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वीस कोस सें गीरवर दीखे, भाग्यो भ्रम सकल जीयको....१
मधुवन उपर सीता नालो वाको नीर अधिक नीको....२
वीस टोंक पै वीस ही घूमटी, ज्यां बिच चरण जिनेश्वर को....३
आठ टोंक पश्चिम दिश वंदां द्वादश वंदा पूरव को...४
इन्द्र भूषण जी का सांचा साहिब सांचो शर्ण जिनेश्वर को....५
स्याद्वाद हिमगिरतें ऊपजी मोक्ष महासागर हीं समानी. १
ज्ञान विराग रूप दोउ ढाये संयम भाव मंगर हित आनी,
धर्मध्यान जहां भंवर परत हैं शम दम जामें शांतिरस पानी. २
जिन संस्तवन तरंग ऊठत है जहां नहीं भ्रम कीच निशानी,
मोह महागिरि चूर करत है रत्नत्रय शुद्ध पंथ ढलानी. ३
सुरनर मुनि खग आदिक पक्षी जहं रमंत हि नित शांतिता ठानी,
‘मानिक’ चित्त निर्मल स्थान करी फिर नहीं होत मलिन भवप्रानी.४
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बावीस परिषह जीत धरम रखवारा....
है रत्नत्रयगुण मंडित हृदय तुम्हारा....
है हित
है निर्विकार निर्दोष स्वरूप तुम्हारा....
सौभाग्य आपसा बाना होय हमारा....
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मैं शुद्ध उपयोगी संतनको नित ध्याऊं रे....
मैं पंच महाव्रत धारी को शिर नाऊं रे....
कुंदकुंद प्रभु विचरते, तीर्थंकर सम जो भरते,
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विमल सम्यक् दर्शन धारी, परम ज्ञान, वैराग है भारी,
सीमंधर के नंद दुलारे, धर्म दीवाकर से उजियारे,
अजोड वक्ता जैनधरमका, आतम रक्षक अम भक्तोंका,
उजमबा के लाल दुलारे सुवर्ण नगर के चमकित तारे,
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बार बार आनो मुशकिल छे भाव भक्ति उर भर लो....हां०
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उमंग भर्यां भक्तोनां हैयां गुरुदेव
चीरंजीवो...चीरंजीवो, चीरंजीवो...गुरुदेवा रे....ए....
जयजय होजो जयजय होजो, जयजय तारी जगमां रे....ए....
भव भव होजो भक्ति तुमारी, आतमकी तुं दाता...जय०
आतम रक्षक आतम पोषक, आनंद रस पानारी,
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मुनि
कोटि जीभतें महिमा तेरी कही शके नहीं कोई,
जिनवर मुखसे चलती चलती कहानगुरु मुख आई,
तुज हैयानां हार्द प्रकाशे गुरुवर कहान हमारा,
हे जिनवाणी! झंडा तेरा कहानगुरु फरकावे,
गुरुजी प्रतापे तुज को पाकर जननी! हम हरषाये,
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झंडा श्री भगवानका, झंडा श्री भगवानका, झंडा श्री भगवानका;
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विहरत विभव अनंतयुत, अवनि विदेह मझार.