो, मूढ करे उपकार;
त्यागी पर-उपकारने, कर निजनो उपकार. ३२.
गुरु-उपदेश, अभ्यास ने संवेदनथी जेह,
जाणे निज-पर भेदने, वेदे शिव-सुख तेह. ३३.
निज हित अभिलाषी स्वयं, निज हित नेता आत्म,
निज हित प्रेरक छे स्वयं, आत्मानो गुरु आत्म. ३४.
मूर्ख न ज्ञानी थई शके, ज्ञानी मूर्ख न थाय;
निमित्तमात्र सौ अन्य तो, धर्मद्रव्यवत् थाय. ३५.
क्षोभरहित एकान्तमां स्वरूपस्थिर थई खास,
योगी तजी परमादने करे तुं तत्त्वाभ्यास. ३६.
ज्यम ज्यम संवेदन विषे आवे उत्तम तत्त्व,
सुलभ मळे विषयो छतां, जरीये करे न ममत्व. ३७.
जेम जेम विषयो सुलभ, पण नहि रुचिमां आय,
त्यम त्यम आतमतत्त्वमां, अनुभव वधतो जाय. ३८.
इंद्रजाल सम देख जग, आतमहित चित्त लाय,
अन्यत्र चित्त जाय जो, मनमां ते पस्ताय. ३९.
चाहे गुप्त निवासने, निर्जन वनमां जाय,
कार्यवश जो कंई कहे, तुर्त ज भूली जाय. ४०.
देखे पण नहीं देखता, बोले छतां अबोल,
चाले छतां न चालता, तत्त्वस्थित अडोल. ४१.
कोनुं, केवुं, क्यां कहीं,आदि विकल्प विहीन,
जाणे नहि निज देहने, योगी आतम-लीन. ४२.
इष्टोपदेश ]
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