श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
ते आत्म ध्यातो, ज्ञानदर्शनमय, अनन्यमयी खरे,
बस अल्प काळे कर्मथी प्रविमुक्त आत्माने वरे. १८९.
रागादिना हेतु कहे सर्वज्ञ अध्यवसानने,
— मिथ्यात्व ने अज्ञान, अविरतभाव तेम ज योगने. १९०.
हेतुअभावे जरूर आस्रवरोध ज्ञानीने बने,
आस्रवभाव विना वळी निरोध कर्म तणो बने; १९१.
कर्मो तणा य अभावथी नोकर्मनुं रोधन अने
नोकर्मना रोधन थकी संसारसंरोधन बने. १९२.
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६. निर्जरा अधिकार
चेतन अचेतन द्रव्यनो उपभोग इन्द्रियो वडे
जे जे करे सुद्रष्टि ते सौ निर्जराकारण बने. १९३.
वस्तु तणे उपभोग निश्चय सुख वा दुःख थाय छे,
ए उदित सुखदुख भोगवे पछी निर्जरा थई जाय छे. १९४.
ज्यम झेरना उपभोगथी पण वैद्य जन मरतो नथी,
त्यम कर्मउदयो भोगवे पण ज्ञानी बंधातो नथी. १९५.
ज्यम अरतिभावे मद्य पीतां मत्त जन बनतो नथी,
द्रव्योपभोग विषे अरत ज्ञानीय बंधातो नथी. १९६.
श्री समयसार-पद्यानुवाद ]
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