Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भरतक्षेत्रमें आकर स्वामी ज्योत धरमकी कीनी,
भोले जीवों को जीवन की उत्तम शिक्षा दीनी....
मैं नित प्रति मंगल गाउं रे...नित० २
तीन लोक के देवी-देवता जिनके चरन में आवें,
ॠषि मुनि ज्ञानी जन सब ही जय जय ताल पुकारें...
मैं दर्शन कर हर्षाउं रे...नित० ३
अष्ट सिद्धि नव निधि के दानी पूरण प्रभु उपकारी,
लाखों जीव उगार लिये हैं अब ‘पंकज’की वारी...
भवताप हार शिव पाउं रे...नित० ४
श्री सीमंधार जिन स्तवन
( मैं कौनसे हृदयसे....प्रभु गुण तेरे गाउं....)
तूं कौनसी नगरी में सीमंधर! है आ...जा
सारे है तेरे भक्त दुःखी दर्श दिखाजा,
तूं कौनसी नगरी में मेरे नाथ! है आ...जा
पुकारें तेरे भक्त प्रभु! दर्श दिखाजा....१
दिल ढूंढ रहा है कि मेरा नाथ कहां है
छोटी सी झलक दे के मेरी धीर बंधा जा....२
भगवान सीमंधर मेरे दिलमें समाकर
आनंद हो जीवन में मेरे दिलमें बसी जा...३

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निज ज्ञानदीपक मेरा प्रभु! आप प्रकाशो
ज्योति विमल ज्ञानकी प्रभु शीघ्र जगा दो....४
श्री सीमंधार जिन स्तवन
(आज मैं महावीरजी....)
अय सीमंधर नाथजी! मैं आया तेरे दरबार में,
कब सुनाई होगी मेरी आपके सरकार में...(४)
तेरी कृपासे यह माना भक्त लाखों तिर गये,
क्यों नहीं मेरी खबर लेते (मैं) रहा दूर देश में....(४)
देव! कीजे द्रष्टि हम पर, साथ दीजे जीवनमें,
नाथ मारग मुक्तिका देखा तेरे दरबारमें....(४)
रत्नत्रय दे तो प्रभुजी, है यह इतनी आरजू,
नाव मेरी शीघ्र पहुंचे दुनियां के पेले पारमें....(४)
जैसे गणधरदेव बैठे नाथ! तेरी चरण में,
हमकों भी दे तो जगह प्रभु! आपके दरबार में....(४)
आपकी दिव्यध्वनि होती विदेह के धाममें,
संदेश यहां उसकी सुनाई मेरे गुरुवर कहानने....(४)
मुशकिलें आसान कर दो अपने भक्तों की प्रभु,
यह विनय तुम बालकी बस आपके दरबारमें....(४)

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श्री महावीर जिन स्तवन
एक छोटी सी तमन्ना ले तेरे दरबार में,
वीर जिन आया है बंदा यह तेरे दरबार में;
आज में महावीरजी....आया तेरे दरबार में,
साथ ही में भक्ति लेकर आया तेरे दरबार में.
लाखों मुखसे सुन चुका हूं तूने लाखोंकी सुनी,
आज का अवसर है मेरा यह तेरे दरबार में. (४) एक.
आपका सुमरन किया जब मानतुंगाचार्यने,
खुल गई थी बेडियां झट उनकी कारागार में. (४) एक.
बन गया शूली से सिंहासन सुदर्शन के लिये,
हो रहा गुणगान अब उस शेठ का संसार में. (४) एक.
भा रही थी भावना आहार देने के लिये,
बेडी तूटी चंदनाकी आप के दरशन से. (४) एक.
राज्य की नहि चाह मुझे चाह नहीं संसारकी,
ध्यान-आसन की जगह दे दे तेरे दरबार में. (४) एक.
दूर हो इस जग के सारे झंझटें मुझसे प्रभु,
शिवरमा ‘सौभाग्य’ वरलूं यह तेरे दरबार में. (४) एक.

