Page 111 of 208
PDF/HTML Page 121 of 218
single page version
त्रिशला की आंखों के तारे कुंडलपुर के हो उजियारे,
सबको धर्मामृत पिलवाया, शिवमारग तुमने दिखलाया,
श्वान भेक सबही को तारे, जो फिरते थे मारे मारे,
Page 112 of 208
PDF/HTML Page 122 of 218
single page version
Page 113 of 208
PDF/HTML Page 123 of 218
single page version
Page 114 of 208
PDF/HTML Page 124 of 218
single page version
आवागमनसे हमें अब छुडा दो,
श्याम वरन और सुंदर मूरत सिंहासन के मांहीं....
ठाडो सेवक अरज करत है सुनो गरीब निवाज.....;
Page 115 of 208
PDF/HTML Page 125 of 218
single page version
अशुभ गये शुभ प्रगट भये है, निज पर भेद लखायो,
जीव चेतना ज्ञान मयी है ताको पार न पायो,
ज्ञान अनंत दर्श सुख वीरज देखत मन ललचायो,
Page 116 of 208
PDF/HTML Page 126 of 218
single page version
कांपे जाउ, दीखे ना कोई पराधीनता बिन जोई,
मैं तुम बिन भटक्यो दुःख भोगे तुमतें छानी ना कोई,
तन धन जोबन दगाबाज है निर्णय कर लीनो यों ही,
थे ही तारन तरन छोजी थे छो गरीब निवाज,
Page 117 of 208
PDF/HTML Page 127 of 218
single page version
तुम बिन आन देव संग मेरा अबतक बहुत अकाज भया....१
त्रिभुवनमें तारक तुम ही हो, मो उर निश्चय आज भया....२
काललब्धितैं अब तुम भेटो तुम्हें देख भ्रम भाज गया....३
बलदेव तुम्हारी शरण ग्रही है तुम्हें फरस मैं निहाल भया....४
Page 118 of 208
PDF/HTML Page 128 of 218
single page version
वीतरागी छबी नीरख रावरी मिथ्या देव दीये छिटकाय....१
तुम पद पंकज को प्रभु अब में सेउं मन-वच-तनडो लगाय....२
तुम हो जगत के बांधव प्रभुजी बिन कारण सबको सुखदाय...३
तुम को दीन दयाल जानकर बलदेव शरन गही तोरी आय....४
होत हर्ष अति निरख निरख छबि दर्श देख प्रभु तारे....२
बलदेव भवभव यह जांचत मोहे दीजे दर्श तिहारे....३
Page 119 of 208
PDF/HTML Page 129 of 218
single page version
निरखत मूरत तेरी नैनां जैसे चन्द्र चकोर...
जैसे चातक चहत मेघकुं घन गरजत जिम मोर....
ज्ञान कहे धन भाल हमारा वंदे दोउं कर जोर....
माता मोरा देव्या धन तुम जाया ॠषभ जिनंद....
जाके दरशन तें सुख उपजे मिट जावे दुःख फंद....
वाके मुख पर वारुं मैं हितकर ‘चिरंजी रहो तेरा नंद’....
Page 120 of 208
PDF/HTML Page 130 of 218
single page version
Page 121 of 208
PDF/HTML Page 131 of 218
single page version
श्री जिन चरण कमल परसत ही विघन गये सब भाजजी....
सफल भई अब मेरी कामना सम्यक् हिये बिराज जी....
नैन वचन मन शुद्ध करन को भेटे श्री जिनराजजी....
सुंदर मूरत प्रभुजी की कहिये नित उठ दर्शन करणो....
धन दौलत और माल खजाना इन को म्हारे कांई करणो....
अब सेवक हितकर गुण गावे भवदधि पार उतरणो....
श्री जिन राज दयानिधि भेटे हर्ष भयो उर अंग....बन्यो०
श्री गुरु राज बहु श्रुतधारी आतम सुख अनंग....बन्यो०
तत्त्वारथ की चरचा पाई साधर्मी को संग....बन्यो०
ऐसी विधि मोहे भवभव दीजो धर्म प्रसाद अभंग....बन्यो०
Page 122 of 208
PDF/HTML Page 132 of 218
single page version
सब तत्त्वन में सार हैजी आतमा, ज्यों मुख उपर नैन...१
याही लखै सबही लखैजी, या बिन नांही मिले सुखचैन....२
याकी महिमा को कहेजी, जाकुं ध्यावत मुनि दिन रैन....३
पारस ध्यावो तास को जी, पावो शिव भाखी जिन वैन....४
पाप विनाशे, पुन्य प्रकाशे, भव सागर तें करत उद्धार....
