Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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शाश्वत तीरथ शिखरजी का भजन
दर्शन कीनो आज शिखरजी को.....जी वीस जिन को....टेक.
वीस कोस सें गीरवर दीखे, भाग्यो भ्रम सकल जीयको....१
मधुवन उपर सीता नालो वाको नीर अधिक नीको....२
वीस टोंक पै वीस ही घूमटी, ज्यां बिच चरण जिनेश्वर को....३
आठ टोंक पश्चिम दिश वंदां द्वादश वंदा पूरव को...४
इन्द्र भूषण जी का सांचा साहिब सांचो शर्ण जिनेश्वर को....५
श्री जिनवरभजन
जिनवर चरण भक्ति वर गंगा ताहि भजो भवि नित सुख दानी.टेक
स्याद्वाद हिमगिरतें ऊपजी मोक्ष महासागर हीं समानी. १
ज्ञान विराग रूप दोउ ढाये संयम भाव मंगर हित आनी,
धर्मध्यान जहां भंवर परत हैं शम दम जामें शांतिरस पानी. २
जिन संस्तवन तरंग ऊठत है जहां नहीं भ्रम कीच निशानी,
मोह महागिरि चूर करत है रत्नत्रय शुद्ध पंथ ढलानी. ३
सुरनर मुनि खग आदिक पक्षी जहं रमंत हि नित शांतिता ठानी,
‘मानिक’ चित्त निर्मल स्थान करी फिर नहीं होत मलिन भवप्रानी.४

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श्री कुंदकुंदाचार्य देवस्तवन
आज मंगळ दिन महा ऊगीयो रे,
आजे घेर घेर मंगळमाळ.....आज आचार्यपद
सोहामणां रे........
कुंदकुंद आचार्य अहो जागीया रे,
भरतक्षेत्रनां अहो भाग्य.....आज आचार्यपद.....१
प्रमत्त अप्रमत्ते झूलता रे,
जिनमुद्राधारी भगवंत.....आज आचार्यपद.....२
देह छतां देहातीत देव छो रे,
ॠद्धि लब्धि तणो नहीं पार....आज आचार्यपद....३
ज्ञान अनेकान्त बळवान छे रे,
श्रुतकेवळीनी छे साख.....आज आचार्यपद.....४
आचार्यपदे मुनि कुंदने रे,
स्थापे इंद्र नरेन्द्रो आज.....आज आचार्यपद.....५
देवेन्द्रगण आज आवीया रे,
मनुष्यजन बहु ऊभराय.....आज आचार्यपद.....६
चौदिशमां वाजां वागीयां रे,
आचार्यपददिन आज.....आज आचार्यपद.....७
महाविदेहक्षेत्रमां चालीया रे,
नीहाळ्या सीमंधरनाथ.....आज आचार्यपद.....८

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दिव्यध्वनिनां सूर सूणीया रे,
ओगाळ्या आतम मोझार.....आज आचार्यपद.....९
जिनदर्शनथी चित्त अति ऊछळ्या रे,
भरते आवीने छूट्या बोध....आज आचार्यपद....१०
प्रभु थोके थया मुनि अर्जिका रे,
व्रतधारी तणो नहि पार.....आज आचार्यपद.....११
आ भरत तणो एक थांभलो रे,
संत वडे नभे ब्रह्मांड.....आज आचार्यपद.....१२
कहानदेवे कुंदकुंद ओळख्या रे,
कळियुगे संबोध्या बहु जीव...आज आचार्यपद....१३
आतमयोगी आ जागीयो रे,
आत्मनाद वगाड्या जगमांही...आज आचार्यपद...१४
कुंदकहान वसो मुज अंतरे रे,
झट तारजो तारणहार.....आज आचार्यपद.....१५
श्री गुरुदेवना जन्मोत्सवनी मंगळ वधााइ!
आज मंगळ वधाई वागती रे
कहान कुंवर जन्म्या अहो आज,
आज मंगळ वधाई वागती रे.

