स्तवनमाळा ][ ८७
अष्ट दिन प्रभु पासमें रहकर,
श्रुतकेवळीओंको प्रत्यक्ष मिलकर,
संत मुनिओंको प्रत्यक्ष मिलकर,
वहांसे भरत में वापिस आया,
आचार्यपद – दिन आज मनोहारा.
परंपरा अनुभव आगम पाकर,
निश्चय-व्यवहारकी संधि मिलाकर,
परमागमकी कीनी रचना उदारा,
समयसार तुमने मुख्य बनाया,
आचार्यपद – दिन आज मनोहारा.
आचार्यपद – दिन आज मंगळकारा.
कुंदकुंद मुनि बोध न देते,
सत्यमार्ग भवी कैसे पाते?
भरतको आपका अमित उपकारा,
आचार्यपद – दिन आज मनोहारा.
तीर्थंकर पति सम पारज कीनो,
स्वरूपमें प्रभु अतिशय बनो.
स्वीकारो अंजलि परम दयाला,
आचार्यपद – दिन आज मनोहारा.
भगवान कुंदकुंदकी पहिचान कराये,
उनकी रसीली बात सुनाये,
कहान प्रभुकुं कोटी वंदना हमारा;
आचार्यपद – दिन आज मनोहारा.