Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
व्यवहारिक धंधे फस्या, करे न आतमज्ञान;
ते कारण जगजीव ते, पामे नहि निर्वाण. ५२.
शास्त्रपाठी पण मूर्ख छे, जे निजतत्त्व अजाण;
ते कारण ए जीव खरे, पामे नहि निर्वाण. ५३.
मन-इन्द्रियथी दूर था, शी बहु पूछे वात?
रागप्रसार निवारतां, सहज स्वरूप उत्पाद. ५४.
जीव-पुद्गल बे भिन्न छे, भिन्न सकळ व्यवहार;
तज पुद्गल ग्रह जीव तो, शीघ्र लहे भवपार. ५५.
स्पष्ट न माने जीवने, जे नहि जाणे जीव;
छूटे नहि संसारथी, भाखे छे प्रभु जिन. ५६.
रत्न दीप रवि दूध दहीं, घी पथ्थर ने हेम;
स्फटिक रजत ने अग्नि नव, जीव जाणवो तेम. ५७.
देहादिकने पर गणे, जेम शून्य आकाश;
तो पामे परब्रह्म झट, केवळ करे प्रकाश. ५८.
जेम शुद्ध आकाश छे, तेम शुद्ध छे जीव;
जडरूप जाणो व्योमने, चैतन्यलक्षण जीव. ५९.
ध्यान वडे अभ्यंतरे, देखे जे अशरीर;
शरमजनक जन्मो टळे, पीए न जननीक्षीर. ६०.
तनविरहित चैतन्यतन, पुद्गल-तन जड जाण;
मिथ्या मोह दूरे करी, तन पण मारुं न मान. ६१.
निजने निजथी जाणतां, शुं फळ प्राप्त न थाय?
प्रगटे केवळज्ञान ने शाश्वत सुख पमाय. ६२.
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[ शास्त्र-स्वाध्याय