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धन्य धन्य उमराळा गामने रे,
धन्य धन्य उजमबा मात
आज मंगळ वधाई वागती रे. १.
धन्य मात पिता कूळ जातने रे,
जेने आंगण जन्म्या बाळ कहान
आज मंगळ वधाई वागती रे. २.
आज तेज थया जन्म धाममां रे,
एनो भरत खंडमां प्रकाश
आज मंगळ वधाई वागती रे. ३.
आज आनंद मंगळ घेर घेर थया रे,
ठेर ठेर अहो! लीला ल्हेर
आज मंगळ वधाई वागती रे. ४.
बाळ कुंवर कहान ए लाडिला रे,
मात पूरे कुंवरना कोड
आज मंगळ वधाई वागती रे. ५.
प्रभु पारणेथी आत्मनाद गाजता रे,
एनी मुद्रा अहो अद्भुत
आज मंगळ वधाई वागती रे. ६.
कुंवर कहाने अपूर्व सत् शोधीयुं रे,
एना वैराग्य तणो नहीं पार
आज मंगळ वधाई वागती रे. ७.

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एणे त्याग कर्यो संसारनो रे,
प्रकाश्या मुक्ति केरा पंथ......
आज मंगळ वधाई वागती रे. ८.
कहानगुरुए हलाव्या हिंदने रे,
अहो! मलाव्यो ज्ञायकदेव......
आज मंगळ वधाई वागती रे. ९.
धर्म चक्री भरतमां ऊतर्या रे,
अहो धर्मावतारी पुरुष....
आज मंगळ वधाई वागती रे. १०.
ज्ञान अवतारी अहो आवीया रे,
पधार्या सीमंधर सुत....
आज मंगळ वधाई वागती रे. ११.
कहानगुरुजीना जन्म ए मीठडां रे,
एना मीठां वाणीना सूर....
आज मंगळ वधाई वागती रे. १२.
गुरुदेवना गुणने शुं कथुं रे,
प्रभु सेवक तणा शणगार.....
आज मंगळ वधाई वागती रे. १३.

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श्री मुनिराजस्तवन
(जब चले गये गीरनार)
हे परम दिगंबर यति, महा गुणव्रती, करो निस्तारा,
नहीं तुम बिन हितु हमारा....
तुम बीस-आठ गुण धारी हो, जग जीवमात्र हितकारी हो,
बावीस परिषह जीत धरम रखवारा....
नहीं तुम बिन हितु हमारा.....
तुम आतमज्ञानी ध्यानी हो, प्रभु वीतराग वनवासी हो,
है रत्नत्रयगुण मंडित हृदय तुम्हारा....
नहीं तुम बिन हितु हमारा....
तुम क्षमा शांति समता सागर, हो विश्वपूज्य नर रत्नाकर,
है हित
मितसत उपदेश तुम्हारा प्यारा....
नहीं तुम बिन हितु हमारा....
तुम धर्म मूर्ति हो समदर्शी, हो भव्यजीव मन आकर्षी,
है निर्विकार निर्दोष स्वरूप तुम्हारा....
नहीं तुम बिन हितु हमारा....
है यही अवस्था एक सार, जो पहुंचाती है मोक्षद्वार,
सौभाग्य आपसा बाना होय हमारा....
नहीं तुम बिन हितु हमारा.....

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श्री जिनवाणीस्तवन
धन्य जिनवाणी, धन्य जिनवाणी, धन्य जिनवाणी माता....
पलपल होजो शरण तमारुं आनंद मंगल कार....
जिनेन्द्रदेव के मुख कमळ में सोहे मोरी माता,
महिमा तोरी अपरंपारा जाउं बलिबलि हारा....धन्य०
सलिल समान कलिमलभंजन बुध जन रंजनहारी,
रत्नत्रयना पोषण करती नितनित मंगलकारी. धन्य०
जिनवाणी को जिसने अपनी सच्ची मात बनाई,
फिर नहीं करनी पडती उसको जगमें माता कोई. धन्य०
तीन लोक पति बडेबडे भी आते गोद तिहारी,
आशीष तोरी पाकर माता हो जाते भवपारी. धन्य०
मोक्षके मार्ग दिखाकर तुं तो ज्ञान चक्षु की दाता;
बालक तारा मुक्ति पामे एवी श्रुति माता...धन्य०
‘चेतनरूप अनूप अमूरत’ अब तक नहि पहचानी,
‘सिद्धसम निजपद’को दिखलाकर सिद्धपदमें पहुंचाती...धन्य०
पुनि पुनि जन्म से डरकर जोभी आता गोद तिहारी,
धर्म-जन्म को देकर माता! जन्म नशावनहारी. धन्य०
कान गुरु के अंतर पटमें नित्ये वसती माता,
झरझर झरझर नित्ये झरती मीठी अमृतमाता...धन्य०

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आगम केरा रहस्य खोल्यां कहान गुरुजी देवा,
भव्य जनोने पार उतार्या आप्या मुक्ति मेवा...धन्य०
धनधन वाणी देवगुरुनी आतमनी हितकारी,
जयजय तारो जगमां होजो, हे जग मंगलकारी....धन्य १०
श्री मुनिराज स्तवन
( मैं वीस जिनवरको चित्तमें लगाकर )
मैं परम दिगंबर साधु के गुण गाउं रे.....
मैं शुद्ध उपयोगी संतनको नित ध्याऊं रे....
मैं पंच महाव्रत धारी को शिर नाऊं रे....
जो वीस आठ गुण धरते, मन वचन काय वश करते,
बावीस परिषह जित जितेन्द्रिय ध्याउं रे....मैं०
जिन कनक कामिनी त्यागी, मन ममता विरागी,
हो स्व-पर भेद विज्ञानी से गुण पाउं रे....मैं०
जो हितमित वचन उच्चरते, धर्मामृत वर्षा करते,
सौभाग्य तरणतारण पर बलिबलि जाउं रे....मैं० ३
कुंदकुंद प्रभु विचरते, तीर्थंकर सम जो भरते,
ऐसे मुनि मार्ग प्रणेता को मैं ध्याउं रे....मैं०

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गुरुदेवका जन्मोत्सव
धन्य धन्य दिन आज....समय यह कैसा प्यारा है...समय०
कहान गुरु जन्मोत्सव में जग उमटा सारा है....हां हां जग०
विमल सम्यक् दर्शन धारी, परम ज्ञान, वैराग है भारी,
जय जय जय सर्वत्र जिन्होंका बजा नगारा है...जिन्होंका० १
सीमंधर के नंद दुलारे, धर्म दीवाकर से उजियारे,
जिन शासन के विमल गगन तुम दिव्य सितारा है...गगन० २
अजोड वक्ता जैनधरमका, आतम रक्षक अम भक्तोंका,
सफल हुआ सौभाग्य पाय तुम चरण सहारा है...हां हां तुम०३
उजमबा के लाल दुलारे सुवर्ण नगर के चमकित तारे,
जन्मोत्सवका आज गगनमें बाजां बाजे रे....गगनमें० ४
श्री साधाुस्तवन
(ओ...नाथ! अरज टूक सुनियो रे...)
हे साधु हृदय मम वसियो जी मेरे पातक हरियो जी....
वहां गगनमें दीपै चंद्रमा यहां मुनि दीक्षा धारी,
अनुकंपासे जिनकी मिटती मोहरूप बिमारी...
हे वैद्य महर टूंक करियो जी.....मेरे

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यह तन अथिर जानकर तुमने तजदी जगकी माया,
उस माया से बचने हेतु मैं पास तुम्हारे आया....
सद्भाव मेरे उर भरियो जी...मेरे. २
आतम ध्यान लगाते निशदिन सद्उपदेश सुनाते,
स्वयम् तिरे भवसागरसे हमको पार लगाते....
गुरु ‘वृद्धि’ को न विसरीयो जी....मेरे. ३
श्री मुनिराजस्तुति
(मारा नेमि पिया गिरनारी चाल्या.....)
मारा परम दिगंबर मुनिवर आया सब मिल दरशन कर लो हां०
बार बार आनो मुशकिल छे भाव भक्ति उर भर लो....हां०
हाथ कमंडल काठ को पींछी पंखमयूर,
विषय आश आरंभ सब परिग्रह से है दूर;
श्री वीतराग विज्ञानी को कोई ज्ञान हिया बिच धर लो....हां०
एक वार कर पात्रमें अन्तराय दोष टाळ,
अल्प अहार हो ले खडे नीरस रसधार तोष;
सौभाग्य तरण तारण मुनिवर का तारण चरण पकड लो...हां० २
चारों गति दुःख से डरी आत्मस्वरूप को ध्याय,
पुण्य-पाप से दूर दूर ज्ञानगुफामें आय;
ऐसे मुनि मारग उत्तम धारी तिनके चरण नमूं मैं....हा०

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श्री मुनिराजस्तवन
(तन मन फूला दर्शन पा....)
नित ऊठ ध्याउं गुण गाउं, परम दिगंबर साधु, परम दिगंबर साधु
महाव्रत धारी...धारी....महाव्रतधारी.....
राग द्वेष नहीं लेश जिन्हों के मनमें है....मनमें है;
कनक कामिनी मोह काम नहीं तनमें है...तनमें है;
परिग्रह रहित निरारंभी, ज्ञानी व ध्यानी तपसी....
ज्ञानी व ध्यानी तपसी
नमों हित कारी....कारी....नमों हितकारी...१
शीतकाल सरिता के तट पर जो रहते....जो रहते;
ग्रीषम ॠतु गिरिराज शिखर चढ अध दहते अघ दहते;
तरुतल रहकर वर्षामें, विचलित न होते लख भय
विचलित न होते लख भय
वन अंधियारी...भारी...वन अंधियारी...२
कंचनकाय मसानमहल सम जिनके है....जिनके है;
अरिअपमान मानमित्र सम तिनके है...तिनके है;
समदर्शी समताधारी, नग्न दिगंबर मुनि है;
नग्न दिगंबर मुनि है
भवजल तारी...तारी....भवजल तारी....३

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ऐसे परम तपोनिधि जहां जहां जाते है...जाते है;
परम शांति सुख लाभ जीव सब पाते है...पाते है;
भवभवमें सौभाग्य मिले, गुरुपद पूजुं ध्याउं
गुरुपद पूजुं ध्याउं
वरुं शिवनारी...नारी...वरुं शिवनारी.
श्री मुनिराजभजन
(एक तूंही आधार हो जगमें...ओ मेरे भगवान....की...)
धन्य मुनीश्वर आतम हितमें छोड दिया परिवार.....कि......
तुमने छोडा सब घरबार......!
धन छोडा वैभव सब छोडा समझा जगत असार.....कि
तुमने छोडा सब संसार......
कायासे ममताको टारी, करते सहन परिषह भारी;
पंच महाव्रत के हो धारी, तीन रतन के बने भंडारी;
आत्म स्वरूपमें झूलते करते निज आतम उद्धार.....कि
तुमने छोडा सब घरबार.....धन्य०
राग द्वेष सब तुमने त्यागे वैर विरोध हृदयसे भागे,
परम आतम के अनुरागे, वैर कर्म पलायन भागे,
सत्सन्देश सुना, भविजनका करते बेडा पार.....कि
तुमने छोडा सब संसार.....धन्य०
होय दिगंबर वनमें विचरते निश्चल होय ध्यान जब धरते,
निजपदके आनंदमें झूलते उपशमरसकी धार बरसते,

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मुद्रा सौम्य नीरख कर वृद्धि नमता वारंवार....कि
तुमने छोडा सब घरबार....धन्य०
श्री मुनिराजस्तुति
ऐसे मुनिवर देखें, वनमें.....(२)
जाके रागद्वेष नहीं तनमें.......
ग्रीष्म ॠतु शिखर के उपर.....(२)
मगन रहे ध्याननमें......१
चातुर्मास तरुतल ठाडे......(२)
बुंद सहे छिन छिन में......२
शीतमास दरिया के किनारे......(२)
धीरज धारे ध्याननमें......३
ऐसे गुरुको मैं नित प्रति ध्याउं......(२)
देत ढोक चरणनमें.......४
कहानगुरुका जन्मोत्सव
(राखना रमकडाने....)
गुरुकहानना ए जन्मने हां...भक्तो सौ भावे ऊजवे रे....
जयजयकार गजावी आजे मंगलनादे वधावे रे....ए....
कहानना ए जन्मने....१

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डगले पगले रंग रंगथी जनमोत्सव सौ म्हाले,
स्वाध्याय मंदिरजिनमंदिरमां हर्षनाद गजावे रे....ए.....
कहानना ए जन्मने...२
घननन नादे गगन गजावी आनंद भेरी बजावे,
अनेक ज्योति झगमग झगमग दीपकमाला झबके रे....ए...
कहानना ए जन्मने....३
कुंदकुंद प्रभु आशिष आपे, देवों पुष्प वधावे,
उमंग भर्यां भक्तोनां हैयां गुरुदेव
अभिनंदे रे...ए....
कहानना ए जन्मने....४
जन्म वधाई सूणतां आवे देशोदेश संदेशा,
चीरंजीवो...चीरंजीवो, चीरंजीवो...गुरुदेवा रे....ए....
जयजय होजो जयजय होजो, जयजय तारी जगमां रे....ए....
कहानना ए जन्मने.....५
श्री जिनवाणीमाताभजन
जय जिनवाणी, जय जिनवाणी जय जिनवाणी, माता....
भव भव होजो भक्ति तुमारी, आतमकी तुं दाता...जय०
आतम रक्षक आतम पोषक, आनंद रस पानारी,
धर्मतरुवर पोषक करके, मुक्ति फल देनारी...जय०
नित नित सुधापान कराती भव्य जीवों को भारी,
जगत जनेता साची पण तुं जन्म विनाशनहारी...जय० २

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आतम गीत सुनाकर माता नींद नशावन हारी,
स्वानुभूतिआनंद के झूले तुं झूलावन हारी...जय०
लालन पालन करती माता बोधि समाधि दाता,
बालक तारा मुक्ति पामे एवी मारी माता...जय०
जिनवर प्रभुने पूरव भवमां सोलह कारण भाया,
धर्म वृद्धिना उत्तम भावे तीर्थंकर पद पाया...जय०
तीर्थंकर के पावन मुखसें तेरी उत्पत्ति माता,
राग के बंधन तोड प्रभुने जब अरहंत पद पाया....जय० ६
मुनि
अर्जिका श्रावकश्राविका सबको मंगल कारी,
रत्नत्रयीना पोषण करती नित नित आनंदकारी....जय० ७
कोटि जीभतें महिमा तेरी कही शके नहीं कोई,
अल्प मति बालक किम गावें, अधम उद्धारन हारी...जय० ८
जिनवर मुखसे चलती चलती कहानगुरु मुख आई,
मारा गुरुनी वाणी ए तो जाणे जिनधुनि आई....जय० ९
तुज हैयानां हार्द प्रकाशे गुरुवर कहान हमारा,
महिमा सारी जगमां फेलावे एना नंदन तारा...जय० १०
हे जिनवाणी! झंडा तेरा कहानगुरु फरकावे,
फरफर फरफर फरकावीने जिन शासन शोभावे...जय० ११
गुरुजी प्रतापे तुज को पाकर जननी! हम हरषाये,
अनाथ बालक सनाथ होकर आतमकी निधि पाये...जय० १२

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जैनIंMागायन
(तन मन फूला दर्शन पा....)
फरफर फरके केसरीया, गगन शिखा पर झंडा,
गगन शिखा पर झंडा.
चित्त हरषाता......षाता.....चित्त हरषाता......
ऊंचे ऊंचे जिनमंदिर पर छा रहे, छा रहे,
इनकी छाया बैठ जिनगुण गा रहे, गा रहे,
शासन प्रभुका प्यारा रे, होंश जगाता दिलमें,
होंश जगाता दिलमें;
शिर झुक जाता.....जाता, शिर झूक जाता....
फरफर फरके०
क्या बालक, क्या बूढे, हिलमिल आ रहे, आ रहे,
प्रभु दरशन कर चित्तमें हरषित हो रहे, हो रहे,
सबके मंगल दाता रे, धर्म दीपाता जगमें,
......धर्म दीपाता जगमें,
अनेकान्तवाला......वाला......अनेकान्तवाला.....
फरफर फरके०
श्री जिनवर के मारग पर सब बढे चलो, बढे चलो,
जिनशासन उन्नत्ति शिखर पर चढें चलो, चढें चलो;
उत्साही बनकर आना रे, आतम धर्मको पाना,
.....आतम धर्मको पाना,
यही दरशाता.....शाता....यही दरशाता......
फरफर फरके०

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जैन IंMा गायन
(जय जय जय सब मिलकर बोलो)
लहरायेगा लहरायेगा झंडा श्री महावीर का........
झंडा श्री भगवानका, झंडा श्री भगवानका, झंडा श्री भगवानका;
झंडा श्री भगवानका....लहरायेगा.....
तीर्थंकरने जो फरकाया,
रत्नत्रय का मार्ग दिखाया,
अनेकान्त का चिह्न लगाया,
झंडा श्री महावीर का....लहरायेगा
सब जैनोंका जो है प्यारा,
आत्म धर्मका चमकीत तारा,
सब साधक का पूर्ण सहारा,
झंडा श्री महावीर का....लहरायेगा
सारे जगका जो है नायक,
मोक्ष मार्ग का है जो दायक,
भक्त जनोंका सदा सहायक,
झंडा श्री महावीर का....लहरायेगा
शासनका सौभाग्य बढाता,
सब जीवोंको आनंददाता,
स्वालंबन का पाठ पढाता,
झंडा श्री भगवान का....लहरायेगा

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वीर कुंदने इसे लहराया,
गुरु कहानने फिर फहराया,
भारत भरमें नाद गूंजाया,
झंडा श्री भगवान का....लहरायेगा
विदेही जिनेन्द्र गुणस्तवन
( दोहा )
सकल सुखाकर सकल पर, सकल सकल जगनैन,
सीमंधर आदिक सकल, वीस ईश सुख दैन. १.
विहरत अवनि विदेह जहं, मुनिजन होत विदेह,
मैं स्वदेह पावन करन, नमुं नमुं धरि नेह. २.
( छंदः चंडी, १६ मात्रा )
जय जगीश वागीश नमामि, आदि ईश शिव ईश नमामि;
परम ज्योति परमेश नमामि, सेवत शतक सुरेश नमामि. ३.
ब्रह्मा विष्णु महेश नमामि, ज्ञान दिनेश गणेश नमामि;
वीतराग सर्वज्ञ नमामि, करुणावंत कृतज्ञ नमामि. ४.
सृष्टि-इष्ट उत्कृष्ट नमामि, गुणगरिष्ट वच मिष्ट नमामि;
निराकार साकार नमामि, निर्विकार भवपार नमामि. ५.
निर-आमय निकलंक नमामि, जय निरभय चिदअंक नमामि;
ज्ञान गम्य अति रम्य नमामि, स्वयं निकल निर्मोह नमामि. ६.

