Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
आत्मा करे निजने ज ए मंतव्य निश्चयनय तणुं,
वळी भोगवे निजने ज आत्मा एम निश्चय जाणवुं. ८३.
आत्मा करे विधविध पुद्गलकर्ममत व्यवहारनुं,
वळी ते ज पुद्गलकर्म आत्मा भोगवे विधविधनुं. ८४.
पुद्गलकरम जीव जो करे, एने ज जो जीव भोगवे,
जिनने असंमत द्विक्रियाथी अभिन्न ते आत्मा ठरे. ८५.
जीवभाव, पुद्गलभावबन्ने भावने जेथी करे,
तेथी ज मिथ्याद्रष्टि एवा द्विक्रियावादी ठरे. ८६.
मिथ्यात्व जीव अजीव द्विविध, एम वळी अज्ञान ने
अविरमण, योगो, मोह ने क्रोधादि उभयप्रकार छे. ८७.
मिथ्यात्व ने अज्ञान आदि अजीव, पुद्गलकर्म छे;
अज्ञान ने अविरमण वळी मिथ्यात्व जीव, उपयोग छे. ८८.
छे मोहयुत उपयोगना परिणाम त्रण अनादिना,
मिथ्यात्व ने अज्ञान, अविरतभाव ए त्रण जाणवा. ८९.
एनाथी छे उपयोग त्रणविध, शुद्ध निर्मळ भाव जे;
जे भाव कंई पण ते करे, ते भावनो कर्ता बने. ९०.
जे भाव जीव करे अरे! जीव तेहनो कर्ता बने;
कर्ता थतां, पुद्गल स्वयं त्यां कर्मरूपे परिणमे. ९१.
परने करे निजरूप ने निज आत्मने पण पर करे,
अज्ञानमय ए जीव एवो कर्मनो कारक बने. ९२.
परने न करतो निजरूप, निज आत्मने पर नव करे,
ए ज्ञानमय आत्मा अकारक कर्मनो एम ज बने. ९३.
श्री समयसार-पद्यानुवाद ]
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