Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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तुज संगे सुखीयो सदा रे लाल,
भक्त भावे तुझ सेव रे जिने० तुज वि०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
रसीया सीमंधर जिनजी केसर, भीनी देहडी रे लो;
मारा नाथ जी रे लो;
रसीया मनवांछित वर पूरण, सुरतरु वेलडी रे लो; मारा०
रसीया अंजन रहित निरंजन,
नाम हीयें धरो रे लो; मारा०
रसीया जुगता करी मन भगते,
प्रभु पूजा करो रे लो. मारा०
रसीया श्रीनंदन आनंदन,
चंदनथी शीते रे लो; मारा०
रसीया ताप निवारण, तारण,
तरण तरी परे रे लो. मारा०
रसीया मनमोहन जगसोहन,
कोह नहीं किश्यो रे लो; मारा०
रसीया कूडा कळियुग मांही,
अवर न को इश्यो रे लो. मारा०
रसीया गुण संभाळी जाउं,
बलिहारी नाथनें रे लो; मारा०
१. वहाण. २. क्रोध ३. जूठा

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रसीया कोण प्रमादे छांडे,
शिवपुर साथने रे लो. मारा०
रसीया काच तणे कोण कारण,
नाखे सुरमणि रे लो; मारा०
रसीया कोण चाखे विषफळने,
मेवा अवगणी रे लो. मारा०
रसीया सुरनरपति सुत ठावो,
चावो चउदिशे रे लो; मारा०
रसीया त्रण भुवननो नाथके
थई बेठो विभु रे लो. मारा०
श्री नेमिनाथ जिनस्तवन
(दीठी हो प्रभु दीठी जगगुरु तुझए राग)
नेम हो प्रभु नेम जिणंदा देव!
सुणीए हो प्रभु सुणीए माहरी विनतीजी;
कहीए हो प्रभु! कहीए सघळी वात,
मनमांही हो प्रभु मनमांही जे बहुदिन हुतीजी.
तुज विना हो प्रभु! तुज विना दूजो देव,
माहरे हो प्रभु! माहरे चित्त आवे नहींजी;
१. चिंतामणि २. जगजाहेर.

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चाख्यो हो प्रभु! चाख्यो अमीरस जेणे,
बाकस हो प्रभु! बाकस तस भावे नहींजी.
दरिशन हो प्रभु! दरिशन वाहलुं मुज,
ताहरूं हो प्रभु! ताहरूं जेहथी दुःख टळेजी;
चाकर हो प्रभु! चाकर जाणो मोहि,
हैडुं हो प्रभु! हैडुं तो हेजे हळेजी.
तुजश्युं हो प्रभु! तुजश्युं मन एकांत,
चळीयो हो प्रभु! चळीयो कोईथी नव चळेजी;
अगनि हो प्रभु! अगनि प्रलय प्रसंग,
कंचन हो प्रभु ! कंचन गिरि कहो किम गळेजी.
श्री सुपार्श्वनाथ जिनस्तवन
(दीठी हो प्रभु दीठी जगगुरु तुझए देशी)
सुनिए हो प्रभु सुनिए देव सुपास,
मनकी हो प्रभु मनकी वात सवे कहुंजी;
थां विन हो प्रभु थां विन न लहुं सुख,
दीठे हो प्रभु दीठे मुख सुख लहुंजी.
छोडुं हो प्रभु छोडुं न थाकी गैल,
पाम्या हो प्रभु पाम्या विण सुख शिव तणांजी;
भोजन हो प्रभु भोजन भांजे भूख,
भांजे हो प्रभु भांजे भूख न भामणाजी.

