Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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प्रकाशकीय निवेदन
श्री ‘जिनेन्द्र-स्तवनमाळा’नुं आ सातमुं संस्करण
प्रकाशित करतां अति प्रमोद अनुभवीए छीए.
स्वानुभव-महिमापूर्ण अध्यात्मयुग प्रवर्तावनार, परम-
तारणहार, परमकृपाळु, परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री
कानजीस्वामीनो मुमुक्षुजगत उपर ए महान अनुपम उपकार
छे के एमणे आपणने अंतरमां निज-शुद्धात्मद्रव्यनो अर्थात्
निज ज्ञायकदेवनो अने बहारमां, ज्ञायकदेवने देखाडनार
वीतराग सर्वज्ञ जिनदेवनो अचिंत्य अपार महिमा समजाव्यो.
तेमना सद्धर्मवृद्धिकर पुनित प्रतापे ज देशविदेशमां वसता
मुमुक्षुसमाजमां शुद्धात्मतत्त्वप्रमुख अनेकान्तसुसंगत
अध्यात्मविद्या तेम ज शुद्धाम्नायानुसार जिनेन्द्रपूजाभक्तिनी
रसभीनी प्रवृत्ति, अंतरमां तात्त्विक लक्ष सहित, नियमित चाली
रही छे. तेमना अध्यात्मविद्याप्रमुख पवित्र प्रभावनायोगनी
देशविदेशव्यापी मंगळ सरितानो ज्यांथी भव्य उद्गम थयो ते
(तेमनी पवित्र साधनाभूमि) श्री सुवर्णपुरी तो अनेक विशाळ
मनोहर जिनायतनोथी अतीव सुशोभित दर्शनीय ‘अध्यात्म-
अतिशयक्षेत्र’ बनी गयुं छे.
आ अनुपम अध्यात्मतीर्थनां भव्य जिनालयोमां
बिराजमान वीतरागभाववाही दिगंबर जिनप्रतिमाओनी
भक्तिप्रसंगे उपयोगी थाय, एवां भावभीनां भक्तिगीतोनुं आ