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श्री सीमंधार जिन स्तवन
भगवान मोरी नैया उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है आगे भी निभा देना.
संभव है झंझटों में, सब कुछ भूल जाउं,
पर नाथ! कभी तुम तो, मुजको न भुला देना.
प्रभु दूर वास तेरा, घेरा जो मोह आकर,
तो देखते न रहना, झट आके बचा लेना.
बहु भक्त नाथ तेरा, जो जो हुये हैं जगमें,
उन सबको पार लगाया, हमको भी लगा देना.
श्री सीमंधार जिन स्तवन
पुण्य उदय आये...प्रभु दरशन पाये...
कैसा है यह रूप मनोहर देखत मन हर्षाये...प्रभु०
देखे प्रभु को बहु जुग वीते,
भव बंधन सें कबहूं न छूटे,
दर्श हुआ यह धन्य जीवनमें,
अब तुमरे ढिग आये...प्रभु० (१)
मोह जालका पर्दा तोडा,
सूझा अब तो नाथ किनारा

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बीच भंवरसे बेडा हमारा,
तारो तो तिर जाये...प्रभु० (२)
सेवक की स्वामी सुध लीजे,
औगुण सारे माफ करी जे,
शीघ्र ही शिवपुर दे दीजे,
जन्म सफल हो जाये.... प्रभु० (३)
श्री वीर जिन स्तवन
दुःख मेटो...दुःख मेटो वीर हमारे हम आये द्वार तुम्हारे....
नहीं और कोई चित्त भाता तुम्हीं हो स्वामी हमारे...दुःख
तुम महावीर कहलाये तज राजपाट वन धाये,
निजध्यान की धुन मचाये लाखों जीवों को तारे...दुःख मेटो (१)
गणधर गौतमको तारे...प्रभु! आप समान बनाये,
उनको भवपार लगाये जो आया शरण तुम्हारे...दुःख मेटो (२)
श्रीपालको तुमने उबारा मैना के दुःख को टारा,
थे सती अंजना के प्रणको हो तुम्ही पूरण हारे...दुःख मेटो (३)
दरबार में तेरे आकर खाली नहीं जाता चाकर,
हम सबकी झोली भरदे मैं पूजूं चरण तिहारे....दुःख मेटो (४)

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श्री सीमंधारजिन स्तवन
मेरे द्रगमें...हां...हां...मेरे दिलमें,
बसी मूरत तेरी...चित्त लुभाये....
तार तार तेरी धून बाजे
उर वीणा गूंजाये....
भजले भजले यह गाती है
यह धून मेरे मन भाती है,
पास तेरे चरणोंमें बैठा
लौ तेरे से लगाये...मेरे....(१)
तूने क्या जादू फैलाया
अंखियन में ऐसा है समाया,
निरखत निरखत सदा रहूं पर
हटती नहीं हटाये...मेरे...(२)
कठिन यत्नसे जो कोई पाये
कैसे भला उसे विसराये,
निश्चय ‘वृद्धि’ को है तूंही
भवसे पार लगाये...मेरे...(३)
कृपाद्रष्टि ओ सीमंधर जिनजी!
हम पर निशदिन बरसे तेरी,
अम अंतरमें वास तेरा है,
तुझसे हम बन जायें...मेरे...(४)

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श्री सीमंधार जिन स्तवन
( मिले जगतके नाथ...अब तो...)
बजा हृदय के ता...र....मेरे
बजा हृदय के तार,
तूं ही मगन है मनको करता
तूं ही जीवन संचार.... (१)
इस वीणा की तार तार में
गूंजे शब्द अपार,
पल पल...छिन छिन....झनन झनन कर,
तुमको रहे पुकार...मेरे.... (२)
भक्ति का वास हो धर्मका पालन
पुण्य से भरे भंडार,
दुःख के बादल जब मिट जायें,
सुखका होय प्रसार...मेरे... (३)
चल न सके आस्रव आनेका
होय संवर तैयार,
वृद्धि कर्मबंधन फिर तूटे,
हो जाउं भव पार...मेरे... (४)
सीमंधर जिनके चरण कमलमें
मन मेरा एकतार,

