२ ][ श्री जिनेन्द्र
श्री जिन – स्तवन
(चोपाई)
जय भवि कुमुदनि मोदन चंदा,
जय दिनन्द त्रिभुवन अरविंदा;
भव तप हर सुर नर वर रूपा,
मदज्वर जरन हरन घन रूपा. १
अकथित महिमा अमित अथाई,
निर उपमेय सरसता नाई;
भावलिंग विन कर्म खिपाई,
द्रव्यलिंग विन शिवपद पाई. २
नय – विभाग विन न वस्तु प्रमाणा,
दयाभाव विन नहि कल्याणा;
पंगुल मेरू चूलिका परसैं,
गूंगा गान आरंभे स्वरसें. ३
यों अयोग कारज नहिं होई,
तुम गुण कथन कठिन है सोई;
सर्व जैन शासन जिनमांहीं,
भाग अनंत धरे तुम नाहीं. ४
गोखुरमें नहिं सिंधु समावै,
वायस लोक अन्त नहि पावै;
तातें केवल भक्तिभाव तुम,
पावन करौ अपावन उर हम. ५