Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 4. ashrav adhikAr.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
मळमिलनलेपथी नाश पामे श्वेतपणुं ज्यम वस्त्रनुं,
चारित्र पामे नाश लिप्त कषायमळथी जाणवुं. १५९.
ते सर्वज्ञानी-दर्शी पण निज कर्मरज-आच्छादने,
संसारप्राप्त न जाणतो ते सर्व रीते सर्वने. १६०.
सम्यक्त्वप्रतिबंधक करम मिथ्यात्व जिनदेवे कह्युं,
एना उदयथी जीव मिथ्यात्वी बने एम जाणवुं. १६१.
एम ज्ञानप्रतिबंधक करम अज्ञान जिनदेवे कह्युं,
एना उदयथी जीव अज्ञानी बने एम जाणवुं. १६२.
चारित्रने प्रतिबंध कर्म कषाय जिनदेवे कह्युं,
एना उदयथी जीव बने चारित्रहीन एम जाणवुं. १६३.
४. आस्रव अधिकार
मिथ्यात्व ने अविरत, कषायो, योग संज्ञ असंज्ञ छे,
ए विविध भेदे जीवमां, जीवना अनन्य परिणाम छे; १६४.
वळी तेह ज्ञानावरणआदिक कर्मनां कारण बने,
ने तेमनुं पण जीव बने जे रागद्वेषादिक करे. १६५.
सुद्रष्टिने आस्रवनिमित्त न बंध, आस्रवरोध छे;
नहि बांधतो, जाणे ज पूर्वनिबद्ध जे सत्ता विषे. १६६.
रागादियुत जे भाव जीवकृत तेहने बंधक कह्यो;
रागादिथी प्रविमुक्त ते बंधक नहीं, ज्ञायक नर्यो. १६७.
फळ पक्व खरतां, वृंत सह संबंध फरी पामे नहीं,
त्यम कर्मभाव खर्ये, फरी जीवमां उदय पामे नहीं. १६८.
१६ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय