Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४२ ][ श्री जिनेन्द्र
अपावन सात कुधात भरीय,
चिदातम सुद्ध सुभाव धरीय;
धरै इनसों जब नेह तबेव,
सुआवत कर्म तबै वसुमेव.
जबै तन भोगत जगत्त उदास,
धरै तब संवर निर्जर आश;
करै जब कर्म कलंक विनाश;
लहे तब मोक्ष महासुखराश.
तथा यह लोक नराकृत नित्त,
विलोकिय ते परद्रव्य विचित्त;
सुआतम जानन बोध विहीन,
धरै किन तत्त्व प्रतीत प्रवीन.
जिनागमज्ञानरु संजम भाव,
सबै निज ज्ञान विना विरसाव;
सुदुर्लभ द्रव्य, सुक्षेत्र, सुकाल,
सुभाव सबै जिहिंतें शिवहाल.
लयौ सब जोग सुपुण्य वशाय,
कहो किमि दीजिये ताहि गंवाय;
विचारत यों लवकांतिक आय,
नमें पदपंकज पुष्प चढाय. १०
कह्यौ प्रभु धन्य कियो सुविचार,
प्रबोध सु येम कियो जु विहार;
तबै सवधर्म तनो हरि आय,
रचौ शिबिका चढि आप जिनाय. ११