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बजा रही मेरे मनकी वीणा
आनंद की पुकार...मेरे... (५)
हमx शिव पाना है....
आयें हैं नाथ शरणमें,
ले अपनी चरणमें, हमें शिव पाना है....
काहे को भटके गतियोंमें भव भव काहे डुलाये मन,
किस पर रीझे स्वारथ की दुनियां अपना न कोई जन;
अटके हैं जामनमरनमें,
से अपनी चरणमें, हमें शिव पाना है. (१)
प्रभुजी तेरी प्रीत जगी है हमें नहीं है डर,
तुज सम पद प्रगट हो पावन दीजे यही शुभ वर;
तूं नामी है संकट हरनमें,
ले अपनी चरनमें, हमें शिव पाना है. (२)
मोह रिपु पर हम जय पा लें द्रढ होवे आतमबल,
सुख सौभाग्य बढें भक्तों के जय जय गा प्रतिपाल;
तूं सच्चा है तारन तरनमें,
ले अपनी चरनमें, हमें शिव पाना है. (३)

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श्री विदेहीजिन स्तवन
सिंधु ये अपार है नैया मझधार है
तूं ही मेरा मांझी प्रभु! तूंही पतवार है...
विदेही भगवान तूं जीवन का आधार है,
तूं ही वीतराग प्रभु! तूं ही मेरा देव है.
रागद्वेष में फंसकर स्वामी तेरा नाम भुलाया,
भव भवमें भटक भटकके, अब तो दरशन पाया....(१)
जीवन नैया हुई जर्जरी अब ले नाथ उगारी,
साधक के तुम साथी होकर देते हिंमत सारी....(२)
तेरा नाम सहारा पाकर लाखों पार लगे हैं,
मेरा भी सौभाग्य सफल हो, श्रद्धा दीप जगे हैं....(३)
श्री नेमिनाथ स्तवन
कहे राजुलदे नार...जरा मेरी भी पुकार...
सुनो....सुनो भरतार....
जाते हो कहां रथ मोडके....रथ मोडके
ओ! मांझी मुझे अध बीचमें
कहो कैसे तजी जग...कीचमें?

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मेरी नैयाका पतवार...खेवो जीवन के आधार
सुनो....सुनो भरतार....
जाते हो कहां रथ मोडके....(१)
ओ! स्वामी पशुओंकी पुकार पर,
हुवे त्यागी दया चित्त धार कर,
मैं भी जगका झूंठा प्यार...आई तजकर सब परिवार..
सुनो....सुनो भरतार....
जाते हो कहां रथ मोडके....(२)
दुःख आवागमन का सौभाग्यसे
मेटुं भवफंद तेरे सु जापसे,
करुं आतमका उद्धार...पाउं सिद्धासन पद सार....
सुनो....सुनो भरतार....
जाते हो कहां रथ मोडके....(३)
श्री नेमिनाथजिन स्तवन
सह्यो म्हारी नेमीश्वर बनडा नें
गिरनारी जाता राख लीजो ये...
समुद विजयजीरा लाडला ये मांय,
सह्यो म्हारी दोनुं छै हलधर लार
पिताजीने जाय कहियो रे.... (१)

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नेमीश्वर बनयो बन्यो हे मांय,
सह्यो मारी खूब बनी छे बरात,
झरोखामें झांक लीजो ये.... (२)
तोरण पर जब आईया ये मांय,
सह्यो म्हारी पशुवन सुणी पुकार,
पाछो रथ फेरियो ये मांय... (३)
तोड्या छे कांकण डोरडा ये मांय,
सह्यो म्हारी तोड्या छे नवसर हार,
दीक्षा उर धार लीनी है... (४)
संजम अब में धारस्यां हे मांय,
सह्यो म्हारी जास्यां गढ गिरनार,
कर्म फंद काटस्यां हे मांय.... (५)
मो सेवककी विनति ये माय,
सह्यो म्हारी मांग्यो छे शिवपुर वास,
दया चित्त धार दीजो ये... (६)
सह्यो म्हारी नेमीश्वर बनडा नें,
गिरनारी जातां राख लीजो ये.....

