Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री महावीरभजन
(प्रभु दर्शन कर जीवनकी.....)
चाह मुझे है दर्शनकी, वीर के चरण स्पर्शन की (टेक)
वीतराग छबी प्यारी है जग जनकी मनहारी है
मूरति मेरे भगवन की....१
हाथ पै हाथ धरा ऐसे, करना कुछ न रहा जैसे
देख दशा पद्मासन की....२
कुछ भी नहीं सिंगार किये, हाथ नहीं हथियार लिए
फौज भगाइ कर्मन की....३
समता पाठ पढाती है, ध्यान की याद दिलाती है
नासा द्रष्टि लखो इन की....४
जो शिव आनंद चाहो तुम, इनसा ध्यान लगाओ तुम
विपत हरे भव भटकन की....५
श्री महावीर जिनस्तवन
(आज तेरे गुणगान....)
झुकाओ वीर प्रभु को माथ, सुज्ञानी ध्यान धरो दिन रात
शरणमें आओ जी जोडो हाथ...टेक

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वीरने जो उपकार किये हैं, उनको नहीं भुलायें
हम धन्यवाद प्रभुका गायें, आओ उत्सव ठाठ रचायें
मिलकर सारे बोलो प्यारे, जय जय सन्मति नाथ....१
चैत सु तेरस मंगलकारी, जन्मे श्री जिनराये
आनन्द कुंडलपुरमें छाये, हैं सब तीन लोक हरषाये
त्रिशला माता हैं सुखदाता, राय सिद्धारथ तात....२
‘दंसणमूलो धम्मो’, सबको यह सन्देश सुनाया,
जगको भेदज्ञान सिखलाय और सिद्धान्त-मर्म समझाया
‘शिवराम’ सुप्यारा तत्त्व है न्यारा स्याद्वाद विख्यात. ३
वीर के द्वार पुजारी आया
( हे वीर तुम्हारे द्वारे पर.....)
वीर तुम्हारे कई उपासक रंगढंग से आते हैं,
सेवामें बहुमूल्य वस्तुयें रंग-बिरंगी लाते हैं;
धूमधामसे साज बाजसे मंदिरमें वे आते हैं,
मुक्तामणि बहु मूल्य वस्तुयें तुम्हें चढाने आते हैं...हे वीर.
हूं गरीब मैं ऐसा कुछ भी अपने साथ नहीं लाया हूं,
धूप दीप नैवेद नहीं अरु पूजाका सामान नहीं....
मनका भाव प्रगट करनेका वाणीमें चातुर्य नहीं,
पूजाकी विधि नहीं जानुं फिर भी नाथ! चला आया...हे वीर.

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पूजा और पूजापा, प्रभुवर! इसी पूजारी को समझो,
होकर प्रेरित प्रेम-भक्ति से हृदय दिखाने आया हूं;
जो कुछ है बस पास यही है इसे चढाने आया हूं;
चरनोंमें अर्पित हो जाउं हे नाथ! भक्त-स्वीकार करो,
खडा पुकारे दास आपका प्रभु! मुझे भवपार करो....हे वीर.
श्री विदेहीनाथभजन
(हे वीर तुम्हारी मुद्राका....)
हे नाथ! तुम्हारे द्वारे पर यह भक्त तुम्हारा आया है;
जुगजूनी प्रीत निभाने को भरनयन देखने आया है....
भवभवके दुःखसे कायर हो आज शरन तुम्हारी आया है;
चरन सहारा पाकर के अब मुक्ति पुरमें आना है.
तेरा प्रेम पुजारी आया है चरनों में ध्यान लगाने को;
भगवान तुम्हारी मूरत पर श्रद्धा के फूल चढाने को.
तुम सत्यवती द्रगके तारे हो भक्तों के नाथ सहारे हो;
तुम मोक्षमार्ग दिखलाते हो भक्तों का हित बढाने को.
उपदेश धर्मका देते हो प्रभु विदेहदेश बिराजत हो;
भारतमें स्वामी आ जाओ सेवक को सुधा पिलाने को.
वियोग तुमारा हे स्वामी! अंतर व्यथा बढती जाती,
आवो एकवार प्रभु आओ तुम भक्त को दर्शन देने को.

