Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
कहुं अनादि बिन निमित्त ही, उलट रह्यो उपयोग;
ऐसी बात न संभवै, उपादान तुम जोग. २०.
उपादान कहे रे निमित्त, हमपै कही न जाय;
ऐसे ही जिन केवली, देखै त्रिभुवनराय. २१.
जो देख्यो भगवानने, सो ही सांचो आहि;
हम तुम संग अनादिके, बली कहोगे काहि. २२.
उपादान कहे वह बली, जाको नाश न होय;
जो उपजत विनशत रहै, बली कहांतें सोय. २३.
उपादान तुम जोर हो, तो क्यों लेत अहार?
परनिमित्तके योगसों, जीवत सब संसार. २४.
जो अहारके जोगसों, जीवत हैं जगमाहिं;
तो वासी संसारके, मरते कोऊ नाहिं. २५.
सूर सोम मणि अग्निके, निमित लखैं ये नैन;
अंधकारमें कित गयो, उपादान द्रग दैन. २६.
सूर सोम मणि अग्नि जो, करैं अनेक प्रकाश;
नैनशक्ति बिन ना लखै, अंधकार सम भास. २७.
कहै निमित्त वे जीव को मो बिन जगके माहिं?
सबै हमारे वश परे, हम बिन मुक्ति न जाहिं. २८.
उपादान कहै रे निमित्त! ऐसे बोल न बोल;
तोको तज निज भजत हैं, तेही करैं किलोल. २९.
कहै निमित्त हमको तजे, ते कैसें शिव जात?
पंचमहाव्रत प्रगट हैं, और हु क्रिया विख्यात. ३०.
उपादान-निमित्तसंवाद ][ १९३