Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration). ShrI jinendra stavanamanjarI; Introduction; Avrutti; JinmandirnA darshannu stotra; Devadarshan; Jinendradarshanstotra; AnukramanikA.

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-ः प्रकाशकः-
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ-३६४ २५०
नमः सिद्धेभ्यः
श्री
जिनेन्द्र स्तवनमंजरी

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भगवानश्री कुंदकुंदकहानजैनशास्त्रमाळा पुष्पः २३
नमः सिद्धेभ्यः
तीर्थधाम श्री सोनगढमां बिराजमान
विदेहक्षेत्रे विहरमान
श्री सीमंधरभगवान आदि
जिनेन्द्र
स्तवनमंजरी
ः प्रकाशकः
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)

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पहेलीथी छठ्ठी आवृत्ति कुल प्रतः ८९५०
सातमी आवृत्ति प्रतः २००० वि.सं. २०६१ इ.स. २००५
मुद्रकः
कहान मुद्रणालय
सोनगढ- (सौराष्ट्र)
: (02846) 244081
किंमत : १८=००
आ शास्त्रनी पडतर किंमत रुा. ३६=०० थाय छे.
तेमांथी ५०% श्री कुंदकुंद-कहान पारमार्थिक ट्रस्ट हस्ते स्व.
श्री शांतिलाल रतिलाल शाह परिवार तरफथी किंमत
घटाडवामां आवतां आ ग्रंथनी वेचाण किंमत रुा.
१८=०० राखवामां आवी छे.


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तीर्थधाम श्री सोनगढमां १९९७ना फागण
सुद बीजे मूळनायक तरीके विदेहक्षेत्रे विहरमान
श्री सीमंधरभगवान आदि जिनेन्द्रोनी भव्य अने
अतिभाववाहिनी जिनेश्वरस्वरूप जिनमुद्रानी,
परम पूज्य अध्यात्मयोगी स्वपरकल्याणक
सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीना परम पवित्र
करकमळे प्रतिष्ठा थई. श्री जिनेश्वरदेवोनी
स्तवनाने माटे श्री जिनेन्द्रदेव तथा परमोपकारी
श्री सद्गुरुदेवना प्रतापे आ स्तवन मंजरी
तैयार थई छे.....
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)

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जिनमन्दिरना दर्शननुं स्तोत्र
दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भवतापहारि,
भव्यात्मनां विभवसम्भवभूरिहेतु
दुग्धाब्धिफे नधवलोज्ज्वलकूटकोटी-
नद्धध्वजप्रकरराजिविराजमानम् ।।।।
दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भुवनैकलक्ष्मी-
धामर्द्धिवर्द्धितमहामुनिसेव्यमानम्
विद्याधरामरवधूजनमुक्तदिव्यं
पुष्पाञ्जलिप्रकरशोभितभूमिभागम् ।।।।
दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भवनादिवास-
विख्यातनाकगणिकागणगीयमानम्
नानामणिप्रचवभासुररश्मिजाल-
व्यालीढनिर्मलविशालगवाक्ष जालम् ।।।।
दृष्ट जिनेन्द्रभवनं सुरसिद्धयक्ष-
गन्धर्वकिन्नरकरार्षितबेणुवीणा-
सङ्गीतमिश्रतनमस्कृतधारनादै-
रापूरिताम्बरतलोरुदिगन्तरालम् ।।।।
दृष्टं जिनेन्द्रभवनं विलसद्विलोल-
मालाकुलालिललितालकबिभ्रमाणम्
माधुर्यवाद्यलयनृत्यविलासिनीनां,
लीलाचलद्वलयनूपुरनादरम्यम् ।।।।

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दृष्टं जिनेन्द्रभवनं मणिरत्नहेम-
सारोज्ज्वलैः कलशचामरदर्पणाद्यैः
सन्मङ्गलैः सततमष्टशतप्रभेदै-
र्विभ्राजितं विमलमौक्तिकदामशोभम् ।।।।
दृष्टं जिनेन्द्रभवनं वरदेवदारु-
कर्पूरचन्दनतरुष्कसुगन्धिधूपैः
मेघायमानगगने पवनाभिघात-
चञ्चच्चलद्विमलकेतनतुङ्गशालम् ।।।।
दृष्टं जिनेन्द्रभवनं धवलातपत्र-
च्छायानिमग्नतनुयक्षकुमारवृन्दैः
दोधूयमानसितचामरपंक्तिभासं,
भामण्डलद्युतियुतप्रतिमाभिरामम् ।।।।
दृष्टं जिनेन्द्रभवनं विविधप्रकार-
पुष्पोपहाररमणीयसुररत्नभूमिः
नित्यं वसन्ततिलकश्रियमादधानं
सन्मङ्गलं सकलचन्द्रमुनीन्द्रवन्द्यम् ।।।।
दृष्टं मयाद्य मणिकाञ्चनचित्रतुङ्ग-
सिंहासनादिजिनबिम्बविभूतियुक्तम्
चैत्यालयं यदतुलं परिकीर्तितं मे,
सन्मङ्गलं सकलचन्द्रमुनीन्द्रवन्द्यम् ।।१०।।
इति दृष्टाष्टकस्तोत्रं संपूर्णम् ।।

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देवदर्शन
दर्शनं देव देवस्य दर्शनं पापनाशनं
दर्शनं स्वर्गसोपानं दर्शनं मोक्षसाधनम् ।।
दर्शनेन जिनेंद्राणां साधूनां वंदनने च
न चिरं तिष्ठते पापं छिद्रहस्ते यथोदकम् ।।
वीतरागमुखं दृष्ट्वा पद्मरागसमप्रभम्
अनेकजन्मकृतं पापं दर्शनेन विनश्यति ।।
दर्शनं जिनसूर्यस्य संसारध्वान्तनाशनम्
बोधनं चित्तपद्मस्य समस्तार्थप्रकाशनम् ।।
दर्शनं जिनचन्द्रस्य सद्धर्मामृतवर्षणम्
जन्मदाहविनाशाय वर्धनं सुखवारिधेः ।।
जीवादितत्त्वं प्रतिपादकाय, सम्यक्त्वमुख्याष्टगुणाश्रयाय
प्रशांतरूपाय दिगम्बराय, देवाधिदेवाय नमो जिनाय ।।
चिदानन्दैकरूपाय जिनाय परमात्मने
परमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः ।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम
तस्मात्कारुण्यभावेन रक्ष रक्ष जिनेश्वर ।।
न हि त्राता न हि त्राता न हि त्राता जगत्त्रये
वीतरागात्परो देवो न भूतो न भविष्यति ।।

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जिने भक्तिर्जिने भक्तिर्जिने भक्तिर्दिने दिने
सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु भवे भवे ।।
जिनधर्मविनिर्मुक्तो मा भवच्चक्रवर्त्यपि
स्याच्चेटोऽपि दरिद्रोऽपि जिनधर्मानुवासितः ।।
जन्मजन्मकृतं पापं जन्मकोटिमुपार्जितम्
जन्ममृत्युजरारोगं हन्यते जिनदर्शनात् ।।
अद्याभवस्सफलता नयनद्वयस्य,
देव त्वदीय चरणाम्बुजवीक्षणेन
अद्य त्रिलोकतिलक प्रतिभासते मे,
संसारवारिधिरयं चुलुकप्रमाणम् ।।
इति देवदर्शनं सम्पूर्णम् ।
जिनेन्द्रदर्शनस्तोत्र
अद्य मे सफलं जन्म नेत्रे च सफले मम
त्वामद्राक्षं यतो देव हेतुमक्षयसम्पदः ।।।।
अद्य संसारगम्भीरपारावारः सुदुस्तरः
सुतरोऽयं क्षणेनैव जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।।।
अद्य मे क्षालितं गात्रं नेत्रे च विमले कृते
स्नातोऽहं धर्मतीर्थेषु जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।।।