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प्रभु! तेरे भक्त पुकारत हैं तेरे नाम को हरदम रटते हैं,
तुम बालक नित्य तरसते हैं प्रभु आपके दर्शन पानेको.
श्री विदेहीनाथस्तवन
(रागः गझल जेवो)
विदेहीनाथ कहोने अमी द्रष्टि क्यारे करशो?
डगमगती मेरी नैया भव पार क्यारे करशो?
विदेहीनाथ कहोने. १
शासन धर्म वृद्धि विदेहमां छे भारी,
भरते पधारी प्रभुजी दरिशन क्यारे देशो.
विदेहीनाथ कहोने. २
धर्म स्तंभ स्थपाया सुवर्णमां छवाया,
गंधकुटि पर बिराजी पावन क्यारे करशो.
विदेहीनाथ कहोने. ३
तारा चरण पासे लागी रह्युं छे हैयुं,
वाणी सुणावी अमने एकतान क्यारे करशो.
विदेहीनाथ कहोने. ४
मन लाग्युं तारी पासे काया रही छे दूरे,
करुणा करीने प्रभुजी तुम पास क्यारे लेशो.
विदेहीनाथ कहोने. ५

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टळवळता तारा बालक नीहाळवाने तुजने,
अमीभरी द्रष्टि साक्षात् भगवान क्यारे करशो.
विदेहीनाथ कहोने. ६
महावीर प्रभुकी कथा
[१]
भारत के एक तीर्थंकर की हम कथा सुनाते हैं....हम.....
त्रिशला के राज दुलारे की हम कथा सुनाते हैं....हम....
भारत के एक तीर्थंकर की हम कथा सुनाते हैं...हम....
भव चक्रमें रूलते रूलते....भव चक्रमें रूलते रूलते,
हुआ...सिंह भयंकर वनमें...हुआ सिंह भयंकर वनमें....
आतमधर्मको भूला भूला...हीरन के पीछे दोडा....
उतरे थे दो मुनि, गगनगामी, भीतिको तजी...बहुत समजाई....
‘तीर्थंकर तूं भावि का यह, क्या कर पाते हैं....ए....हम
सुनकर सिंहके नैन...अश्रु भर आते हैं...हम
मुनिओंकी भक्ति करी, शिकार तजी; समाधि करी समकित पाई.
धन्य! धन्य! उन्हें, सिंह के भवमें आत्मबोध करें.
सम्हल प्रभुताई....सम्हल प्रभुताई,
सुनकर सिंहका शौर्य, हर्ष उभराते हैं...हम.

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[२]
(त्यार पछी आगळ वधतां वधतां अंतिम भवमां)
(प्रभु) स्वर्गपुरी से आये....त्रिशला मात के प्यारे.
वैराग्य को पाय, मुनिपद धार, चले बन मांही.
शुकलध्यान कर बढे, श्रेणी पर चढे, कर्म फूंक दइ सब.
ज्ञान उपाई....ज्ञान उपाई....ज्ञान उपाई............
विपुलाचल के शिखर उनकी, याद दिलाते हैं....हम.
ध्वनि दिव्य खीरे, गौतम झीले, झील के ज्ञान प्रकाशे.
पावापुर पधारें; (प्रभु) मुक्ति सिधारें, सिद्धालय जा के बिराजें.
ऐसे वीर हृदयमें मेरे...मेरे हीय प्रभु ही भासें...!
क्या बिना प्रभु के सेवक सुखी कहीं देखे??
कहां वह प्रभु दरबार? कहां जिनजी कहां जिनजी!!
कहां जिनजी!!
वीर प्रभुको कर याद आज हम, शिर झुकाते हैं...हम.
श्री सीमंधार जिनभजन
(मैं वीस जिनवरोंके चित्तमें लगाकर डोलुं रे)
मैं जिनवर प्रभुकी जय जय जय जय बोलुं रे.
मैं कदम कदम पर अपने प्रभुको ध्यावुं रे.

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श्री श्रेयांसनंद दुलारे, सत्य माता लाड करावें,
मैं उनसे तान लगाकर जिनगुण गावुं रे...मैं.
श्री सीमंधर प्रभुको ध्याउं, प्रभु दरशन मैं कब पावुं!
मैं पूर्व विदेह के प्रभुको कब झट देखुं रे...मैं.
शशीधरसे मैं संदेश भेजुं, फिर प्रभुजीसे उत्तर पावुं,
मैं प्रभुका संदेश पाकर आनंद पावुं रे....मैं.
मैं जिनवर से मिल जावुं, जिनदेव के भक्त कहाउं,
मैं प्रभुजी के दरशन पाकर हरषित होउं रे...मैं.
मैं कलरव कलरव गावुं, अरु मंगलनाद बजावुं,
मैं उल्लसित हो जगभूल के जिन गुण गावुं रे...मैं.
प्रभु परमेष्ठी पंच ध्यावुं, श्रुतदेवी माता भावुं,
मैं सब संतन के चरणों बलि बलि जावुं रे...मैं.
मैं सम्यक्दर्शन भावुं, अरु ज्ञान चरित मिलावुं,
वरदान प्रभुसे पाकर प्रभु सम थाउं रे....मैं.
मैं मुक्ति के पथ धावुं, सिंहनाद से कर्म हठावुं,
गुरु कहान की बंसी सुनकर ठगमग डोलुं रे...मैं.
गुरुवाणीका तीर लगावुं, मोह मल्ल को दूर भगावुं,
जीत मोह, का’न गुरुवर की जय जय बोलुं रे.
गुरुधर्म ध्वजाको जग फर फर फरकावुं रे...मैं.

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श्री जिनेन्द्र-स्तुति
(रागः तोटक जेवो)
जिन भजके भवका पार लहुं,
दुःखिया के दुःख मिटावो प्रभु;
प्रभु सुमरनसें भ्रम निंद भगी,
जिनवानी सुनी हिय उमंग जगी.
गुरुवचनोंसे जिय चेत जगी,
प्रभु भक्तिकी है लगन लगी;
जिन भजके भवका पार लहूं,
बस जिनवरके गुणगान करुं.
जिन चरणोंमें नित शरण चहुं,
निर्मलतर ये रुचि भाव धरुं;
तुम चरणांबुज मम हियबिच हो,
निश्चल चिन्मूरत विलसित हो.
मंगलमय देव त्रिलोक पति,
उत्तम अविकार नमुं श्रीपति;
शरणागत के शरणोत्तम हो,
शाश्वत सुखमें संस्थापक हो.
प्रभु भजके भवका पार लहूं;
निर्मल भक्तिकी नाव गहूं;

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प्रभुके पद मम हृदयांकित हो,
गुन गाउं रटुं परमातम को.
कैसे कहूं प्रभु महिमा तोरी,
थक जाय विकल बुद्धि मोरी;
भवरोग के दोष मिटायक हो,
वर शांति जिनेश सहायक हो.
जिनगुण संपत्त वर द्यो जिनजी,
सुनिजो विनति सीमंधर जिनजी;
कृतकृत्य सुबोधि समाधि दीजो,
प्रभु भक्ति सदा जयवंत हजो.
जिन भजके भवका पार लहूं;
प्रभु भजके भवका पार लहूं;
गुरु भजके भवका पार लहूं;
बस! एक यही मन आश धरूं.
श्री जिनेन्द्रदेवने विनंति
(अहो....सीमंधरनाथ, ज्ञायक अंतरयामीए राग)
अहो जगतगुरु एक सुनियो अरज हमारी;
तुम हो दीनदयाळ मैं दुखिया संसारी.
इस भव वनमें बादि काल अनादि गमायो;
भ्रम्यो चहुंगति मांही सुख नहि दुःख बहु पायो.

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कर्म महा रिपु जोर एक न कान करे जी;
मनमाने दुःख देही काहूसों नाहिं डरे जी.
कबहूं इतरनिगोद कबहूं नरक दिखावे;
सुरनर पशुगति मांहीं बहु विध नाच नचावे.
प्रभु इनको परसंग भवभव मांहीं बुरोजी;
जे दुःख देखे देव तुमसों नांही दुरोजी.
एक जनमकी बात कही न सकुं सुनि स्वामि;
तुम अनंत परजाय जानतु अंतरजामी.
मैं तो एक अनाथ ये मिल दुष्ट घनेरे;
कियो बहुत बेहाल सुनियो साहिब मेरे.
ज्ञान महा निधि लूंटी रंक निबल करी डार्यो;
इनही तुम मुज मांही हे जिन! अंतर पाड्यो.
पाप पुन्य मळी दोय पायनि बेडी डारी;
तन कारागृहमांही मोही दियो दुःख भारी.
इनको नेक बिगार में कछु नांही कियो जी;
बिन कारण जगवंद्य बहुविध वैर लियो जी. १०
अब आयो तुम पास सुन जिन सुजस तिहारो;
नीति निपुन जगराय कीजे न्याय हमारो. ११
दुष्टन देहु निकाल साधुनकों रखि लीजे;
विनवे भूधरदास, हे प्रभु ढील न कीजे. १२

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श्री वीर जिन स्तवन
वीर तुम्हारी छबि मन भाये...निरखत नैनां थक थक जाये.
सुरपतिने दर्शन करने को सहस्र नेत्र बनाये...
तेरी सूरत मेरी आंखों में बसी रहती है,
याद हर वख्त तेरी दिलमें लगी रहती है;
जीमें आता है कि होकर मैं तेरा पास रहूं,
सर झुका के फक्त मुंहसे यही बात कहूं...वीर.
आ के दुनियां में आपने बडा उपकार किया,
दे के उपदेश कई जीवों का उद्धार किया;
जिसने आ के तेरे कदमों में झुकाया सर को,
फिर कोई चाह न बाकी रही उस जीव को;
इतना कहना था कि पंकज पै दया हो जावे...वीर.
हिन्द में बहाईथी उपदेश की धारा अथा,
वह धर्म सुनने भव्य को होतीथी व्यथा,
उनकी व्यथा मिटानेको संदेश तेरा सुनाने को;
गुरु क्हान आये भरतमें आधार भवि जीवन को,
साक्षात् करदी तेरी छबि प्रभु भव्य जीव के नेत्र को....वीर.

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श्री जिनेन्द्र भजन
हो के कर्मोंसे तंग, वीर तेरी शरण, आज आना पडा.
मैं बिन ज्ञान के जगमें भ्रमता फिरा...स्वामी.
सतगुरु की नहीं सेवा कीनी जरा,
कषायमें रम गया, धर्मसे चूक गया, पछताना पडा.
पुण्य पापकी चक्कीमें पिसता रहा....स्वामी.
मिथ्या मत में पडा वक्त खोता रहा.
झूठा अभिमान कर, रत्नत्रय तजकर, दुःख उठाना पडा. २
करुणा ऐसी करो कर्मबंधन कटे....स्वामी.
शुद्ध स्वरूप मिले सब कषाय कटे,
मुक्ति पाने को ही, तेरे चरणोंमें ही, चित्त लगाना पडा. ३
आया जो भी तुम्हारे दरबारमें....स्वामी.
वाणी सुन हो गया मुग्ध एक बारमें.
पंकज कर जोडकर, मनका भ्रम छोडकर, शिर झुकाना पडा. ४
श्री जिनेन्द्र भजन
मैं तेरा हूं, मैं तेरा हूं...पा दरशन तेरा हरषाया हूं....!
मझधार में शुभ नांव यही, परवार यही,
भव तिरनेका उपचार यही (२)

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यह भवदुःखसे छूटनेका आधार यही
भव तिरनेका उपचार यही. (२)
घनघोर तिमिर अज्ञान हटाकर आया हुं. मैं०
आशा ही नहि विश्वास सही,
आये जो शरन जगजीत अमर
सौभाग्य चढे हैं मुक्त महल;
कहते हैं सुगुरुवर ज्ञान प्रखर स्वामी
स्वामी तुं तीन लोकका तारा है,
और मैं चरणोंका प्यारा हूं. मैं०
श्री महावीर जिनभजन
तुम्हीं हो एक सहारे...त्रिशलानंद दुलारे.
अबलों अधम अधोगति अगणित, रुल रुल जीवन धारे,
करकश क्रूर कठोर मोहने केदी कर कर मारे.
बार बार दुःखदर्द दलित हो, दीनपति तव द्वारे,
आकर आज चरनमें अरजी, अर्पित करी तुम्हारे.
तुमने तसकर तिर्यंचादिक ततछिन तीर उतारे,
तारणतरण तेज तज तेरा क्यों भटके अंधियारे.
साख सुसिद्ध सुनी शासनकी, मन सारंग हमारे,
शिव सौभाग्य साधना सेती जय जय गान उचारे.

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श्री महावीरभजन
(हे वीर! तुमारी मुद्राका....)
महावीर तुमारा यश गाने, इक भक्त द्वार पर आया है,
श्री वीर तुम्हारी करुणासे, नव हार गूंथ कर लाया है.
तेरी आकर्षक प्रतिमा लख, वह दिलमें बहुत हर्षाया है;
हे गुण भंडारे वीर प्रभो, तेरा गुण गाने आया है.
हे शक्ति अपारा वीर प्रभो, नव आशा लेकर आया है,
करुणाकर आशा कर पूरी, अब शरण तिहारी आया है.
हे दीननाथ दया सागर, महावीर गुणों के मधु आगर,
कृपाकर दर्शन दे दीजे, अरदास प्रभो यह लाया है.
सर्वस्व हृदय के कर्णधार, सेवक आशा के नव सितार,
‘शेठी’ को पार उतारो अब, गुण गाने तेरा आया है.
श्री जिनराजभजन
दिनरात ये, तुमसे है लगन कि रहुं तुझमें ही मगन....दिनरात ये.
मतलबी संसार से अब ऊब गया मन,
दौडकर जिनराज तेरी आ गया शरन,
आजसे तुमारा हुआ, तुम मेरे भगवन्....तुं.
यह चहूं प्रभु कि मेरा बंध तूट जाय,
भवसे पार होने का अवसर आ जाय,
है यही विनय कि तेरा शीघ्र हो मिलन...तुं.

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तुम भुला दो मुझको चाहे मैं न भुलाउं,
मैं सदा निज मनमें तेरा ध्यान लगाउं,
अष्टप्रहर भक्ति गान गा रहा ‘रतन’....तुं.
श्री जिनवर भजन
(भक्ति भाव भजके....)
भजु भाव सजके जग माया तज के
चले जाउं प्रभुके सामने.....चले जाउं.
सम्यक् दर्शन सजके ज्ञानचरित भजके
चले जाउं प्रभुके सामने....चले जाउं.
दिल लगाके कभी न भूलना,
भाव लगाकर धुनमें झूलना...धुनमें.
तरुं भव जलसे, भजी शुद्ध दिलसे,
गीत गाउं प्रभुके सामने...गीत गाउं.
भक्ति की धुनमें प्रीति है जिन से,
जगकी झंझटमें भूलुं न दिलसे...भूलुं न
जिनवाणी सुनके मैं मयुर बन के
नाच नचुं प्रभुके सामने...नाच नचुं.
जाना है हमको मुक्ति के किनारे,
जीवन है सुपरत प्रभुके सहारे...प्रभुके.

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प्रभु चंद्र स्मर के मैं चकोर बनके,
चले जाउं प्रभुके सामने चले जाउं.
भूली दुनियां के मैं भजन करुंगा,
प्रभुको भजके मैं मोक्ष वरुंगा...मोक्ष.
जैन झंडा फहराके आत्मभाव जगाके,
चले जाउं प्रभुके सामने....चले जाउं. ५
श्री महावीर जिनभजन
(वीर तेरे चरणोंमें झूमे झूमे)
वीरके चरणोंका हमें तो एक सहारा है,
शरणमें आये हैं न कोई ओर हमारा है. (टेक)
जिन का है शुभ नाम जगतमें जिनका है शुभ नाम,
काटे कष्ट तमाम जगत के काटे कष्ट तमाम;
ऐसा है महावीर उन्हीं को आन पुकारा है.
तोड कर्म का जाल जगतमें तोड कर्मका जाल,
कर दिया निहाल जगत को कर दिया निहाल;
धर्म की रेलमछेल वही तो करने हारा है.
तुम हो दीनानाथ प्रभुजी तुम हो दीनानाथ,
हम हैं दीन अनाथ प्रभुजी हम हैं दीन अनाथ;
वीतराग मशहूर वीर इक देव हमारा है.

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तारे हाथी शेर प्रभु जी तारे हाथी शेर,
मेरी बार अवेर प्रभु क्यों मेरी बार अवेर;
मुझे भी तारो जी दास ‘शिवदास’ तुम्हारा है.
श्री जिनराजभजन
आज तेरा गुणगान करुं भगवान,
(कि) मैंने तुमसे लगाया तार...
प्रभु नाथ तूंही तार कभी तूंही,
तुझ को सब भगवंत कहते हैं,
तुं नाथ कहलाये ले ले खबर,
हम दिलमें तुझे याद करते हैं,
मेरी ही दिलमें आजा मेरे भगवान,
(कि) करदो बेडा मेरा पार...१
तेरा ही बनाले मुझको प्रभु,
तेरे बिन मेरे कोई नहीं,
जीवनकी सफर तुं करदे सफल,
मुझे ओर कोई उम्मीद नहीं,
छोड के दिल के तार करुं तुम ध्यान,
(कि) प्रभु है तूं ही तारणहार....२

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श्री महावीरजन्मकल्याणक
(कहे राजुलदे नार....जरा मेरी भी पुकार....)
कुंडलपुरी के मंझार, छाया हरष अपार,
सुनो सुनो नरनार
चलोजी वहां जय जय बोलिये,
रसना खोलिये....(टेक)
ओ, चैत सु तेरस आई,
क्या सुन्दर प्रभात है लाई,
चले सुगंध बयार,
है वसंत की बहार...सुनो०
ओ, उत्सव कहो क्या है आज जी,
क्यों हर्षित है सारा समाज जी,
बाजे बजे हैं अपार,
सुरनर बोले जयजयकार...सुनो०
ओ, जन्मे हैं वीर भगवानजी,
उनका करने को जन्म कल्याणजी,
आये देव हैं अपार,
जायें सुमेरु पहाड...सुनो०
ओ, हम भी तो उत्सव मनायें,
करें न्हवन प्रभु गुण गायें,

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शिवरामा सुखकार,
भरे पुण्यका भंडार...सुनो०
श्री महावीर प्रभुने वंदन
त्रिशला नंद तुम्हें वंदना हमारी है, वंदना हमारी है....
....हां....वंदना हमारी है....
दुनियां के जीव सारे तुम को निहार रहे,
पल पल पुकार रहे, हितकर चितार रहे.
कोई कहे वीर प्रभु कोई वर्द्धमान कहे,
सन्मति नाथ तूंही तूंही उपकारी है...त्रि.
मंगल उपदेश तेरा कर्मोंका काटे घेरा,
भव भवका काटे फेरा शिवपुर में डाले डेरा.
आत्म सुबोध करें रत्नत्रय निज धरें,
शिवतिय सौभाग्य वरें यही दिल धारी है....त्रि.
श्री सीमंधार जिन स्तवन
प्रभुजी मोरे आओ...प्रभुजी मोरे आओ....प्रभुजी.
चहुं ओर छाई है उदासी,
अखियां दर्शन बिन है प्यासी....
इनकी प्यास बुझाओ...रिझाओ....अब आओ प्रभुजी. १

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भक्ति में अब विरला माने,
प्रभु तुझे कोई विरला जाने....
आ के दर्श दिखाओ....प्रभुजी मोरे.
छिन छिन नाम जपुं में तेरा,
धर्मनगरमें तेरा ही डेरा.....
आ के धर्म सुनाओ विनति सुन जाओ....प्रभुजी मोरे.
श्री महावीर जिन स्तवन
महावीर हमारे, आंखों के दुलारे, चरणोंमें हम तेरे, आ गये....
मेरे मनमें, मेरी नजरमें, बस तुम्हीं समा गये.....
मुझको है फक्त आपका ही एक सहारा,
दूजा न कोई और भला देव हमारा.
नैया को मोरी पार करो आके भंवर से,
सेवक हुं तेरा आन के तूं मेरी खबर ले.
जाउं कहां मैं छोड के अब तुम तो बताओ,
‘पंकज’की विनय है यही मत मुझको भुलाओ,
महावीर हमारे...आंखे के दुलारे.