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श्री जिनेन्द्र स्तवन
एक तुम्हीं आधार हो जगमें, अय मेरे भगवान
कि तुमसा और नहीं बलवान.
सम्हल न पाया गोते खाया, तुम बिन हो हैरान
कि तुमसा और नहीं गुणवान.
आया समय बडा सुखकारी आतमबोध कला विस्तारी,
मैं चेतन तन वस्तु न्यारी स्वयं चराचर झलकी सारी;
निज अंतरमें ज्योति ज्ञानकी, अक्षयनिधि महान
कि तुमसा और नहीं भगवान.
दुनियांमें एक शरण जिनंदा, पापपुण्यका बुरा फंदा,
मैं शिवभूत रूप सुख कंदा ज्ञाताद्रष्टा तुमसा बंदा;
मुज कारजके कारण तुम हो, और नहीं मतिमान
कि तुमसा और नहीं भगवान.
सहज स्वभाव भाव अपनाउं पर परिणतिसे चित्त हटाउं,
पुनि पुनि जगमें जन्म न पाउं, सिद्ध समान स्वयं बन जाउं;
चिदानंद चैतन्य प्रभुका, है सौभाग्य प्रधान....
कि तुमसा और नहीं भगवान.

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वैराग्य-भजन
तोड विषयों से मन, जोड प्रभु से लगन, आज अवसर मिला
रंग दुनियां के अबतक न समझा है तुं
भूल निजको हां परमें यो रीझा है तुं
अब तो मुंह खोल चख, स्वाद आतमका लख, शिव पयोधर मिला.१
हाथ आने की फिर ये सुघडियां नहीं
प्रीत जडसे लगाना है अच्छा नहीं
देख! पुद्गलका घर, नाहीं रहता अमर, जग चराचर मिला. २
ज्ञानज्योति हृदय में तुं अब तो जगा
देख सौभाग्य न जग में है कोई सगा
तज दे मिथ्या भरम, तुझे सच्चे मरमका है अवसर मिला. ३
श्री नेमिनाथवैराग्य
(रागः मांड मारवाड)
मन लीनों हमारो जी...म्हारा जादु पति सरदार....
हठीलो छबीलो रंगभीनो....मन लीनों हमारो जी....
(१) समुद विजैजी का लाडला शिवादेवी रा नंद,
श्याम वरन सुहावना मुख पूनम को चंद...हमारे प्रभु.
(२) तौरन पर जब आईया ले जादव संग लार,
पशुवन की सुन विनति जाय चढे गिरनार...हमारे प्रभु.

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(३) तोड्या कांकण डोरडा (ने) तोड्या नवसर हार,
सहसावनमें जाय सांवरिया लीनो संजमधार...हमारो प्रभु.
(४) मुझे छांडि प्रभु मुक्ति सिधारे आवागमन निवार,
चंद कपूरा विनवे चरण शरण आधार...हमारे प्रभु.
श्री जिनेन्द्र भजन
थांकी उत्तम क्षमापै जी...अचंभो म्हाने आवे....(२)
किस विध कीने करम चकचूर....थांकी उत्तम क्षमा पै.
[१] एक तो प्रभु तुम परम दिगंबर
पास न तिल तुस मात्र हजूर,
दूजे जीव दयाके सागर
तीजे संतोषी भरपूर...किसविध.
[२] चौथे प्रभु तुम हित उपदेशी
तारण तरण जगत भासूर,
कोमल वचन सरल सत वक्ता
निर्लोभी संयम तपसूर...किसविध.
[३] कैसे ज्ञानावरणी जि नास्यो
कैसे गेर्यो अदर्शन चूर,
कैसे मोहमल्ल तुम जीत्यो
कैसे किये च्यारुं घातिया दूर....किसविध.

