Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
यह निमित्त इह जीवको, मिल्यो अनंती बार;
उपादान पलट्यो नहीं, तौ भटक्यो संसार. ९.
कै केवलि कै साधुके, निकट भव्य जो होय;
सो क्षायक सम्यक् लहै, यह निमित्तबल जोय. १०.
केवलि अरु मुनिराजके, पास रहैं बहु लोय;
पै जाको सुलट्यो धनी, क्षायक ताको होय. ११.
हिंसादिक पापन किये, जीव नर्कमें जाहिं;
जो निमित्त नहिं कामको, तो इम काहे कहाहिं. १२.
हिंसामें उपयोग जिहं, रहै ब्रह्मके राच;
तेई नर्कमें जात हैं, मुनि नहिं जाहिं कदाच. १३.
दया दान पूजा किये, जीव सुखी जग होय;
जो निमित्त झूठो कहो, यह क्यों मानै लोय. १४.
दया दान पूजा भली, जगत मांहिं सुखकार;
जहँ अनुभवको आचरन, तहँ यह बंध विचार. १५.
यह तो बात प्रसिद्ध है, सोच देख उरमाहिं;
नरदेहीके निमित्त बिन, जिय क्यों मुक्ति न जाहिं. १६.
देह पींजरा जीवको, रोकै शिवपुर जात;
उपादानकी शक्तिसों, मुक्ति होत रे भ्रात! १७.
उपादान सब जीवपै, रोकनहारो कौन;
जाते क्यों नहिं मुक्तिमें, बिन निमित्तके हौन. १८.
उपादान सु अनादिको, उलट रह्यो जगमाहिं;
सुलटत ही सूधे चले, सिद्धलोकको जाहिं. १९.
१९२ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय