Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री महावीर भजन
(तुमको लाखों प्रणाम...)
सब जगसें वीर निराले तुम को लाखों प्रणाम....तुमको....
त्रिशला की आंखों के तारे कुंडलपुर के हो उजियारे,
जगजीवन के हो हितकारे, तुम हो मुक्तिवाले....तुमको....१
सबको धर्मामृत पिलवाया, शिवमारग तुमने दिखलाया,
जगको हित अपना बतलाया, तुम हो स्वामी हमारे..तुमको...२
श्वान भेक सबही को तारे, जो फिरते थे मारे मारे,
कर दो मेरी नांव किनारे, तुम हो तारन वाले....तुमको....३
जिनेन्द्र दर्शनस्तुति
हम तो दर्शन को जायेंगे झूम झूम कर!
भक्ति करेंगे घूमघूम कर.....
देखो कैसी मनोहर है प्रतिमा प्रभु
गुण गायेंगे आयेंगे घूमघूम कर.
वीतरागी झलक कैसी आभा अहा!
हम तो देखेंगे हर्षित हो झूमझूम कर.
काट कुमरेश अपने करम दर्श कर
हम तो चरणोंको आयेंगे चूमचूम कर.

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श्री जिनेन्द्र स्तवन
दीनबंधु हो प्रभो दुःखियों के जीवन प्राण हो,
आनंद सिंधु हो तुम्हीं सारे सुखोंकी खान हो.
घट घट के ज्ञाता आप है क्या आपकी महिमा कहे,
भक्तवत्सल नाथ हो भक्तों की तनकी जान हो.
इन्द्र सुरनर भी तुम्हारा पा नहीं सकते पत्ता,
शक्तियां कहां तक कहे तुम सर्वशक्तिमान हो.
तर गये लाखों बरस वो नाम लेकर आपका,
संसार के हो प्राण तुम जगमें निराली शान हो.
दास को तो प्रेम है शिवका स्वरूप दिखाईये,
तार दो हमको हमारा नाथ तब कल्याण हो.
श्री जिनेन्द्र भजन
नजरियां लाग रही प्रभु ओर....
दीनबंधु वह है जगनायक, दीनन के ये हैं सुखदायक,
उनकी अनुपम कोर....नजरियां लाग रही प्रभु और.
नाम निरंजन सब सुखकंजन, श्री जिनराज सर्वदुःखभंजन,
लगी उन्हीं से डोर...नजरियां लाग रही प्रभु और.
उनकी छबि देख हर्षाते, इन्द्रादिक भी पार न पाते,
प्रेम जगतमें शोर...नजरियां लाग रही प्रभु और.

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श्री महावीरभजन
महावीर तेरे दर्श बिन दिल दास का बेकार है,
नाथ मुझको तार जलदी आपका इकरार है.
आप जैसी शांत मुद्रा तीन लोकमें नहीं,
फिर आपकी सेवासे किस को कब भला इन्कार है.
मोह वश अज्ञानता से भूल भारी हो गई,
प्रभु अब तो तेरी शरण मुझे मुक्तिका विश्वास है.
राग-द्वेष की बेडियोंने कसके जकडा है मुझे,
नाथ चरणों आ पडा हूं तुं जीवन आधार है.
लीला प्रभु अद्भुत तेरी कौन मुखसें गाय हम,
डूबती नैयां का तूंही मोक्षमग पतवार है.
होऊं भव भव स्वामी सेवक जोड कर विद्या विनय,
विघ्न टरता दुःख हरता तूंही जगदाधार है.
श्री वीर जिन स्तवन
भूलना ना... पार करो....ना करो.....
डूबना ना....पार करो.... ना करो....
अबतक फिरा मैं बहुत मारा मारा,
जो जो किये अपराध तुमसे छाना ना...भूलाना ना. १

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निशदिन जपूं मैं श्री वीर प्यारा,
आके लिया है तेरे दरका सहारा...हटाना...ना...२
आवागमनसे हमें अब छुडा दो,
‘पंकज’ की नैया किनारे लगादो...डुबाना...ना....३
श्री जिनेन्द्र स्तवन
(रागगोपीचंदका)
छबि नयन पियारी जी, देखत मन मोहे मूरत आपकी
श्याम वरन और सुंदर मूरत सिंहासन के मांहीं....
म्हारा प्रभुजी सिंहासन के मांहीं;
सिंहासन के मांही के मूरत सोहनी
निरत करत है सखी सभा मन मोहनी...छबि०
ठाडो इन्दर नृत्य करत है देख रहे नरनार;
म्हारा प्रभुजी देख रहे नरनार;
देख रहे नर नार के मनमें चाव है
घुंघरु ताल मृदंग और बीन बजाय है....छबि० २
ठाडो सेवक अरज करत है सुनो गरीब निवाज.....;
म्हारा प्रभुजी सुने गरीब निवाज;
सुनो गरीब निवाज के थ्यांवश दीजिये
आन पड्यो हूं दुःख दूर कर दीजिये......छबि.....३

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श्री जिनेन्द्रसमवसरण स्तुति
(राग - श्याम कल्याण)
आज कोई अद्भुत रचना रची....
जुगल इन्द्र दोउ चंवर ढूरावत, निरत करत है शची....आज०
समवसरन महिमा देखन की होडाहोड मची....आज०
स्वर्ग विमान तुल्य छबि जा के देखत मन न खची....आज०
जिन गुण सारख सब इनमें ये जिन जात खची....आज०
नवल कहे उर आवत ऐसे हर्ष धार के नची....आज०
श्री जिनेन्द्र देव स्तवन
(आशावरीः आज मैं परम पदारथ पायो....)
आज जिन चरन...शरन....हम पायो....
आनंद उर न समायो....आज जिन चरन शरन हम पायो....
अशुभ गये शुभ प्रगट भये है, निज पर भेद लखायो,
जड सपरस-रस-गंध-वरण मय तिनतैं ममत तुडायो...आज० १
जीव चेतना ज्ञान मयी है ताको पार न पायो,
लोकालोक चराचर दर्शत दर्पण सम झलकायो...आज० २
ज्ञान अनंत दर्श सुख वीरज देखत मन ललचायो,
ये जिन महिमा सुनत झौंहरी मन वच शीश नमायो...आज० ३

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श्री जिनेन्द्रभजन
(लवाणी मेरठी)
तुम बिन मेरा तीन लोक में वाली वारस ना कोई.....
जो दीखे सो सकल विनश्वर वसु विधि वस दीखे सोई...तुम० १
कांपे जाउ, दीखे ना कोई पराधीनता बिन जोई,
ज्यां सागर बीच नौका पंछी पर शरणा बिन में सोई...तुम० २
मैं तुम बिन भटक्यो दुःख भोगे तुमतें छानी ना कोई,
अब मम दुःख मेटी सुख दीजे यातें शरण ग्रही तोरी....तुम० ३
तन धन जोबन दगाबाज है निर्णय कर लीनो यों ही,
पर परिणति तज निज परिणति लहू वर मांगुं पारस योही तुम०
श्री जिनेन्द्र स्तवन
हो महाराजा स्वामी, थे तो म्हाने त्यारो म्हाका राज (टेक)
थे ही तारन तरन छोजी थे छो गरीब निवाज,
अधम उधारन जानके शरणें आया री लाज....हो०
जीव अनंता त्यारिया जा को अंत न पार,
अधम उदधि तिरजंच के बहुत किये भवपार....हो०
ऐसी सुनकर साख तिहारी आयो छुं दरबार,
भवदधि डुबत काढ मोकुं शरणे आया की लाज...हो०
अरज करुं कर जोर के विनवुं वारमवार,
बलदेव प्रभु है दास तिहारो दीजो शिवपुरवास....हो०

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श्री जिनवरस्तुति
(दादरा भैरवी)
मेरी ओर निहारो प्रभु, मैं चरणोंका दास भया...
तुम बिन आन देव संग मेरा अबतक बहुत अकाज भया....१
त्रिभुवनमें तारक तुम ही हो, मो उर निश्चय आज भया....२
काललब्धितैं अब तुम भेटो तुम्हें देख भ्रम भाज गया....३
बलदेव तुम्हारी शरण ग्रही है तुम्हें फरस मैं निहाल भया....४
श्री जिनेन्द्रभजन
मेरी सूरत प्रभु तुमसे लागी,
महर करोगे मो माउं जी....
आन देव मैं भूले रे सैये,
अब ना उनके संग जाउं जी....
पाय परुं मैं करुं विनति,
उर बिच आनंद अति पाउं जी....
पद्मासन लख प्रीति बढाउं,
हाथ जोड कर शीर नाउं जी....
अष्ट द्रव्य ले पूजा रचाउं,
ये अवसर मैं नित चाहूं जी....
दास कहे प्रभु तुम को पूजुं,
शिवरमणी को वर चाहूं जी....

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श्री जिनेन्द्रभजन
म्हारुं मन रह्युंजी लूभाय...प्रभुजी सुं मन रह्युंजी लुभाय....
वीतरागी छबी नीरख रावरी मिथ्या देव दीये छिटकाय....१
तुम पद पंकज को प्रभु अब में सेउं मन-वच-तनडो लगाय....२
तुम हो जगत के बांधव प्रभुजी बिन कारण सबको सुखदाय...३
तुम को दीन दयाल जानकर बलदेव शरन गही तोरी आय....४
प्रभुजीसे लागे नैन
तुमसे लागे नैन हमारे....तुमसे लागे नैन हमारे...
निशदिन घडी पल लगी रहत लौ नेक न चाहत प्यारे....१
होत हर्ष अति निरख निरख छबि दर्श देख प्रभु तारे....२
बलदेव भवभव यह जांचत मोहे दीजे दर्श तिहारे....३
श्री जिनेन्द्र स्तुति
प्यारी लागे छे म्हने त्हारी बतियां सैयां....
दूर होत मिथ्यात अंधेरो,
निज परिणतिकी बढत लतियां.....सैयां...
सम्यग्ज्ञान जग्यो उर अंतर,
विषय संग छूटत लतियां...सैयां...
राम कहे तुम वदन विलोकत,
जोवत शिव सुंदर बतियां....सैयां...

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जिनेन्द्रदेव वंदन
नैनां लाग रहे मोरे जिन चरनन की ओर....
निरखत मूरत तेरी नैनां जैसे चन्द्र चकोर...
जैसे चातक चहत मेघकुं घन गरजत जिम मोर....
ज्ञान कहे धन भाल हमारा वंदे दोउं कर जोर....
श्री ´षभदेव स्तुति
द्रगनभर देखन दे मुखचंद....द्रगनभर......
माता मोरा देव्या धन तुम जाया ॠषभ जिनंद....
जाके दरशन तें सुख उपजे मिट जावे दुःख फंद....
वाके मुख पर वारुं मैं हितकर ‘चिरंजी रहो तेरा नंद’....
द्रगन भर देखन दे मुखचंद्र.....
अनंत चतुर्दशी प्रसंगे
श्री जिनेन्द्रस्तवन
आज अनंत चतुर्दशी दिन छे रे.....
ए व्रत अहो अणमूल
आज दीठा जिनेन्द्र भगवानने रे....
अनंत आनंद प्रगटो मुज अंतरे रे,
ए चैतन्य स्वरूप अद्भुत....आज....

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अनंत अनंत गुणोमां प्रभु झूलता रे,
तारी भक्ति करुं दिनरात....आज....
धन्य धन्य आचार्य मुनिवृंदने रे,
नित्य आतममां रमनार....आज....
एवो अपूर्व दिन क्यारे आवशे रे,
अहो! लईए संयमना पंथ....आज....
ज्यारे थशे रत्नत्रय एकता रे,
दिन रात अहो ए धन्य....आज....
जिनदेवे क्षमादि प्रगटावीया रे,
ए आत्म व्रतो अणमूल....आज....
प्रभु केवळ ज्योति जळहळे रे,
जिनराज कृतकृत्य स्वरूप....आज....
हुं तो नजरे नीहाळुं जिनेन्द्रदेवने रे,
मुज दीलडे वसों जिनदेव....आज....
मुज मनमंदिरे जिननाथ छो रे,
प्रभु चाल्यो आवुं छुं तुज पास....आज.... १०
गुरुदेव कृपा वरसावता रे,
एनी करुणा तणो नहि पार....आज.... ११
गुरुराज प्रतापे जिन देखशुं रे,
प्रभु राचशुं चिदातम मांही....आज.... १२
देव गुरुनी समीपता पामशुं रे,
जेथी पामशुं पूर्णानंद....आज.... १३

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आनंद मंगल
आनंद मंगल आज हमारे....आनंद मंगल आज जी....
श्री जिन चरण कमल परसत ही विघन गये सब भाजजी....
सफल भई अब मेरी कामना सम्यक् हिये बिराज जी....
नैन वचन मन शुद्ध करन को भेटे श्री जिनराजजी....
जिनवर देवनुं शरण
आज म्हारे जिनवरजीको शरणो, आज म्होर जिनवरजीको शरणो,
सुंदर मूरत प्रभुजी की कहिये नित उठ दर्शन करणो....
धन दौलत और माल खजाना इन को म्हारे कांई करणो....
अब सेवक हितकर गुण गावे भवदधि पार उतरणो....
श्री देव...गुरु...धार्मनो मिलाप
बन्यो म्हारे याही घडीमें रंग, बन्यो म्हारे यही घडीमें रंग....
श्री जिन राज दयानिधि भेटे हर्ष भयो उर अंग....बन्यो०
श्री गुरु राज बहु श्रुतधारी आतम सुख अनंग....बन्यो०
तत्त्वारथ की चरचा पाई साधर्मी को संग....बन्यो०
ऐसी विधि मोहे भवभव दीजो धर्म प्रसाद अभंग....बन्यो०

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ज्ञानी गुरुकी वाणी
(रागषटरस)
सुने हम बैन श्री गुरु ज्ञानीसे...सुने हम वैन...
सब तत्त्वन में सार हैजी आतमा, ज्यों मुख उपर नैन...१
याही लखै सबही लखैजी, या बिन नांही मिले सुखचैन....२
याकी महिमा को कहेजी, जाकुं ध्यावत मुनि दिन रैन....३
पारस ध्यावो तास को जी, पावो शिव भाखी जिन वैन....४
भकित
(रागबिलावल)
या मानुष भव रत्न द्वीपमें श्री अर्हंत भक्ति इक सार....
पाप विनाशे, पुन्य प्रकाशे, भव सागर तें करत उद्धार....
तुमरे नाम सुने जो निशदिन भव सागर तें उतरे पार....
पारस भक्ति धरे है निश्चे होता मुक्तित्रिया भरतार.....
श्री जिनेन्द्र स्तवन
बिन देख्यां रह्यो नहीं जाय.......
जिनजी की लाग छबी प्रभुजी लाग छबी प्यारी....बिन देख्यां,
सहस्र नेत्र कर मघवा निरखत
तो हुं तृपत नहीं थाय....

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कोड दिवाकर कोड निशाचर,
तिन दूति तैं अधिकाय....बिन देख्यां०
नेम दरशवा जो उर धारे,
भव समुद्र तर जाय....बिन देख्यां०
श्री समवसरणस्तवन
अहो! समोसरण सोहामणां रे.....
श्री जिनवरदेवनां धाम....अहो......
समोसरण रचना विदेहमां रे,
जिहां बिराजे सीमंधरनाथ अहो....
सुवर्णपुरे समोसरण आविया रे,
जिन वैभव मंगळकार....अहो....
जिनभूमि सोहे रळियामणी रे,
अष्ट भूमिनी शोभा अपार....अहो....
तुज पासे शोभा मळी सामटी रे,
तुज महिमा तणो नहि पार....अहो....
सर्व वस्तु जगनी चरणे नमे रे,
प्रभु त्रण भुवनना नाथ....अहो....
प्रभु आत्मानंदे बिराजता रे,
गंधकुटि थकी असंग....अहो....

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मुनि अर्जिका सभामांहे सोहता रे,
सोहे नरपति सुरपति वृंद....अहो....
दिव्यध्वनि छूटे दिव्यता भरी रे,
गगने देवदुंदुभि नाद....अहो....
चक्रेश सुरेश गणनाथ छो रे,
प्रभु त्रण भुवन आधार....अहो....
एवा जिन विदेहमां बिराजता रे,
अनंत गुण रत्नत्रय नाथ...अहो.... १०
कुंद देव विदेहक्षेत्रे गया रे,
एना हृदये वसे जिननाथ...अहो.... ११
जिन देखी विरह दुःख मेटिया रे,
प्रभु दर्शन थतां उल्लास...अहो... १२
एवा कुंद प्रभु मुज आंगणे रे,
संत चरणे वंदन हो अनंत....अहो.... १३
श्री गुरुजी प्रतापे सहु देखिया रे,
भवभ्रमण मेट्या छे आज...अहो.... १४
गुरुदेवे ॐकार सुणावी रे,
पामरने उतार्या पार....अहो.... १५
देव गुरु महिमा अद्भुत छे रे,
तुज भक्ति होजो दिनरात....अहो.... १६