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खमयो हो प्रभु खमयो माको दोस;
चाकर हो प्रभु चाकर म्हें छां राउलाजी;
मीठा हो प्रभु मीठा लागे बोल,
बालक हो प्रभु बालक बोले जे वाउलाजी.
केतूं हो प्रभु केतूं कहिए तुझ,
जाणो हो प्रभु जाणो सवि तुम्हे जगधणीजी;
धारी हो प्रभु धारी निवहो प्रेम,
लज्जा हो प्रभु लज्जा बांह ग्रह्या तणीजी.
सेवक हो प्रभु सेवक जाचे एम,
देजो हो प्रभु देजो दरशन सुख घणोजी.
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(दीठां लोयण आजराग)
ज्ञानी शिर चूडामणीजी, जगजीवन जिनचंद,
मळीओ तुं प्रभु ए समेजी, फळीओ सुरतरू कंद...
सीमंधर जिन तुम्हशुं अविहड नेह;
जिम बपईया मेह.....सीमंधर जिन०
मानुं में मरूमंडलेजी, पाम्यो सुरतरु सार;
भूख्याने भोजन भलुंजी, तरस्यां अमृत वारि...
सीमंधर जिन०

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दुषिन दूषमा काळमांजी, पूरव पुण्य प्रमाण;
तुं साहिब जो मुज मिळ्योजी, प्रगट्यो आज प्रभात....
सीमंधर जिन०
समरण पण प्रभुजी तणुंजी, जे करे ते कृतपुण्य,
दरिशण जे ए अवसरेजी, पामे ते धन्य धन्य...
सीमंधर जिन०
धन्य दिवस धन्य ए घडीजी, धन्य मुज वेलारे एह;
जगजीवन जग वालहोजी, भेट्यो तुं ससनेह....
सीमंधर जिन०
आज भली जागी दिशाजी, भागी भावठ दूर;
पाम्यो वांछित कामनाजी, प्रगट्यो सहज सनूर.....
सीमंधर जिन०
अंगीकृत निज दासनीजी, आशा पूरो रे देव;
जिन सेवक कहे तो सहिजी, सुगुण साहिबनी सेव....
सीमंधर जिन०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(आवेल आशा भर्याराग)
श्री सीमंधर स्वामीजी रे; महेर करो महाराज के,
हुं सेवक छुं ताहरो, अहनिश प्रभुजीनी चाकरी रे;
करवी एह ज काज के हुं०

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दुरलभ छे संसारमां रे, तुम सरीखानो संग के; हुं०
वळी तिमे दरिसण देखवुं रे, ते आळसु आंगणे गंग के.
हुं०
समय छतां नहि सेवशे रे, ते मूरख शिरदार के; हुं०
तुज सरीखो साहीब मळ्यो रे, फळीयो मनोरथ काज के.
हुं०
सफल थयो हवे माहरो रे, मनुष्य तणो अवतार के; हुं०
कल्पतरु सम ताहरो रे; पाम्यो छुं दीदार के.
हुं०
करम भरम दूरे टळ्यो रे, जब तुं मिलियो जिनराज के; हुं०
श्री जिनराज कृपा थकी रे, ज्ञानानंदी सुख थाय के.
हुं०
श्री सीमंधरनाथस्तवन
सीमंधर जिनवरजी छो देव दयाळ जो,
अवधारो वीनतडी गुण ज्ञानी तुमे रे लो;
कदीए थाशो परसन वयण रसाळ जो,
वारे रे वारे पूछां छां ते अमे रे लो.
सेवा करवा ऊभा छां दरबार जो,
राते रे दीहे रे ताहरे आगळे रे लो;

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खामी न पडे तेहमां एक लगार जो,
तोये रे तुमारो मनडो न मिले रे लो.
अखय खजानो ताहरो दीसे नाथ जो,
सेवकने देतां रे ओछुं शुं हवे रे लो.
साहिबाजी रे तो हुं थयो सनाथ जो,
नेक रे नजरशुं जो साहमुं जुवे रे लो.
मुजने आपो वहाला वंछितदान जो,
जेहवो रे तेहवो छुं तो पण ताहरो रे लो.
जगबंधव जाणीने ताहरे पास जो;
आव्यो रे उमाह धरीने नेहशुं रे लो;
श्री सद्गुरुराज पसाये आश जो,
सफळ फळी छे तुज सेवकनी जेहशुं रे लो.
श्री वर्द्धमान जिनस्तवन
(श्री श्रेयांस जिन अंतरजामीराग)
वर्द्धमान जिनवरने ध्याने, वर्द्धमान सम थावेजी;
वर्द्धमान विद्या सुपसाये, वर्द्धमान सुख पावेजी. व०
तुं गति मति थिति छे माहरो, जीवन प्राण आधारजी;
जयवंतु जगमां जस शासन, करतुं बहु उपगारजी. व०

