श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
श्री
प्रवचनसार
(पद्यानुवाद)
१. ज्ञानतत्त्व-प्रज्ञापन
(हरिगीत)
सुर-असुर-नरपतिवंद्यने, प्रविनष्टघातिकर्मने,
प्रणमन करुं हुं धर्मकर्ता तीर्थ श्री महावीरने; १.
वळी शेष तीर्थंकर अने सौ सिद्ध शुद्धास्तित्वने,
मुनि ज्ञान-द्रग-चारित्र-तप-वीर्याचरणसंयुक्तने. २.
ते सर्वने साथे तथा प्रत्येकने प्रत्येकने,
वंदुं वळी हुं मनुष्यक्षेत्रे वर्तता अर्हंतने. ३.
अर्हंतने, श्री सिद्धनेय नमस्करण करी ए रीते,
गणधर अने अध्यापकोने, सर्वसाधुसमूहने; ४.
तसु शुद्धदर्शनज्ञानमुख्य पवित्र आश्रम पामीने,
प्राप्ति करुं हुं साम्यनी, जेनाथी शिवप्राप्ति बने. ५.
सुर-असुर-मनुजेन्द्रो तणा विभवो सहित निर्वाणनी
प्राप्ति करे चारित्रथी जीव ज्ञानदर्शनमुख्यथी. ६.
चारित्र छे ते धर्म छे, जे धर्म छे ते साम्य छे;
ने साम्य जीवनो मोहक्षोभविहीन निज परिणाम छे. ७.
ॐ