स्तवनमाळा ][ २७
पावन शुभ दिन पाया रे, पल पल रूप निहारूं,
प्रभु मन भाया, पाया, सभी सुख पाया. १
इन्द्रादिक पदवी की मुझको चाह नहीं, चाह नहीं,
जगती के वैभव लख परकी दाह नहीं, दाह नहीं,
निजानंद पद पाऊं रे, एक यही वर दीजो,
प्रभु चित्त चाया, पाया, सभी सुख पाया. २
प्रभु धरम जाति का मैं फिर दास रहूं, दास रहूं,
अटल रहूं मुक्तिमें तेरे पास रहूं पास रहूं,
सुख ‘सौभाग्य बढाऊं रे तव पद पाकर करलूं,
सफल सु काया, पाया, सभी सुख पाया. ३
श्री जिन – स्तवन
(तर्ज – जब तुम्हीं चले परदेश लगा कर ठेस)
जब तुम्हीं हरो नहीं पीड, यह भव की भीड,
हो जिनवर प्यारा धरती पर कौन हमारा. टेक०
द्रौपदी का तुमने चीर बढा, पावक बिच सीता कमल चढा,
सत् शील धर्मका तुमने सुयश पसारा. धरती पर० १
अंजन जब फांसी पर लटका, था रौद्र ध्यान में वह भटका,
दे नमोकार शुभ मंत्र, किया निस्तारा. धरती पर० २
थी कर्मप्रधान सती मैना, कुष्टी वर पा न डिगे नैना;
तब तुम्हीं ने उसके पतिका कष्ट निवारा. धरती पर० ३