तुमरे नाम सुने जो निशदिन भव सागर तें उतरे पार....
पारस भक्ति धरे है निश्चे होता मुक्तित्रिया भरतार.....
Page 123 of 208
PDF/HTML Page 133 of 218
single page version
Page 124 of 208
PDF/HTML Page 134 of 218
single page version
Page 125 of 208
PDF/HTML Page 135 of 218
single page version
भोग रोग सम जान के दिये सर्व छिटकाय,
निज आतमरस पीयके भये त्रिभुवन के राय,
Page 126 of 208
PDF/HTML Page 136 of 218
single page version
Page 127 of 208
PDF/HTML Page 137 of 218
single page version
समो सरण दरबार आजे समोसरण दरबारजी......
त्रण भुवनना नाथ पधार्या, पधार्या सीमंधर नाथजी......
केवळज्ञान गुणाकर प्रगट्या, प्रगट्या चैतन्य देवजी......
ॐकार ध्वनिना धोध छूट्या, ऊछळ्या समुद्र अपारजी......
इंद्रोए मळी उत्सव कीनो, घरघर मंगलाचारजी......
घनघन घनघन घंटा वागे, देव करे जयकारजी......
सुवर्णपुरे समोसरण पधार्या जिनेन्द्र दरबारजी......
जिनवर वैभव आज निहाळी हैडा हरखी जायजी......
अष्ट भूमिनी शोभा अद्भुत, महिमानो नहि पारजी......
सभा भूमिमां मुनि अर्जिका, सुरपति नरपति वृंदजी......
लयलीन बन्या सहु प्रभु ध्वनिमां अंतर आतम ऊछळ्याजी......
श्री तीर्थंकर वैभव केरा गुणो केम गवायजी......
त्रण भुवनमां महिमा तारी महिमाना भंडारजी......
स्वर्ग पुरीथी इंद्रो आवे नृत्य करे जयकारजी......
कहानगुरुना परम प्रभावे समोसरण नीहाळ्याजी......
कहानगुरुए रहस्य खोल्यां खोल्या मुक्ति मारगजी......
सेवकने प्रभु शरणे राखो ए ज अरज दिनरातजी......
Page 128 of 208
PDF/HTML Page 138 of 218
single page version
नगर द्वारका जन्म लियो है सुरपति आय उछाव कियो है,
समुदविजय शिवादेवीका नंदन तीनुं ज्ञान धरेला है,
इन्द्राणी महल पठाया है, जिनराजकुं गोद लगाया है;
समुदविजय शिवादेवी के घर जय जय कार हुआ,
सब देव अपसरा हर्ष भई जहां तांडव नृत्य करेला है
क्षीरोदधि देव पठाया है, जल हाथूंहाथ मंगाया है;
सौधर्म अरू ईशान इन्द्र सहस्र
जहां बात चली बलकारी है, तहां अंगुरी सांसर डारी है;
सब ही जोधा मिल खींचत है, तहां कृष्ण गोपका मुसकत है,
हरि हर्ष धार मनमें विलखे, अब कारन कौन करेला है
Page 129 of 208
PDF/HTML Page 139 of 218
single page version
उग्रसेनसुं नेह लगाया है, प्रभु व्याह कबूल कराया है;
छप्पनकोडि जादु सब मिलके, सजि चाले जूनागढकुं,
जहां तोरण पर गये नेम प्रभु, तहां देख्या प्रभु सकेला है
तहां घातिया कर्म खिपाया है, प्रभु केवलज्ञान उपाया है;
आप मुक्ति का राज किया मैं शर्न आपकी आन लया;
करि इन्द्र चन्द्र कर जोर कहें मोहें जगसे पार करेला है.
Page 130 of 208
PDF/HTML Page 140 of 218
single page version