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जे अज्ञानी तुम मत सरीखो, परमतनें करी जाणेजी;
कहो कुण अमृत ने विष सरीखुं, मंदमति विण जाणेजी. व०
जे तुम आगमरस सुधारसे, सींच्यो शीतल थायजी;
तास जनम सुकृतारथ जाणो, सुर नर तस गुण गायजी. व०
साहिब तुम पदपंकज सेवा, नित नित एहि ज याचुंजी;
श्री वर्द्धमान चरणने सेवी, प्रभुने ध्याने माचुंजी. व०
श्री अजितनाथ जिनस्तवन
(ॠषभजिणंद शुं प्रीतडीराग)
अजित जिनेसर इकमना, में कीधी हो तुम सुं ए तार के;
त्रिविध करि तुजने ग्रह्यो, में जाणी हो संसारमां सार के.
अजित जिनेसर०
मोटानी महेनते कियां, सही होवे हो कांई मोटी मोज के;
आतम मुज पवित्र हुवे, देखतां हो आवई दरसण रोज के.
अजित जिनेसर०
सदगुरुना उपदेशथी, छे तारक हो इम सुणीयो कान के;
तें तारक बहु तारीया, करजोडी हो करूं अरज तुं मान के.
अजित जिनेसर०
१. एक मनथी

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तारक तारि संसारथी, हुं विनवुं हो करूं अरज तुं मान के;
आंगणे अवरना जावतां, पामश्यो हो शोभा क्युं इस के.
अजित जिनेसर०
शुं हवे शोचो साहिबा, प्रभु पाखे हो तारक कुण होय के;
सेवक कहे प्रभु रंग स्युं, थे संपद हो ज्युं आतम पद जोय के.
अजित जिनेसर०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(ॠषभजिणंद शुं प्रीतडीराग)
मोरा स्वामी हो श्री प्रथम जिणंदके,
श्री सीमंधर जिन सांभळो;
मुज मननी हो जे हुं कहुं वात के,
छोडी मननो आमळो. मोरा०
गुण गिरूआहो अवसर लही आज के,
तुज चरणे आव्यो वही;
सेवकने हो करुणानी लहेर के,
जुओ जो मनमां उमही. मोरा०
तो होवे हो अंगो अंग आल्हाद के,
न कही जाए ते वातडी;
दयासिंधु हो सेवकने राखो के,
निरंतर तुज चरणमां. मोरा०

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हवे अंतर हो नवि धरवो चित्त के,
निज सेवक करी लेखवो;
सेवा चरणनी हो देज्यो वळी मुज के,
वीतरागता मुज आपजो. मोरा०
घणुं तुमने हो शुं कहुं भगवान के,
दुःख दोहग सहु चूरज्यो;
श्री सद्गुरु हो प्रभु दाखवे एम के,
मनवंछित तुमे पूरज्यो. मोरा०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(ॠषभजिणंद शुं प्रीतडीराग)
हांजी सुरतरू समोवड साहिबा,
जिन सीमंधर हो सीमंधर भगवान के;
हुं तुज दरिशण अलज्यो,
कर करुणा हो करुणा बहु मान के. सुर०
जिम शशि सायरनी परे,
वधे वधती हो जिम वेलनी रेल के,
तिम मुज आतम अनुभवे,
नवि मूके हो बहुलो तस मेल के. सुर०
छीलरता जल जळ ग्रही,
पीवे मूरख हो कोई चतुर सुजाण के;
१. खाबोचीयुं.

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निरमळ चित्तना चित्त धणी,
जाणे माणे हो गुणनी गुण खाण के. सुर०
चित्त चोखे मन मोकळे,
धरे ताहरूं हो निरमळ जे ध्यान के;
तो तस सवि सुख संपदा,
लहे खिणमां हो खिणमांहे ग्यान के. सुर०
महेर करो माहरा नाथजी,
जाणी प्राणी हो ए तुमचो दास के;
सद्गुरुना जिन साहिबा,
तुमे पूरो हो सेवकनी आश के. सुर०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(दीठी हो प्रभु दीठीराग)
सेवो हे मित्त सेवो सीमंधरनाथ,
साथ ज हे मित्त साथ ज ए शिवपुर तणोजी;
महमहे हे मित्त महमहे जास अनूप,
महिमा हे मित्त महिमा मही मांहे घणोजी;
मोटो हे मित्त मोटो ए जगदीश,
जगमां हे मित्त जगमांहे प्रभु जाणीयेजी;
अवर न हे मित्त अवर न कोई ईश,
एहनी हे मित्त एहनी उपमा आणीयेजी.
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प्रभुता हे मित्त प्रभुतानो नहि पार;
सायर हे मित्त सायर परे गुण मणि भर्योजी,
मूरति हे मित्त मूरति मोहनगार,
हरी परि हे मित्त हरी परि शिवकमळा वर्योजी;
तारक हे मित्त तारक जहाज ज्यूं एह,
आपें हे मित्त आपें भवजल निस्तर्योजी.
सुरमणि हे मित्त सुरमणि जेम सदैव,
संपद हे मित्त संपद सवि अलंकर्योजी.
ए सम हे मित्त ए सम अवर न देव,
सेवा हे मित्त सेवा एहनी कीजीयेजी,
कीजीये हे मित्त कीजीये जनम कृतार्थ,
मानव हे मित्त मानव भव फळ लीजीयेजी;
पूरे हे मित्त पूरे वंछित आश,
चूरे हे मित्त चूरे भवभय आपदाजी,
सुरतरु हे मित्त सुरतरु जेम सदैव,
आपे हे मित्त आपे शिवसुख संपदाजी.
श्री जिनेन्द्रस्तवन
धन धन हे मित्त धन धन तस अवतार,
जेने हे मित्त जेने तुं प्रभु भेटीओजी,

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पातक हे मित्त पातक तस गयां दूर,
भवभय हे मित्त भवभय तेणे मेटीओजी;
पामी हे मित्त पामी तेणे नवनिद्धि,
सिद्धि ज हे मित्त सिद्धि ज सघळी वश करीजी,
दुरगति हे मित्त दुरगति वारी दूर,
केवळ हे मित्त केवळ कमळा तिणे वरीजी.
सेवी हे मित्त सेवी साहिब एह,
हरीहर हे मित्त हरीहरने कहो कुण नमेजी,
चाखी हे मित्त चाखी अमृतस्वाद,
बाकस हे मित्त बाकस बूकस कुण जमेजी;
पामी हे मित्त पामी सुरतरु सार,
बाउल हे मित्त बाउल वनमां कुण भमेजी.
लेई हे मित्त लेई मृगमद वास,
पासे हे मित्त पासे लसण ने कुण रमेजी.
जाणी हे मित्त जाणी अंतर एम,
एहशुं हे मित्त एहशुं प्रेम ज राखीयेजी,
लहिये हे मित्त लहिये कामित काम,
शिवसुख हे मित्त शिवसुख सहेजे चाखीयेजी;
पामे हे मित्त पामे नवनिधि सिद्धि,
संपद हे मित्त संपद सघळी ते वरेजी.

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सेवो हे मित्त सेवो सीमंधरनाथ,
साथ ज हे मित्त साथ ज ए शिवपुरी तणोजी.
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(वीरसेनजगीशराग)
प्रणमुं सीमंधर जिणंद, जगजीवन जिनचंद;
आज हो स्वामी रे शिवगामी पाम्यो पुण्यथीजी.
हरख्या नयन चकोर, मेह देखी जिम मोर;
आज हो माचे रे सुख साचे राचे रंगशुंजी.
सुर नर नारी कोडि, प्रणमे बे कर जोडी;
आज हो निरखे रे चित्त हरखे परखे प्रेमशुंजी.
गाये मधुरी भास, खेले जिनगुण रास;
आज हो गाने रे जिन ध्याने मेळवेजी.
देखी प्रभु मुख नूर अद्भुत आणंदपुर;
आज हो वाधे रे सुख साधे लाधे जिम निधिजी.
धन धन तस अवतार, सुकृत सफळ संसार;
आज हो जिणे रे सुखदायक नायक निरखीओजी.
सकळ सफळ तस दीह धन धन तस शुभ जीह;
आज हो जेणे रे गुणलीणे, स्वामी संस्तव्योजी.

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शिव संपद दातार, गुणगण मणि भंडार;
आज हो जाणी रे सुखखाणी प्राणी सेवीएजी.
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(मारा पीयरीये जईने केजो के आणा मोकलेराग)
श्री सीमंधर श्यामने केजो के विनति सुणजो,
प्रभु साक्षात् दर्शन देजो के विनति सुणजो;
प्रभु काया पाम्यो छुं हुं एवी, पांख विना आवुं केम ऊडी,
एवी लब्धि नहि कोई रूडी, के विनति सुणजो.
तुम सेवामां छे सुर कोडी, एक आवे इंहा प्रभु दोडी,
आश फले माहरी अति रूडी, के विनति सुणजो.
दुःषम समये इण भरते, अतिशय नाणी नही वरते;
कहो कहीए कोण सांभळते, के विनति सुणजो.
क्रोध मान माया लोभ भारे, प्रभु अटक्यो हतो हुं त्यारे;
हवे अटकुं नहि लगारे, के विनति सुणजो.
वीतराग विरहनो ताप, दिव्य दर्शन नहि ते उताप,
नाथ टाळो ए सघळो संताप, के विनति सुणजो.
अपराधीने होय छे दंड, हवे पूरो थयो ए फंड;
नाथ दर्शन दीयोने उमंग, के विनति सुणजो.

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प्रभु तुज दर्शनने पामी, सकल विभावोने वामी,
थाशुं निश्चये आतमरामी के विनति सुणजो.
श्री ॠषभदेव जिनस्तवन
प्रभुजी आदीसर अलवेसर जिन अवधारीयेरे लो;
प्रभुजी सुनजर करीने सेवक भाव वधारीयेरे लो,
प्रभुजी तारक एहवो बिरूद तुमारो छे सहीरे लो,
प्रभुजी तिणे मनमांही वसिया ओर गमे नहीं रे लो.
प्रभुजी मरुदेवीना नंदन महेर करीजीएरे लो,
प्रभुजी ओळगिया जाणीने स्वरूपने दीजीएरे लो,
प्रभुजी क्रोधादिक दुःखदायी दूर निवारियेरे लो,
प्रभुजी निरमळ मुजने करीने पार उतारियेरे लो.
प्रभुजी मनमंदिरीये माहरे वहेला आवजोरे लो,
प्रभुजी निज अनुचर जाणीने धरम बतावजोरे लो,
प्रभुजी इण जगमां उपगारी भविने तारणोरे लो,
प्रभुजी ध्येय सरूपे तुं छे भवभय वारणोरे लो.
प्रभुजी अहनिशि मुजने नाम तुमारूं सांभरेरे लो,
प्रभुजी तिमतिम माहरो अंतर आतम अति ठरेरे लो,
प्रभुजी बहु गुणनो तुं दरियो भरियो छे घणुंरे लो,
प्रभुजी तेमांथी शुं देतां जाये तुम तणुंरे लो.

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प्रभुजी तुम पदकजनी सेवा कल्पतरु समीरे लो,
प्रभुजी मुजने आपजो तेह कहुं पाये नमीरे लो.
श्री सीमंधरनाथ जिनस्तवन
(श्री सीमंधर श्यामने केजो के विनति सुणजोराग)
भरतना चंदाजी तमे जाजो रे तमे जाजो रे
महाविदेहना देशमां,
त्यां सीमंधरतातने के’जो एटलडुं के’जो एटलडुं
जईने के’जो के तेडा मोकले.
जंबु भरते छे दास तुमारो, ए झंखी रह्यो छे दिनरातो;
त्यां कोण छे एने आधारो, के तेडा मोकले.
वीर प्रभु थया छे सिद्ध, आतमनी घटी छे रिद्ध;
नहि आचार्य मुनिना जुथ्थ, के तेडा मोकले. ३
जेम मात विहूणो बाळ, अरहो परहो अथडाय;
पछी आकुल व्याकुळ थाय, के तेडा मोकले.
धन्य धन्य विदेहना आतमा, जेणे होंसे सेव्या परमातमा;
हुं भळुं प्रभु ए भातमां, के तेडा मोकले.
प्रभु संयम लई रहुं साथे, निज स्वरूप स्थिरतानी गाढे;
एवो अवसर झट मुने आपे, के तेडा मोकले.

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प्रभु दास बीजुं नव मागे, एक आतम इच्छुं तुम साखे;
एवी अंतरनी ऊंडी अभिलाषे, के तेडा मोकले.
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(आवो आवो त्रिशलाना नंद अम घेर आवो रेराग)
आवो आवो सीमंधरनाथ अम घेर आवो रे,
रूडा भक्तवत्सल भगवंत नाथ पधारो रे. आवो.
श्री त्रिभुवन तारक देव मारे धेर आवो रे,
मारा मनना मनोरथ आज पूरा पाडो रे. आवो.
प्रभु देखी उपशम नूर हैडे हरख्यो रे,
मैं देख्यो जिन दीदार वांछित फळियो रे. आवो.
ए भेट्यो श्री जिनराज सार ए दिनथी रे,
मैं देख्यो ए सुखकार दरिशण जिनथी रे. आवो.
हुं कई विध पूजुं नाथ कई विध वंदुं रे,
मारे आंगणे विदेही नाथ जोई जोई हरखुं रे. आवो.
प्रभु सुरतरुथी पण अधिक मुजने मळियो रे,
मारो जन्म थयो कृतार्थ सुरमणि फळियो रे. आवो.
कहान गुरु प्रतापे आज जिनवर मळिया रे,
मारा आतमनां ए दुःख सर्वे टळिया रे. आवो.
गुरुराजे कर्यो उपकार राखी नहि खामी रे,
आ पामर पर करुणा अति वरसावी रे. आवो.

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श्री देव अने गुरुराज मारे घेर आवो रे,
हुं अंतरना उछरंगे प्रभुजी वधावुं रे. आवो.
श्री सीमंधरनाथ जिनस्तवन
(आवो आवो पासजी मुने मळियारेराग)
आवो आवो सीमंधर प्रभु मळिया रे,
मारा मनना मनोरथ फळिया; आवो......आवो.......
मारा आंगणा आज उजळिया, आवो......आवो........
मारा अंतर आज उछळिया, आवो........आवो.......
मारा कार्य सरवे सुधरिया.......आवो.........आवो०
तारी मूर्ति मोहनगारी रे, सर्व भक्तने लागे छे प्यारी रे;
तमने मोही रह्या सुरनरनारी.........आवो......आवो०
अलबेली मूरत प्रभु तारी रे, तारा मुखडा उपर जावुं वारी रे,
भव्य जीवोने लीधा उगारी......आवो......आवो०
धन्य धन्य देवाधिदेवारे, सुरलोक करे छे सेवा रे;
अमने आपोने शिवपुर मेवा......आवो.......आवो०
जे कोई सीमंधर तणा गुण गाशे रे भव भवना पातिक जाशे रे;
तेना समकित निर्मळ थाशे........आवो.......आवो०
तमे शिवरमणीना रसिया रे, महाविदेह क्षेत्रमां वसिया रे;
मारा हृदय कमळमां वसिया....आवो.......आवो०

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प्रभु सीमंधर जिनराया रे, माता सत्यवतीना जाया रे;
अमने दरिशण दोने दयाळा.....आवो.....आवो०
गुरुराज प्रतापे प्रभु मळिया रे, मारा गुरुजी छे गुणना दरिया रे;
ज्ञान-दर्शनादिक गुणथी भरिया.....आवो.......आवो०
हुं तो लळी लळी लागुं छुं पाय रे, मारा उरमां ते हरख न माय रे;
एम भक्त भावेथी गुण गाय........आवो......आवो०
श्री गुरुराजमहिमा
श्री सद्गुरुजी महिमा अपार के,
हुं शुं कथी शकुं रे लोल.
तेमना गुण छे अपरंपार के,
अचिंत्य आत्म झळकी रह्यो रे लोल.
अद्भुत ज्ञान खजानो अपार के,
चरणादिक शोभी रह्या रे लोल.
खीलेल आतमशक्ति अपार के,
चैतन्य तेज दीपी कह्युं रे लोल.
समयसारआदिमांथी काढेल मावो के,
खवडाव्यो खंतथी रे लोल.
पींखी पींखी अने समजाव्युं,
रहस्य हृदयनुं रे लोल.