स्तवनमाळा ][ २१
जिसने तेरा शरणा लीना, उसने जन्म सफल निज कीना
सारे सुधरें उसके काज — अशुभ — १
जिसने तेरी महिमा गाई, उसने सुख समृद्धि पाई –
आदर करती उसे समाज — अशुभ — २
जिसने तुझसे नेहा जोडा, आवागमनका फन्दा तोडा –
नहीं रहा कर्म मोहताज — अशुभ — ३
गाऊं उमंग उमंग गुण तेरे, ‘‘वृद्धि’’ होय ज्ञान की मेरे –
याचूं यही जोड कर आज — अशुभ — ४
श्री जिन – स्तवन
(तर्ज — तोहीद के मांठ में रंग दे पक्का लाल रे रंगरेजवा – गजल)
जिन धर्म के रंगमें रंगदो मनके मंदिर को जिनवरजी.
दीवारों पर सारे इसके तप का रंग चढा देना,
और अहिंसा से आंगन का पक्का अंग बना देना;
छत में छाये सत्य सफेदी ऐसा ढंग बिठा देना,
गूंज उठे नवकार मंत्र चहुं ऐसे भाव जगा देना;
फिर यह मंदिर अति चहुं ओर से सुंदर हो जिनवरजी. १
इस मंदिर की रक्षा हेतु सच्चा सैन्य सजाऊं मैं,
सम्यक् दर्शन ज्ञान चरित का पक्का व्यूह रचाऊं मैं.
ध्यान सुभट हो पहरे उपर भक्तिकी शक्ति लगाऊं मैं,
कर्म अरि पर विजय पायकर आतम ‘वृद्धि’ जगाऊं मैं;
बस एक यही सद् इच्छा मन के अंदर हो जिनवरजी. २