Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
जे मानतोहुं जिवाडुं ने पर जीव जिवाडे मुजने,
ते मूढ छे, अज्ञानी छे, विपरीत एथी ज्ञानी छे. २५०.
छे आयु-उदये जीवन जीवनुं एम सर्वज्ञे कह्युं,
तुं आयु तो देतो नथी, तें जीवन क्यम तेनुं कर्युं? २५१.
छे आयु-उदये जीवन जीवनुं एम सर्वज्ञे कह्युं,
ते आयु तुज देता नथी, तो जीवन क्यम तारुं कर्युं? २५२.
जे मानतोमुजथी दुखीसुखी हुं करुं पर जीवने,
ते मूढ छे, अज्ञानी छे, विपरीत एथी ज्ञानी छे. २५३.
ज्यां कर्म-उदये जीव सर्वे दुखित तेम सुखी थता,
तुं कर्म तो देतो नथी, तें केम दुखित-सुखी कर्या? २५४.
ज्यां कर्म-उदये जीव सर्वे दुखित तेम सुखी बने,
ते कर्म तुज देता नथी, तो दुखित केम कर्यो तने? २५५.
ज्यां कर्म-उदये जीव सर्वे दुखित तेम सुखी बने,
ते कर्म तुज देता नथी, तो सुखित केम कर्यो तने? २५६.
मरतो अने जे दुखी थतोसौ कर्मना उदये बने,
तेथी ‘हण्यो में, दुखी कर्यो’तुज मत शुं नहि मिथ्या खरे? २५७.
वळी नव मरे, नव दुखी बने, ते कर्मना उदये खरे,
‘में नव हण्यो, नव दुखी कर्यो’तुज मत शुं नहि मिथ्या खरे? २५८.
आ बुद्धि जे तुज‘दुखित तेम सुखी करुं छुं जीवने’,
ते मूढ मति तारी अरे! शुभ अशुभ बांधे कर्मने. २५९.
करतो तुं अध्यवसान‘दुखित-सुखी करुं छुं जीवने’,
ते पापनुं बंधक अगर तो पुण्यनुं बंधक बने. २६०.
श्री समयसार-पद्यानुवाद ]
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