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अद्य मे सफलं जन्म प्रशस्तं सर्वमङ्गलम्
संसारार्णवत्तीर्णोऽहं जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।।।
अद्य कर्माष्टकज्वालं विधूतं सकषायकम्
दुर्गतेर्विनिवृत्तोऽहं जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।।।
अद्य सौम्या ग्रहाः सर्वे शुभाश्चैकादश-स्थिताः
नष्टानि विघ्नजालानि जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।।।
अद्य नष्टो महाबन्धः कर्मणां दुःखदायकः
सुखसंगं समापन्नो जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।।।
अद्य कर्माष्टकं नष्टं दुःखोत्पादनकारकम्
सुखाम्भोधिनिमग्नोऽहं जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।।।
अद्य मिथ्यान्धकारस्य हन्ता ज्ञानदिवाकरः
उदितो मच्छरीरेऽस्मिन् जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।।।
अद्याहं सुकृतो भूतो निर्धूताशेषकल्मषः
भुवनत्रयपूज्योऽहं जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।१०।।
अद्याष्टकं पठेद्यस्तु गुणानंदितमानसः
तस्य सर्वार्थसंसिद्धिर्जिनेन्द्र तव दर्शनात् ।।११।।
इति अद्याष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम्









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श्री सीमंधर जिनस्तवन
(रागप्रेम धर्मनो जगाव)
अंतरजामी जिनराज
तारो तारो महाराज,
आतमरामी शिरताज,
तारो तारो महाराज.....ए राह.
सीमंधर स्वामी त्राता,
सती सत्यकी छे माता;
भलुं दर्शन थयुं आज, तारो.......१
प्रभु अनंत गुणे बिराजो;
अपूर्व दिव्य ध्वनिए गाजो.
तरण तारण जहाज, तारो.......२
प्रभु तुंहि चिंतामणि मळियो,
दुःख दहाडो स्हेजे टळियो;
सर्यां सेवकनां सहु काज, तारो.......३
प्रभु बहु दूरे तमे वसिया;
पण मनडाथी नवि खसिया;
जेम मयूरने मेघराज, तारो.......४
प्रभु मंगल मूर्ति तुमारी,
देखी सुवर्णपुरी मोझारी;
हुं तो पाम्यो अमृत राज, तारो.......५
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श्री चतुर्विंशति जिन-स्तुति
(छंदः मन्दाक्रान्ता)
१. श्री ॠषभदेव जिनस्तुति
जेणे कीधी सकल जनता नीतिने जाणनारी,
त्यागी राज्यादिक विभवने जे थया मौनधारी;
वे’तो कीधो सुगम सबळो मोक्षनो मार्ग जेणे,
वन्दुं छुं ते ॠषभजिनने धर्मधोरी प्रभुने.
२. श्री अजितनाथ जिनस्तुति
देखी मूर्ति अजितजिननी नेत्र मारां ठरे छे,
ने हैयुं आ फरीफरी प्रभु ध्यान तेनुं धरे छे;
आत्मा मारो प्रभु तुज कने आववा उल्लसे छे,
आपो एवुं बळ हृदयमां माहरी आश ए छे.
३. श्री संभवनाथ जिनस्तुति
जे शान्तिना सुख सदनमां मुक्तिमां नित्य राजे;
जेनी वाणी भविक जनना चित्तमां नित्य गाजे;
देवेन्द्रोनी प्रणयभरनी भक्ति जेने ज छाजे,
वंदुं ते संभवजिनतणां पादपद्मो हुं आजे.
४. श्री अभिनन्दन जिनस्तुति
चोथा आरारूप नभ विषे दीपतां सूर्य जेवा,
घाती कर्मोरूप मृग विषे केसरी सिंह जेवा;