५२ ][ श्री जिनेन्द्र
श्री सीमंधार स्वामीनुं स्तवन
(राग – पपीहा रे, मेरे पियासे कहियो जाय)
शशीयारे शशीयारे शशीयारे,
मेरे प्रभुसे कहियो जाय.
सीमंधर तोरा दर्श चाहूं,
दिलडां न बहु तलसाव. १
मैं चाहूं तुम दर्शन हमेशां,
पडा हूं तुमसे दूर.
कोस हजारों अंतर बीचमें,
मिलनेसे मजबूर हां;
भरतक्षेत्रमें मैं हूं बैठा,
अहनिश ध्यान लगाय. २
पर्वत नदिया बीचमें कितने,
विरह दर्शका घोर,
पल पल ध्यान में धरूं तुमारा,
जलदी दर्श दिखाय. ३
नहि मिलते हां प्रभुजी मेरे,
कांप रही मेरी काय हवेली;
एक वार जो दर्श मिले तो,
सुखकी ल्हेर लगी जो;
प्यारा प्यारा पळ पळ सुमरूं,
सीमंधर दर्शन दीजे;
तेरी याद में आंखें भर गई,
चित्त रहा कंपाय. ४