स्तवनमाळा ][ ४१
श्री जिन – स्तवन
(छंद मोतियादाम वर्ण १२)
[राग त्रोटक]
महासुखसागर आगर ज्ञान,
अनंत सुखामृत मुक्त महान;
महाबलमंडित खंडित काम,
रमा शिव संग सदा विसराम. १
सुरिंद फनिंद खगिंद नरिंद,
मुनिंद जजै नित पादारविंद;
प्रभु तुव अंतर भाव विराग,
सुबालहिं तें व्रतशील सों राग. २
कियो नहि काज उदास सरूप,
सुभावन भावत आतम रूप;
अनित्य शरीर प्रपंच समस्त,
चिदातम नित्य सुखाश्रित वस्त. ३
अशर्न नहीं कोऊ शर्न लहाय,
जहां जिय भोगत कर्म विपाय;
निजातमके परमेसुर शर्न,
नहीं इनके विन आपद हर्न. ४
जगत जथा जल बुदबुद येव,
सदा जिय एक लहे फलमेव;
अनेक प्रकार धरी यह देह,
भमे भव कानन आनन नेह. ५