Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
रे! काळ ते नथी ज्ञान, जेथी काळ कंई जाणे नहीं,
ते कारणे छे ज्ञान जुदुं, काळ जुदोजिन कहे; ४००.
आकाश ते नथी ज्ञान, ए आकाश कंई जाणे नहीं,
ते कारणे आकाश जुदुं, ज्ञान जुदुंजिन कहे; ४०१.
नहि ज्ञान अध्यवसान छे, जेथी अचेतन तेह छे,
ते कारणे छे ज्ञान जुदुं, जुदुं अध्यवसान छे. ४०२.
रे! सर्वदा जाणे ज तेथी जीव ज्ञायक ज्ञानी छे,
ने ज्ञान छे ज्ञायकथी अव्यतिरिक्त ईम ज्ञातव्य छे. ४०३.
सम्यक्त्व, ने संयम, तथा पूर्वांगगत सूत्रो, अने
धर्माधरम, दीक्षा वळी, बुध पुरुष माने ज्ञानने. ४०४.
एम आतमा जेनो अमूर्तिक ते नथी आ’रक खरे,
पुद्गलमयी छे आ’र तेथी आ’र तो मूर्तिक खरे. ४०५.
जे द्रव्य छे पर तेहने न ग्रही, न छोडी शकाय छे,
एवो ज तेनो गुण को प्रायोगी ने वैस्रसिक छे. ४०६.
तेथी खरे जे शुद्ध आत्मा ते नहीं कंई पण ग्रहे,
छोडे नहीं वळी कांई पण जीव ने अजीव द्रव्यो विषे. ४०७.
बहुविधनां मुनिलिंगने अथवा गृहस्थीलिंगने
ग्रहीने कहे छे मूढजन ‘आ लिंग मुक्तिमार्ग छे’. ४०८.
पण लिंग मुक्तिमार्ग नहि, अर्हंत निर्मम देहमां
बस लिंग छोडी ज्ञान ने चारित्र, दर्शन सेवता. ४०९.
मुनिलिंग ने गृहीलिंगए लिंगो न मुक्तिमार्ग छे;
चारित्र-दर्शन-ज्ञानने बस मोक्षमार्ग जिनो कहे. ४१०.
श्री समयसार-पद्यानुवाद ]
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