श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
‘हुं क्रोध’ एम विकल्प ए उपयोग त्रणविध आचरे,
त्यां जीव ए उपयोगरूप जीवभावनो कर्ता बने. ९४.
‘हुं धर्म आदि’ विकल्प ए उपयोग त्रणविध आचरे,
त्यां जीव ए उपयोगरूप जीवभावनो कर्ता बने. ९५.
जीव मंदबुद्धि ए रीते परद्रव्यने निजरूप करे,
निज आत्मने पण ए रीते अज्ञानभावे पर करे. ९६.
ए कारणे आत्मा कह्यो कर्ता सहु निश्चयविदे,
— ए ज्ञान जेने थाय ते छोडे सकल कर्तृत्वने. ९७.
घट-पट-रथादिक वस्तुओ, करणो अने कर्मो वळी,
नोकर्म विधविध जगतमां आत्मा करे व्यवहारथी. ९८.
परद्रव्यने जीव जो करे तो जरूर तन्मय ते बने,
पण ते नथी तन्मय अरे! तेथी नहीं कर्ता ठरे. ९९.
जीव नव करे घट, पट नहीं, जीव शेष द्रव्यो नव करे;
उत्पादको उपयोगयोगो, तेमनो कर्ता बने. १००.
ज्ञानावरणआदिक जे पुद्गल तणा परिणाम छे,
करतो न आत्मा तेमने, जे जाणतो ते ज्ञानी छे. १०१.
जे भाव जीव करे शुभाशुभ तेहनो कर्ता खरे,
तेनुं बने ते कर्म, आत्मा तेहनो वेदक बने १०२.
जे द्रव्य जे गुण-द्रव्यमां, नहि अन्य द्रव्ये संक्रमे;
अणसंक्रम्युं ते केम अन्य परिणमावे द्रव्यने? १०३.
आत्मा करे नहि द्रव्य-गुण पुद्गलमयी कर्मो विषे,
ते उभयने तेमां न करतो केम तत्कर्ता बने? १०४.
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