९० ][ श्री जिनेन्द्र
श्री जिन – स्तवन
(प्रभु पावन करोने मारुं आंगणुं रे – राग)
आज दिव्यध्वनि छूटी वीर मुखथी रे,
आज ॐध्वनि छूटी वीर मुखथी रे,
अनंत जीवोना तारणहार.....आज.
सहु महोत्सव करीए आज.....आज.
आज इंद्रोना टोळां ऊतर्यां रे,
आ भरतक्षेत्रनी मांही.....आज.
ॠजुवालिकाए शुक्लध्यान आदर्युं रे,
प्रभु पाम्या छो केवळज्ञान.....आज.
प्रभु समोसरण रचना बनी रे,
भव्यो जुए छे ध्वनि वाट.....आज.
आज पात्र गौतमजी पधारीया रे,
प्रभु दिव्यध्वनिना छूट्या धोध.....आज.
विपुलाचले समोसरण जामीया रे,
श्रेणिक राजानी राजधानी मांही.....आज.
रूडी राजगृही नगरीमांही.....आज.
प्रभु गगने वाजिंत्रो वाजीया रे,
वाग्या त्रण भुवनमां नाद.....आज.
आज दिव्यध्वनिना धोध ऊछळ्या रे,
आज ॐकार नादो गाजीया रे,
जाणे ऊछळ्यो समुद्र अगाध.....आज.