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[४] कैसे केवल ज्ञान उपायो
अंतराय कैसे किये निर्मूल,
सुरनर सेवे मुनि चर्ण तुमारे
तो भी नहीं प्रभु तुमकुं गरूर....किसविध.
[५] करत आश अर दास नैन सुख
कीजे यह मोहे दान जरूर,
जनम जनम पद पंकज सेवुं
और न चित्त कछु चाह हजूर....किसविध.
श्री जिनेन्द्र-स्तवन
(तुमसे लागी प्रीतः प्रभुजी)
तुमसे लागे नैन प्रभुजी...तुमसे लागे नैन...
सुनकर सुयश सुखद शिवदानी, नाम तुम्हारी श्री जिनवाणी,
आन पडे है चरन शरणमें भवभ्रमसे बेचेन प्रभुजी.
सहज स्वभाव भाव निज प्रगटे, क्रूर कुभाव स्वयं सब विघटे,
ज्ञानानंद दिवाकर लखकर बीत गई दुःख रैन प्रभुजी.
तुम समान नाहीं जगमांही, कहै जिसे प्रभु लख प्रभुताहीं,
तीनलोक सिरमोर धन्य है तुम गुणमणि सुख दैन प्रभुजी.
ज्ञाताद्रष्टा है अविनाशी, अतुल वीर्य बल सुखकी राशी,
निज पदके सौभाग्य सखा हो कारण तुम जिन वैन प्रभुजी.४

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वधााइ!
(श्री नेमिनाथ प्रभुनो जन्मकल्याणक...)
गावोरी वधाईयां हो, समद विजयजी के द्वार...टेक.
जाया सुत सोहना हो, मनडा मोहना सुखकार,
आई सब नारियां हो, सज सज अंगभूषण सार,
हिलमिल गाईयां हो, सब घर आज मंगलाचार,
गुणीजन सब ही गावे.....वाह वाह!
वधाई गावत धाये.....वाह वाह!
सबें मिलि आनंदभारी.....वाह वाह!
नचे सब दे दे तारी.....वाह वाह!
बजै बहु भांतिन बाजा .....वाह वाह!
सुनत कानन सुख साजा.....वाह वाह!
समय यो देख्यो भारी.....वाह वाह!
हर्ष सब पूरमें भारी.....वाह वाह!
लख लख रूप जिनका हो, हरखे सकल पुर नरनार....(१)
नृपने दान देके हो जाचक किये सकल निहाल,
अपनी माल पहनाई दीने वस्त्र बहु धन सार,
सबै जादव मिलि आये.....वाह वाह!
देख ता मन हर्षाये.....वाह वाह!
आज का दिन सुखकारी.....वाह वाह!

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धन्य शीव्या दे नारी.....वाह वाह!
‘नेमिजिन जीवो तेरा’.....वाह वाह!
जगतमें सुखकार डेरा.....वाह वाह!
दर्श नित्त उनका कीजे.....वाह वाह!
नीरख नैनन सुख लीजे.....वाह वाह!
हितकर गाईयां हो, प्रगटे मोक्षके दातार..गावोरी वधाईयां हो.(२)
वधााइ!
मोरी आली....आज वधाई गाईयां...(टेक)
विमला देवी बेटो जायो श्री श्रेयांस मन नाम धरायो,
सबही के मन भाईयां सो मोरी आली....१
इन्द्रसखी मिल नाचत गावत तबलग तबलग मृदंग बजावत,
घुघरु ताल मजीरा बाजे, ताल देत है विविध भांतिकी,
सबही के मन भाईयां सो मोरी आली....२
विमल राय राजा घर बाजत वधाईयां....वाहवा....जी वाहवा!
आये हैं गुणी सब गावन वधाईयां....वाहवा....जी वाहवा!
बाजत ताल मृदंग नौबत सनाईयां....वाहवा....जी वाहवा!
दान दीयो राजा श्रेयांस मन भाईयां....वाहवा....जी वाहवा!
सो मोरी आली आज वधाई गाईयां...३

