Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 3. charaNanuyogsuchak chulikA.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
३. चरणानुयोगसूचक चूलिका
ए रीत प्रणमी सिद्ध, जिनवरवृषभ, मुनिने फरी फरी,
श्रामण्य अंगीकृत करो, अभिलाष जो दुखमुक्तिनी. २०१.
बंधुजनोनी विदाय लइ, स्त्री-पुत्र-वडीलोथी छूटी,
द्रग-ज्ञान-तप-चारित्र-वीर्याचार अंगीकृत करी. २०२.
‘मुजने ग्रहो’ कही, प्रणत थई, अनुगृहीत थाय गणी वडे,
वयरूपकुलविशिष्ट, योगी, गुणाढ्य ने मुनि-इष्ट जे. २०३.
परनो न हुं, पर छे न मुज, मारुं नथी कंई पण जगे,
ए रीत निश्चित ने जितेन्द्रिय साहजिकरूपधर बने. २०४.
जन्म्या प्रमाणे रूप, लुंचन केशनुं, शुद्धत्व ने
हिंसादिथी शून्यत्व, देह-असंस्करणए लिंग छे. २०५.
आरंभ मूर्छा शून्यता, उपयोगयोग विशुद्धता,
निरपेक्षता परथी,जिनोदित मोक्षकारण लिंग आ. २०६.
ग्रही परमगुरु-दीधेल लिंग, नमस्करण करी तेमने,
व्रत ने क्रिया सुणी, थई उपस्थित, थाय छे मुनिराज ए. २०७.
व्रत, समिति, लुंचन, आवश्यक, अणचेल, इन्द्रियरोधनं,
नहि स्नान-दातण, एक भोजन, भूशयन, स्थितिभोजनं, २०८.
आ मूळगुण श्रमणो तणा जिनदेवथी प्रज्ञप्त छे,
तेमां प्रमत्त थतां श्रमण छेदोपस्थापक थाय छे. २०९.
जे लिंगग्रहणे साधुपद देनार ते गुरु जाणवा;
छेदद्वये स्थापन करे ते शेष मुनि निर्यापका. २१०.
६० ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय