Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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इस विध संकटके अवसर पर जिसने तुमको ध्याया था,
दुःख मिटा सुखवृद्धि कीनी भवसे पार लगाया था;
मेरा भी दुःख दूर करो प्रभु आया शरण तुम्हारी...तुम बिन.
श्री जिनेन्द्र स्तवन
हो मोरे स्वामी हो हियामें समाये मनको लुभाये...
आंखे हैं दर्शनकी प्यासी, कबसे है देखो यह उदासी
सांच कहु ओ...तुम बिन पाये कल नहीं आये....१
आवोजी मेरी विनति सुन लो, अपनी सेवामें मुझे चुन लो
सब जग हो तेरा गुण गाये शीश झूकाये....२
मेरे तो तुमही हो सहाई, ‘पंकज’ने महिमा तोरी गाई
कोई मुझे हो तुमसे मिलाये दिन आये....३
श्री सीमंधार जिन स्तवन
मेरे प्रभु के बिन देखें नहीं चैन आये...
जीवनमें आवो प्रभु हमारा, तुमका ही है एक सहारा....
आवोजी...दर्शन बिना तरसें नैना, नहीं चैन आये....१
दर्श दिलाके सबको जगाने, मुक्ति का मारग बताने
आवोजी....दर्शन बिना तरसे नैना, नहीं चैन आये...२

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करके कृपा दुःख मेटो हमारे, ‘पंकज’ खडा तेरे द्वारे....
आवोजी...दर्शन बिना तरसे नैना, नहीं चैन आये....३
प्रभुजी के चरणाxमx
(चली कौनसे देश...)
लगे आनके नैन सांवरिया तुम चरणनमें....
जाउं मैं बलि बलि है (२) प्रभुजी तुम चरणनमें,
जब से रूप निहारा तेरा भीड भगी विपदा अघ मेटा,
खुले कठोर कपाट हृदय के तुम चरणनमें....१
मोहभावकी तूटी लडियां आत्मबोधकी जुडी सु कडियां,
बांधी ज्ञान गठान प्रभुजी तुम चरणनमें....२
रत्नत्रय निधि प्रगटे मेरी मुक्ति रमा हो पदकी चेरी,
पाउं यह ‘सौभाग्य’ प्रभुजी तुम चरणनमें....३
श्री जिनवर स्तवन
श्री जिनवर को ध्याउं मैं...पाउं मैं.....
मेरा संकट दूर करो प्रभु मेरी लज्जा आन रक्खो,
मुज दुःखिया के नाथ तुम्हीं हो, जीवन के आधार तुम्हीं हो,
तेरा ही गुण गाउं मैं....१

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सहाय करी तुमने सीता की चीर बढाया द्रौपदीका,
मेरा भी प्रभु कष्ट नीवारो, पंकज के हृदयमें आओ,
मनकी आशा पाउं मैं....२
दिवाली स्तवन
(दिवाली फिर आ गई सजनी...)
दिवाली नित ही रहे मनमें...
ध्यान का दीप जलाउं...हां....हां....ध्यान का दीप जलाउं,
तेरी छबी है लक्ष्मी मेरे हृदय बिच बिठाउं,
भक्ति भावसे पूजा कर के रोमरोम हरषाउं;
प्रभु दरशनसे, ज्ञान-चरनसें, आतम ज्योति जगाउं....१
आया प्रभु मैं तेरे धामको, लेकर मनकी आशा,
मिट गया अज्ञान अंधेरा चमके ज्ञान हंमेशा,
होने सिद्धि अरु यश वृद्धि एक यही है संदेशा...२
श्री सीमंधार जिन स्तवन
(रास रे घूम्मरीयालाल)
प्रभु तुमारा मुखडा उपर वारी वार हजारी रे....
सुवर्णनगरमां नाथ बिराजे, मूरती मोहन गारी रे...
ज्ञान भर्युं तुज मुखडुं सोहे, दूर करे जगत अज्ञान,

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दर्शन करतां दील बहकावे, तम-मन थाय एकतान;
आज तारी माया लागी जागी ज्योति नीराली रे....प्रभु०
देश
विदेशथी यात्रिक आवे, अजब तीर्थनुं धाम;
बिराजे सीमंधर दादा सहु जनना विश्राम....
चार दिशामां नजर प्रभुनी वरसे उपशम धारा रे,
मानस्तंभनी शोभा वधारी भविकजन आधारा रे....
प्रभु तुमारा मुखडा उपर वारी वारी हजारी रे....
तें छोड्युं जगने प्रभुजी पण जग तो तारुं दास!
पगले पगले चाली आवे भक्तोनी वणझार.
नाथ! तारी विजय पताका शासननी बलिहारी रे....
फरकावे गुरु कहान भरतमां जयजय नाथ तुमारी रे....
प्रभु तुमारा मुखडा उपर वारी वार हजारी रे....
प्रभुसx लगनी लागी
तुमसे लगनी लागी जिनवर तुमसे लगनी लागी....
अम हैडानां हार प्रभुजी तुमसे लगनी लागी....
महा विदेहे प्रभु बिराजो अम आंखोना तारा,
अमी द्रष्टिथी अम बालकने भवथी पार उतार्या....आ तुमसे० २
सीमंधर प्रभुजी आज पधारी जिनमंदिर शोभाव्या,
जिनवर तारा दरशन करतां भवना छेडा आव्या...आ तुमसे० ३

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विदेही नाथ भरते पधार्या आनंद भेरी वागी,
भक्तिथी अम हैयां ऊछळे मुद्रा देखी तारी....आ तुमसे० ४
दूर दूर प्रभु देश तुमारा विदेह धाम सुहाया,
आनंद सागर ऊछळे तारा एना स्वाद चखाया....आ तुमसे० ५
तुजने भेटु आवी प्रभुजी पगले पगले तारा,
विधविध भावे भक्ति करीने अर्पुं जीवन सारा...आ तुमसे० ६
सादि अनंतनो साथ ज तारो, लगनी तारी लागी,
नंदन विनवे तारा प्रभुजी काटो भवनी बेडी...आ तुमसे० ७
कृपाद्रष्टि प्रभु अम बालक पर वरसे नितनित तारी,
प्रसन्नताथी आतमवृद्धि नित नित मंगलकारी...आ तुमसे० ८
श्री देव-गुरुनुं शरण ग्रहीने जीवन सफळ बनाउं,
भक्तिथी भवपार करीने तुज सम मैं बन जाउं...आ तुमसे० ९
श्री जिनेन्द्र स्तवन
जगदानंदन जिन अभिनंदन,
पद अरविंद नमूं में तेरे....
अरूनवरन अघताप हरन वर
वितरन कुशल सुशरन बडे रे....
पद्मासन मदन मद भंजन,
रंजन मुनिजन मन अलिके रे...जगदा.

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ये गुन सुन मैं शरने आयो
मोही मोह दुःख देत घने रे....
ता मद भानन स्वपर पिछानन
तुम बिन आन न कारण है रे...जगदा०
तुम पद शरन ग्रही जिननें ते
जामनजरामरन निरवेरे....
तुमतें विमुख भये शठ तिन को,
चहुं गति विपत महाविधि पेरे...जगदा०
तुम रे अमित सुगुन ज्ञानादिक
सतत मुदित गनराज उकेरे....
लहत न मित्त मैं पतित कहों किम,
किन शिशुगन गिरिराज उखेरे....जगदा०
तुम बिन राग दोष, दर्पन ज्यों
निज निज भाव फलें तिन केरे...
तुम हो सहज जगत उपकारी
शिवपद सारथवाह भले रे...जगदा०
तुम दयाल बेहाल बहुत हम,
काल कराल व्याल चिर घेरे....
भाल नाय गुनमाल जपूं तुम
हे दयाल दुःख टाल सबेरे...जगदा०
तुम बहु पतित सु पावन कीने
क्यों न हरो भव संकट मेरे....

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भ्रम उपाधि हर शम समाधि कर
‘दौल’ भये तुमरे अब चेरे...जगदा०
श्री महावीरभजन
जय जय जय सब मिलकर बोलो.....महावीर भगवान की....४
सिद्धारथ कुल के ऊजियारे,
त्रिशला की आंखों के तारे,
विश्व प्राणियों के हित वारे, वर्द्धमान भगवान की....४....जय०
भारत के अंतिम अवतारी,
दोष रहित गुण के भंडारी,
सकल ज्ञेय के शुभ ज्ञातारी, श्री सन्मति भगवान की....४..जय०
पंद्रहमास रतन की वरसा,
जन्मपूर्व कर हरि अति हर्षा,
अतुल आंतरिक भक्ति दर्शा, कीनी स्तुति भगवान की...४..जय०
वस्तु धर्म जिनने बतलाया,
जनता का अज्ञान भगाया,
अनेकांत का पाठ पढाया, ऐसे श्री भगवान की....४....जय०
आज यही पावन तिथि आई,
जब जन्मे महावीर शिवदाई,
हर्षित हो सौभाग्य सु गाई, गुण गाथा भगवान की..४...जय०

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श्री जिनेन्द्र स्तवन
भज ले...भज ले....भज ले.....
छोड के ममता, धर के समता, ध्यान रमता....!
प्रभु के जाप को जपना, यह जग सपना, न कोई अपना,
ये दिल चाहे नगर शिवपुर में जाने को मिलाने को....१
यह जग मायामें नहीं शरना प्रभु बिना नहीं तरना,
प्रभु के ध्यान से तेरी तरी नौका मिला मोका....२
कहें ‘पंकज’ नमें मस्तक प्रभु ध्यान सदा ध्याना,
करो भक्ति मिले मुक्ति मैं जाने को मिलाने को....३
श्री अष्टािÛकाभजन
(रागः होरी काफी)
आयो परब अठाई चलो भवि पूजन जाई.....
श्री नंदीश्वर के चहुं दिशमें बावन मंदिर गाई;
एक अंजन गिरि चार दधि मुख रतिकर आठ बनाई;
एक एक दिशमें ये गाई...आयो०
अंजन गिरि अंजन के रंग है दधिमुख दधिसम पाई;
रतिकर स्वर्ण वर्ण है ताकी उपमा वरणी न जाई;
निरूपमता छबि छाई....आयो०

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स्वर्ग लोक के सर्व देव मिल तहां पूजन को जाई,
पूजन वंदन को हमरो जी बहुत रह्यो ललचाई;
करुं क्या जा न सकाई....आयो०
यातें निज थानक जिन मंदिर तामें थाप्यो भाई;
पूजन वंदन हर्ष से कीनो तन मन प्रीत लगाई;
‘सिखर’ मनसा फल दाई....आयो०
नंदीश्वर जिनधाामस्तुति
(जय जय जय सब मिलकर बोलो)
हिलमिलकर सब भक्तों चालों नंदीश्वर जिन धाममें.......४
अष्टम द्वीपमें जो है राजे
शाश्वत जहां जिनबिंब बिराजे;
दिव्य जिनालय बावन सोहे;
चहुं दिश वावडी पर्वत शोभे.......
महिमा अति भगवानकी (४) हिल.
जिनबिंब की शोभा भारी
वीतरागता दर्शक प्यारी;
मानस्तंभ छे रत्नना भारी,
करे देव सेवा सुखकारी.....
जिनेश्वर भगवानकी.....(४) हिल.

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नंदीश्वर की महिमा गाउं,
दर्शनपूजन चित्तमें लाउं;
पहुंचन को तो वहां न पाउं,
हृदय स्थापी फिर फिर ध्याउं.......
वीतरागी भगवान को.....(४) हिल.
स्वर्णधाम की शोभा सारी,
कहान गुरु की वाणी प्यारी;
मानस्तंभ छे उन्नत भारी,
गंधकुटी दिसे मनोहारी......
शोभा जिनवरधामकी.....(४)
शोभा सुवरनधामकी....(४) हिल.
देशदेश के यात्री आकर,
गुरुकहानका परिचय पाकर,
आत्मतत्त्वका प्रवचन सुनकर,
गाता है निज हृदय खोलकर,
महिमा गुरुवर कहान की......(४) हिल.
अष्टािÛकाभजन
(रागअब सुणो सहु संदेश...)
श्री सिद्धचक्र का पाठ, करो दिन आठ, ठाठसे प्रानी,
फल पायो मैना राणी....(टेक)

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मैना सुंदरी इक नारी थी, कोढी पति लखी दुःखियारी थी;
नहीं पडे चैन दिनरैन व्यथित अकुलानी....
फल पायो मैना०
जो पतिका कष्ट मिटाउंगी, तो उभय लोक सुख पाउंगी;
नहीं अजागल स्तनवत निष्फल जिंदगानी...
फल पायो मैना०
इक दिन गई जिन मंदिरमें, दर्शन करी अति हर्षी उरमें;
फिर लखे साधु निर्ग्रंथ दिगंबर ज्ञानी.....
फल पायो मैना०
बैठी मुनि को करी नमस्कार, निज निंदा करती बारंबार;
भरी अश्रु नयन कही मुनिसों दुःखद कहानी....
फल पायो मैना०
बोले मुनि पुत्री धैर्य धरो, श्री सिद्धचक्र का पाठ करो;
नहीं रहे कुष्ट की तनमें नाम निशानी....
फल पायो मैना०
सुनि साधु वचन हर्षी मैना, नहीं होय झूठ मुनिके वैना;
करी के श्रद्धा श्री सिद्धचक्र की ठानी....
फल पायो मैना०
जब पर्व अठाई आया है, उत्सवयुत पाठ कराया है;
सबके तन छिडका यंत्र न्हवन का पानी....
फल पायो मैना०

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गंधोदक छिडकत वसु दिनमें, नहि रहा कुष्ट किंचित तनमें;
भई सात शतककी काया स्वर्ण समानी.....
फल पायो मैना०
भव भोग भोगी योगेश भये, श्रीपाल कर्म हनी मोक्ष गये;
दूजे भव मैना पावे शिव रजधानी....
फल पायो मैना० ९
जो पाठ करे मन वच तनसे, वे छूटि जाय भव बंधनसे;
‘मकखन’ मत करो विकल्प जिन वानी....
फल पायो मैना० १०
श्री सिद्धचक्रका पाठ, करो दिन आठ, ठाठसे प्रानी;
फल पायो मैना रानी.....
श्री नंदीश्वर जिनधाामभकित
(अब सुणो सहु संदेश.....)
शाश्वत नंदीश्वरधाम जिनेन्द्र के धाम
सदा सुखकारा.....जीवनमें नाथ सहारा.....
अष्टम द्वीपकी शोभा भारी,
इंद्रो की भक्ति अजब प्यारी,
प्रभु भक्ति करी इस जगसें हो भवपारा.....जी. १

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शाश्वत जिनजी का पूजन करो,
परमात्म स्वरूपका ध्यान धरो,
प्रतिबिंब स्वरूप जिनबिंबि जगतमें प्यारा......जी.
अरहंतसम मुद्रा जिसकी है,
मानुं दिव्यध्वनि अभी छूटती है,
ऐसे छप्पन सों सोळ रतनमय सारा....जी
दर्शन करनेको तलसे हृदय हमारा....जी.
करीए जिनमंदिर पूजन आज तमारा......जी.
मैं बहुत दिनों से तरसा था,
पर चैन कहीं नहीं पडता था,
अब मिले मुक्ति दातारा....जिनवर प्यारा....जी.
अब मिले मुक्ति दातारा....गुरुवर प्यारा......जी.
श्री महावीरभजन
प्रभु वीर की हम भक्ति मचाएं, सुसंदेश उनका जगतको सुनाएं
प्रभु वीर का हम पै उपकार भरी, है उपकार भारी,
गद्गद होकर के उस को संभालें.....१
आतम की निधि बताई प्रभुने, बताई प्रभुने,
आज भक्त सारे हैं दे ते दूआएं....२
सभी आत्माओं को समझो बराबर, समझो बराबर,
यही पाठ समता सभी को पढाएं....३

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नहीं धर्म जैनी से बढ कर के कोई, न बढ कर के कोई,
वीरने ही दुनियां में डंका बजायें....४
अनेकान्त तत्त्व है जग से निराला, है जग से निराला,
इसी से ये झगडे मतों के मिटायें....५
तेरी आत्मा ये परमात्मा है, ये परमात्मा है,
पहचान कर के शिव आनंद पायें....६
श्री परमात्मा - भजन
(रागमांड)
म्हारा परमातमा जिनंद कांई थारे मारे
करमांईरो आंटो परमातमा जिनंद (टेक)
जाति नाम कुल रूप सबजी तुम हम एकामेक,
व्यक्ति शक्ति कर भेद दोय कोई कीने करम अनेक.
तुम तो वसुविधि नाशिके भये केवलानंद,
मैं वसुविध वश पड रह्यो मोय करो निर फंद.
अधम उधारण बिरद सुनजी पारस शरण गहीन,
बत्ती दीप समान तुम प्रभु मोये आप सम कीन.

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श्री जिनेन्द्र स्तवन
तीनों ही भवन के तुम ही आधार, नाथ जग के,
तेरे ही भजन से बेडा हो पार, नाथ जग के (टेक)
नजर नाशा पै धराये, बैठे ध्यान लगाये
राग अरू द्वेष नशाये, तब ही जिनराज कहाये
हो तुम गुण के भंडारे, नाथ जग के....१
नहीं तुजसा कोई ज्ञानी, मधुर तेरी प्रभु वाणी
दयाळु तुम हो जगनामी, नहीं तेरा कोई सानी
तुम हो जग के हितकार नाथ जग के....२
उड्या मोह का घेरा, फक्त है आशरा तेरा
हरो संकट प्रभु मेरा, तेरा ‘शिवराम’ हे चेरा
आया है चरण मंझार, नाथ जग के....३
श्री जिनधार्म भजन
(ए मां तेरे चरणों पे, आकाश झुका देंगेए चाल)
प्राणों से प्यारा, जिन धर्म हमारा है,
संसार से तरने को, इक धर्म हमारा है. (टेक)
है पतित उद्धारक ये मशहूर जमाने में,
अंजन सा अधम पापी, इसहीने उभारा है.
वह धर्म निजातमका, जिनराजने गाया है,
यह वेद पुराणों में हर ठौर उचारा है.

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निज शीश कटा कर के, निकलंक देवजी ने,
जिन धर्म का बजवाया, दुनिया में नगारा है.
‘शिवराम’ धरम पे तुम, सर्वस्व लगा देना,
जिन धर्म हमारा ये, आंखो का सितारा है.
श्री महावीर स्वामीभजन
किए जा किए जा, किए जा भगवान की अरचा
न्हवन की चरचा वीर की अरचा किए जा....(टेक)
सु तेरस चैतकी आई अजब बहार है छाई,
श्री महावीर स्वामी का जनम दिन है मनाने का...१
करो तुम याद वह शुभ दिन, लिया अवतार अन्तिम जिन,
सुमेरु पर ले जानेका न्हवन जिनवर कराने का....२
प्रभुने राज्य को छोडा, जगत जंजाल को तोडा,
ज्ञान पाकर हमें रस्ता बताया मोक्ष जाने का...३
प्रभु चरणों में शिर नावो, सदा शिवराम गुण गावो,
हमें शिव राह दिखलाया परम सुख शांति पाने का....४
श्री जिनेन्द्रभजन
(तर्ज कव्वाली)
मेरे भगवान मेरी यही आस है,
पार कर दोगे बेडा यह विश्वास है (टेक)

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मन के मंदिर में आंखो के रस्ते तूझे,
मेरे भगवान लाना पडा है मूझे.
मेरे दिलसे न जाना यही अरदास है...मेरे०
तेरे रहने को मंदिर बनाया है मन,
तेरे चरणों पै अरपन किया तन व धन.
मेरे दिलसे न जाओगे विश्वास है...मेरे०
श्री पारसनाथ भजन
(जब चले गये गीरनार....)
जब तुम्हीं चले मुख मोड हमें युं छोड, ओ पारस प्यारा....
अब तुम बिन कौन हमारा. (टेक)
ये बादल घिर घिर आते हैं, तूफान साथमें लाते हैं,
व्याकुल होकर हमने तुम्हें पुकारा...अब तुम.
आंखों में आंसु बहते हैं, सब रो रो कर युं कहते हैं,
जब तुम्हीं ने प्रभु हमसे किया किनारा...अब तुम.
होटों पर आहें जारी हैं दिल में बस याद तुम्हारी है,
ये राज भटकता फिरे है दर दर मारा...अब तुम.

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श्री महावीर भजन
महावीर दयाके सागर तुम को लाखों प्रणाम,
श्री प्रियकारिणी
नंद तुमको लाखों प्रणाम.
पार करो दुःखियों की नैया,
तुम बिन जगमें कौन खिवैया
मात पिता न कोई भैया
भक्तों के रखवाले तुम को लाखों प्रणाम....महा.
जब ही तुम भारत में आये,
सबको आ उपदेश सुनाये
जीवों को भव तीर लगाये
बंध छुडाने वाले तुम को लाखों प्रणाम....महा.
भव्यहृदय अज्ञान हटाया
सम्यक् ज्ञानचरण प्रगटाया
सब जीवों में धर्म बढाया
धर्म वीर जिनदेवा तुम को लाखों प्रणाम....महा.
समवसरणमें जो कोई आया
उनका स्वामी परण निभाया
भव सागर से पार लगाया
भारत के ऊजियारे तुम को लाखों प्रणाम....महा.
तुम दर्शनकी भारी प्यासा
रहे सदा मिलनकी आशा

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तेरा तो सिद्धालय वासा
संतहृदय बिराजित तुमको लाखों प्रणाम....
गुरुहृदय बिराजित तुमको लाखों प्रणाम....महा.
श्री जिनेन्द्र स्तवन
(छोड गये....)
पार करो स्वामी मुझे भवसागर से पार करो,
हाथ ग्रहो स्वामी मेरे दया कर के हाथ ग्रहो;
पतित उद्धारक सब जग माने दीनानाथ वखाने
केवलज्ञानमयी अगनी से अष्ट कर्म तुम जारे....१
वीतराग छबी तुमरी सोहे जग जीवन मन मोहे,
बने हमारी सत्पथ दर्शक भ्रम तम अघ सब खोवे...२
ज्ञान उजागर तुम गुणसागर मैं अल्पज्ञ क्या जानूं,
धर्म ‘दीप’ पाउं वह शक्ति मुक्तिपुरी में आवू....३
श्री जिनेन्द्र भजन
खडे हम आकर तेरे द्वार, सुना तुम हो जग तारण हार,
अब तारो ध्यान धारो हमारी अरजी.

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मुक्ति महल के हो तुम वासी, क्या दुनियां से मेल,
फिर भी दुनियां खेल रही है, तेरे नाम का खेल,
है सब को तेरा ही आधार, जपें जो तुम्हें लागे भव पार,
अब तारो ध्यान धरो हमारी अरजी...खडे.
मोक्षद्वीप मैं झट झट ले लो आज सेवक की नईयां,
कोई न संगी, कोई न साथी, एकाएक खिवैया,
जपूं में नाम तेरा हरबार, कि जिससे नाव लगे भवपार,
तुम तारो ध्यान धारो हमारी अरजी....खडे.
श्री महावीरभजन
(आज हिमालयकी चोटीसे)
महावीर की मधुवाणी से दुनियांको समझाया है,
अंतर मुख पथ पर बढने का आदेश बताया है.
जिस की आकर्षक प्रतिभा लख मानवजन हर्षाया है,
उसी दिगंबर वीर प्रभुने केशरिया लहराया है.
अनेकान्त का अग्रदूत दुनियां को तू मन भाया है,
अपनी अद्भुत शक्तिसे जग का अंधेर मिटाया है.
विश्वपिता महावीर तुम्हारा गुण वर्णन नहीं आया है,
समय समय भक्तों तो तुमने भवसे पार लगाया है.
त्रिशला के द्रग तारे तुमने जीवन ज्योति जगाई है,
‘शेठी’ने प्रभु के चरणोंमें अपना शीश झुकाया है.