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प्रभुजी मेरे बोलो....
बोलो...
बोलो...बोलोजी....प्रभुजी मेरे बोलो...प्रभुजी मेरे बोलो....
बोलो....बोलो, बोलो....बोलो....प्रभुजी मेरे बोलो......
हां बोलो.....
मैं तिहारा...तुम मेरे....बोलो, बोलो बोलो जी....
प्रभुजी मेरे बोलो
हां....हां बोलो....
ढील किये कुछ काम न आये
भटक फिरे दरशन नहि पाये...दरशन...नहि पाये....
दरशन नहि पाये....
नैनांकी ओटमें हे प्रभु समाये,
अपनी शरन हमें लेलो...लेलो....लेलो....प्रभुजी.
प्रभुजी मेरे बोलो, प्रभुजी मेरे बोलो, प्रभुजी बोलो!
चारों ओर मेरे घोर अंधेरा,
तेरे बिना प्रभु कोई न मेरा...प्रभु कोई न मेरा....
प्रभु कोई न मेरा....
ये अंखिय मोरी हुई अंधियारी,
मनकी अंखिया खोलो...खोलो...खोलो...प्रभुजी.
प्रभुजी मेरे बोलो, प्रभुजी मेरे बोलो, प्रभुजी मेरे बोलो.

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श्री जिनेन्द्रस्तवन
(मनहर तेरी मूरतियां....)
व्याकुल मोरे नैनववा, चरणशरण में आया....
दर्श दिखादो स्वामी...दर्श दिखादो. (टेक)
भव सागर के दुःखसे अब तो थक गया...थक गया,
नाम प्रभुजी क्षण क्षण तेरा रट रहा...रट रहा,
भवसे वेग बचावो रे अर्ज हमारी मानो...
दुःख मिटा दो स्वामी...दुःख मिटा दो...व्या.
तीन भुवनमें तुमसा स्वामी नहीं पाते....नहीं पाते,
स्वामी तुम बिन देव और को नहीं भाते...नहीं भाते...
मोक्षपथ दिखलाओ रे, अर्ज हमारी मानो....
दुःख मिटा दो स्वामी...दुःख मिटा दो...व्या.
सब जीवोंका दुःखसे बेडा पार करो. पार करो,
सेवक का भी स्वामी अब उद्धार करो...उद्धार करो!
सब ही शीश नमावें रे अर्ज हमारी मानों....
दुःख मिटा दो स्वामी दुःख मिटा दो...व्या.
श्री महावीर स्तवन
ॐ जय जय वीर प्रभो............. .
शरणागत के संकट भगवन क्षण में दूर करो....

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त्रिशला उर अवतार लिया प्रभु सुरनर हर्षाये,
पन्द्रह मास रतन कुंडलपुर धनपति वर्षाये.
शुक्ल त्रयोदशी चैत्र मासकी आनंद करतारी,
राय सिद्धारथ घर जन्मोत्सव ठाड रचे भारी.
तीस वर्ष लौ रहे महलमें बाल ब्रह्मचारी,
राज त्याग कर यौवन में ही मुनिदीक्षा धारी.
द्वादश वर्ष किया तप दुर्धर विधि चकचूर किया,
झलके लोकालोक ज्ञानमें सुख भरपूर लिया.
कार्तिक श्याम अमावस के दिन प्रातः मोक्ष चले,
पूर्व दिवाली चला तभी से घर घर दीप जले.
वीतराग सर्वज्ञ हितैषी शिव मग परकाशी,
हरि हर ब्रह्मा नाथ तूंही हो जय जय अविनाशी.
दीन दयाला जगप्रतिपाला सुर नर नाथ जपैं,
सुमरत विघन टरें इक छिनमें पातक दूर भजैं.
चोर भील जैसे भी उबारे भव दुःख हरण तूंही,
पतित जान ‘शिवराम’ उबारो हे जिन शरन तूंही.