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विघ्न हारि त्रिपुरारि नमामि, गुन अपार जितमार नमामि;
निर्विकल्प निर्द्वंद नमामि, जय नाशन भवकंद नमामि. ७.
अक्षातीत यतीश नमामि, वीत शोक जित भीत नमामि;
शाश्वत सुखित सुखेश नमामि, अघहन वृष चक्रेश नमामि. ८.
अव्याबाध अछेद नमामि, जय निर्मल निर्वेद नमामि;
स्वयंबुद्ध अविरुद्ध नमामि, सदा शुद्ध जित क्रोध नमामि. ९.
सुख अनंत भरपूर नमामि, ज्यो जगत दुःखचूर नमामि;
असमशक्ति अव्यक्त नमामि, मुक्ति-रमनि-संसक्त नमामि. १०.
रहित-आदि-मध्यांत नमामि, भव-दवाग्नि उपशांत नमामि;
हरन-अविद्या-ध्वांत नमामि, अनेकांत एकांत नमामि. ११.
जित विस्मय निश्चिंत नमामि, सूक्ष्म अमन निःसंग नमामि;
सदा प्रकाश विव्यक्त नमामि, धीश्वर केवलव्यक्त नमामि. १२.
श्रीधर श्री विमलाभ नमामि, चतुरानन वर भाग नमामि;
कृष्ण-पुंडरीकाक्ष नमामि, विश्वंभर पुरुदेव नमामि. १३.
जगत-जीव-हितहेत नमामि, कमलासन वृषकेत नमामि;
ज्ञानईश ध्यानेश नमामि, जोग ईश भोगेश नमामि. १४.
धाम तीन जगशीश नमामि, अचल प्रान चतुईश नमामि;
जय अनंत भगवंत नमामि, सुख अनुपम विलसंत नमामि. १५.
जगदाधार अपार नमामि, तत्त्व-भेद विस्तार नमामि;
अशरन शरन सुसंत नमामि, जग अहंत अरहंत नमामि. १६.
अनुपम रूप अरूप नमामि, तत्त्वभूप चिद्रूप नमामि,

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इम शुचि नाम अनंत तिहारे, तन मन पावन होत उचारे. १७.
विद्यमान वीस तीर्थंकर भगवंतोनी स्तुति
( दोहा )
द्वीप अर्द्ध-द्व्य मेरु पन, मेरु मेरु प्रति चार;
विहरत विभव अनंतयुत, अवनि विदेह मझार.
( छंदः चंडी १६ मात्रा )
सीमंधर सुखसीम सुहाये, युगमंधर युग वृष प्रकटाये;
बाहु बाहुबल मोह विदार्यो, जिन सुबाहु मनमथमद मार्याे. १.
संजातक निज जाति पिछानी, स्वयंप्रभु प्रभुता निज ठानी;
ॠषभानन ॠषि धर्म प्रकाशन, वीर्य अनंत कर्मरिपु नाशन. २.
सूरप्रभु निजभा परिपूरन, प्रभु विशाल त्रिकशल्य विचूरन;
देव वज्रधर भ्रमगिरिभंजन, चंद्रानन जगजनमन रंजन. ३.
चंद्रबाहु भवताप निवारी, ईश भुजंगम धुनि-मुनि धारी;
ईश्वर शिवगवरी दुःखभंजन, नेमिप्रभु वृष नेमि निरंजन. ४.
वीरसेन विधि-अरि-जय वीरं, महाभद्र नाशक भवपीरं;
देव देवयशको यश गावे, अजितवीर्य शिवरमनि सुहावे. ५.
ये अनादि विधि बंधनमांही, लब्धियोग निज निधि लखि पाई;
सम्यक् बल करी अरि चकचूरन, क्रमतें भये परम द्युति पूरन. ६.