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श्री जिनेन्द्र स्तवन
(रागः मंड)
म्हारा तो नैनां में रही छाय जिनंद थांकी मूरत....(टेक)
जो सुख मो उर मांही भयो है सो सुख कह्यो न जाय..म्हारा.१
उपमा रहित बिराजत हो तुम मोपे वरणी न जाय,
ऐसी सुंदर छबी जाके ढिग कोड मदन छिप जाय....म्हारा.
तन मन धन निछरावल कर के भक्ति करुं मन लाय,
यह विनति सुन लेउ नवल की जामन मरण मिटाय..म्हारा.
श्री नेमिनाथभजन
(रागः मंड)
प्यारा म्हानें लागो छो जी नेम कुंवार....(टेक)
सूरत थांकी सोहनी जी देखत नैन संवार,
ओर बडाई थांकी कांई करुंजी पुन्य बढे अघ जाय...प्यारा. १
भोग रोग सम जान के दिये सर्व छिटकाय,
बालपने दीक्षा धरी सब जग अथिर लखाय....प्यारा. २
निज आतमरस पीयके भये त्रिभुवन के राय,
तुम पद पंकज को सदा नवल नमें शिरनाय...प्यारा. ३

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श्री नेमिजिनभजन
(छंदः रेखता)
गिरनार गया आज मेरा नेम दे दगा,
जिनंद विना क्या करुं दिल श्याम से लगा....(टेक)
बलभद्र कृष्ण जादवा सब साथ ले सगा,
व्याहन कुं सज के आये जिन के लार सुर खगा....गि.
पशुवन की सुन पुकार त्याग दिलमें है जगा,
चले छोड पशु बंध संयम ध्यान में पगा....गि.
नेमिनाथ छोड जब गीरनार चल गया,
तब राजमति ने भी घरबार को तजा.....गि.
करुणा निधान स्वामी पशु खुला कर दिया,
तकसीर विना छोड चले हम को क्यों पिया....गि.
तुम तो हो मेरे नाथ आठ भवकी में त्रिया,
सो ही नेम आज हम से छांडि क्यों दिया...गि.
कहे नेम यह संसार सब असार है त्रिया,
यह सुन के राजुल भूषण डार सब दिया.....गि.
नेमिनाथ छोड जब गिरनार चल गया,
तब राजमती ने भी घरबार को तजा....गि.

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समवसरण की वधााइ
आज तो वधाई मारे समोसरण दरबारजी......
समो सरण दरबार आजे समोसरण दरबारजी......
त्रण भुवनना नाथ पधार्या, पधार्या सीमंधर नाथजी......
केवळज्ञान गुणाकर प्रगट्या, प्रगट्या चैतन्य देवजी......
ॐकार ध्वनिना धोध छूट्या, ऊछळ्या समुद्र अपारजी......
इंद्रोए मळी उत्सव कीनो, घरघर मंगलाचारजी......
घनघन घनघन घंटा वागे, देव करे जयकारजी......
सुवर्णपुरे समोसरण पधार्या जिनेन्द्र दरबारजी......
जिनवर वैभव आज निहाळी हैडा हरखी जायजी......
अष्ट भूमिनी शोभा अद्भुत, महिमानो नहि पारजी......
सभा भूमिमां मुनि अर्जिका, सुरपति नरपति वृंदजी......
लयलीन बन्या सहु प्रभु ध्वनिमां अंतर आतम ऊछळ्याजी......
श्री तीर्थंकर वैभव केरा गुणो केम गवायजी......
त्रण भुवनमां महिमा तारी महिमाना भंडारजी......
स्वर्ग पुरीथी इंद्रो आवे नृत्य करे जयकारजी......
कहानगुरुना परम प्रभावे समोसरण नीहाळ्याजी......
कहानगुरुए रहस्य खोल्यां खोल्या मुक्ति मारगजी......
सेवकने प्रभु शरणे राखो ए ज अरज दिनरातजी......

