स्तवनमाळा ][ १०५
सुरत्नत्रये प्रद्मदलो पूरती रे
कोटि जीभे महिमा नव थाय. आज०
त्रण लोकपति जेने सेवता रे
एवी त्रण जगत हितकार. आज० ४
कहान गुरु हृदये जिनजी वस्या रे
एना मुखे वसे जिनवाण. आज०
एणे उपेक्षा करवी परद्रव्यथी रे,
निरपेक्ष समजावी स्वरूप. आज० ५
निष्तुष युक्ति अवलंबने रे,
चोफेर प्रकाश्या मुक्तिमार्ग. आज०
श्रुत सरिताना पूर वह्या हिंदमां रे,
एनी लहरी पेढी भव्य मांही. आज०
देव-गुरु-श्रुत भक्ति मुज अंतरे रे,
जेथी पामीए पूर्ण स्वरूप. आजे० ६
श्री पार्श्वजिन – स्तवन
तुम से लागी लगन, ले लो अपनी शरण,
पारस प्यारा, मेटो मेटोजी संकट हमारा.
निशदिन तुमको जपूं, पर से नेहा तजूं,
जीवन सारा, तेरे चरणों में बीते हमारा.
अश्वसेन के राजदुलारे, वामादेवी के सुत प्राण प्यारे,
सबसे मुह को मोडा, सारा नेहा तोडा, संयम धारा. मेटो..१
इन्द्र और धरणेन्द्र भी आये, देवी पद्मावती मंगल गाये,
परचा पूरो सदा, दुःख नहि पावे कदा, सेवक तारा. मेटो..२