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श्री नेमिनाथजिन स्तवन
(रागः ख्याल)
आज यहां जिनदर्शन मेला है.....................!
नगर द्वारका जन्म लियो है सुरपति आय उछाव कियो है,
समुदविजय शिवादेवीका नंदन तीनुं ज्ञान धरेला है,
....टेक
ऐरावत हस्ती आया है, लखि जोजन एक सवाय है,
इन्द्राणी महल पठाया है, जिनराजकुं गोद लगाया है;
समुदविजय शिवादेवी के घर जय जय कार हुआ,
सब देव अपसरा हर्ष भई जहां तांडव नृत्य करेला है
....आज० (१)
ले मेरु शिखर पहुंचाया है, सिंहासन पर पधराया है,
क्षीरोदधि देव पठाया है, जल हाथूंहाथ मंगाया है;
सौधर्म अरू ईशान इन्द्र सहस्र
अठोत्तर भूज करके,
वसु एक सु चार प्रमाण तहां, जहां मघवा कलश ढूरेला है
आज० (२)
इक दिन सभा विस्तारी है, जहां पांडव हर गिरधारी है,
जहां बात चली बलकारी है, तहां अंगुरी सांसर डारी है;
सब ही जोधा मिल खींचत है, तहां कृष्ण गोपका मुसकत है,
हरि हर्ष धार मनमें विलखे, अब कारन कौन करेला है
.....आज० (३)

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बलभद्र कृष्ण बतलाया है, गोपियन कुं जाय शिखाया है,
उग्रसेनसुं नेह लगाया है, प्रभु व्याह कबूल कराया है;
छप्पनकोडि जादु सब मिलके, सजि चाले जूनागढकुं,
जहां तोरण पर गये नेम प्रभु, तहां देख्या प्रभु सकेला है
आज० (४)
प्रभु द्वादश भावना भाया है, गीरनारी पे ध्यान लगाया है,
तहां घातिया कर्म खिपाया है, प्रभु केवलज्ञान उपाया है;
आप मुक्ति का राज किया मैं शर्न आपकी आन लया;
करि इन्द्र चन्द्र कर जोर कहें मोहें जगसे पार करेला है.
आज० (५)
श्री वीरजिन स्तवन
प्रभु वीर जिनेन्द्र आज जनमीया रे,
मंगळ दिन ऊग्यो आज....वीर जन्मकल्याणक आजनो रे
कुंडलपुर नगरी सोहामणी रे,
पिता सिद्धार्थ त्रिशला मात....वीर जन्म १.
रत्नवृष्टि सोहे कुंडलपुरे रे,
वळी सोहे पिताजीने द्वार....वीर जन्म २.
इन्द्र केरा इन्द्रासन डोलिया रे,
आव्यां शची अने शक्रेन्द्र....वीर जन्म ३.
कुंडलपुरे देवो ऊतर्या रे,
चौ दिशे वाजिंत्र केरा नाद....वीर जन्म ४.

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देवेन्द्रो गगनमां चालीया रे,
एनुं आश्चर्य भरते थाय....वीर जन्म ५.
मेरुए अभिषेक करावीया रे,
तांडवनृत्य थाय पिता द्वार....वीर जन्म ६.
श्री वीर जिनेन्द्र जनमिया रे,
अहो त्रण भुवनना नाथ....वीर जन्म ७.
वीर प्रभुए तपश्चर्या आदरी रे,
प्रगटाव्या केवळज्ञान....वीर जन्म ८.
वीर दिव्य ध्वनिना सूर छूटीया रे,
तर्या अनंत जीवोनां वृंद....वीर जन्म ९.
प्रभु वृद्धि दीसे तुज शासने रे,
कहान गुरुनो थयो अवतार....वीर जन्म १०.
जेणे हलाव्या आखा हिंदने रे,
वळी वहाव्या सत्ना समुद्र....वीर जन्म ११.
शासनवृद्धि दिन आजनो रे,
नित्य वधतां देखुं गुरुदेव....वीर जन्म १२.
आज मंगळ दिन अहो ऊगीयो रे,
गुरु चिदात्मे मंगळमाळ....वीर जन्म १३.
प्रभु वंदन करुं छुं तुज चरणमां रे,
नाथ शरणे राखो दिनरात....वीर जन्म १४.