Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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मीठी जुठी वातनी,
संकलना हे नवि जाणे बाल के;
बोल अमोल करे पिता,
जगमांही हे तुं लील भूपाल के.....सीमंधर०
स्वरूप निर्मळ वधारस्यो,
सेवकने हे तुं वाछ्युं देई दान के;
भक्तिवशे कहे बाल ए,
भक्तवच्छल हे बिरूद सुण्यो कान रे.....सीमंधर०
श्री सीमंधरनाथस्तवन
हांरे म्हारे सीमंधर जिनशुं लागी पूरण प्रीत जो,
साहिबजीनी सेवा भवदुःख भांजशेरे लोल;
हांरे जिन प्रतिमा जिनवर सरखी दिलमां जोय जो,
भक्ति करतां प्रभुजी खूब निवाजशेरे लोल.
हांरे जेने जोतां लाध्यो रत्न चिंतामणि हाथ जो,
तेहने रे मूकीने कुण ग्रहे काचनेरे लोल;
हांरे जेने हैडे लागी प्रभुजी शुं रढजो,
तेहने मन बीजानो संग नवी गमे रे लोल.
हांरे जे पाम्या परिमल प्रीते अमृतपान जो,
खारूं जल ते पीवा कहो कुण मन करे रे लोल;

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हांरे जे घरमां बेठा पाम्या लखमी जोर जो,
धनने काजे देश देशांतर कोण फरे रे लोल.
हांरे जेणे सेव्या पूरण चित्ते अरिहंत देव जो,
तेहनारे मनमांहे केम बीजा गमे रे लोल;
हांरे ए तो दोष रहित निष्कलंकी गुण भंडार जो,
मनडुं रे अमारूं प्रभु साथे रमे रे लोल.
हांरे मुने मलिया पूर्ण भाग्ये सीमंधरनाथ जो,
देखीने हुं हरख्यो तन मन रंजियोरे लोल;
हांरे ए तो दोलतदायी प्रभुजीनो देदार जो,
में तो जोतां प्रभुने कर्मदल गंजीयो रे लोल.
श्री सीमंधरदेवस्तवन
श्री सीमंधर स्वामीजीने, करूं रे प्रणाम;
मूरति सुरति निरखी हरख्यो, माहरो आतमराम...
मारा सुखना हो ठाम, मीठी आंखे देखत मोरी भावठ गई.
अचरज तारी वार्तामां, थयो रे करार;
मूढ पणे विसारी मूकी, नवि कीधो निरधार....मारा०
अवगुण मुजमां छे घणा, पण साहेब न आणो मन;
लोक कलंकी थापिओ, पण शशी हर राख्यो तन....मारा०
भवमां भमतां जोईओ, में तुम्ह सरीखो देव,
दीठो नहि तेणे कारणे में, निश्चे करवी सेव.....मारा०

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ज्ञानानंद पद तें दीयो, महेर करी महाराज;
एटलो दिन लेखे थयो ने, सफळ थयो भव आज......मारा०
श्री वीर जिनस्तवन
(दुर्लभभव लही दोहीलो एराग)
आज सफळ दिन माहरो ए, भेट्यो वीर जिणंद के;
त्रिभुवननो धणी ए.
त्रिशलाराणीनो नंद ए के, जग चिंतामणिनाथ; त्रि०
दुःख दोहग दूरे टळ्यां ए, पेखी प्रभु मुखचंद के....त्रि०
रिद्धि वृद्धि सुख संपदा ए, उलट अंगे न माय के; त्रि०
आवी मुज घर आंगणे ए, सुरगवि हेज सवाय के. त्रि०
चिंतामणि मुज कर चढ्युं ए, पायो त्रिभुवनराज के; त्रि०
मुह मांग्या पासा ढळ्यां ए, सिध्यां वंछित काज के. त्रि०
चित्त चाह्या साजन मिळ्या ए, दुरजन उड्या वाय के; त्रि०
सौम्य नजर प्रभुनी लहीए, जेहवी सुरतरु छांय के. त्रि०
तेज झलाहल दीपतो ए, ऊग्यो समकित सूर के त्रि०
श्री देवगुरुराजनो ए भक्त लहे सुखपूर के. त्रि०
१. कामधेनु गाय. २. समकितरूपी सूर्य.

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श्री सीमंधर जिनस्तवन
(ॠषभ जिणंदशुं प्रीतडीए देशी)
श्री सीमंधर साहिबा,
सुणो संप्रति हो भरतक्षेत्रनी वात के;
अरिहा केवली को नहि,
केने कहिये हो मनना अवदात के.....श्री सीमंधर०
झाझुं कहेतां जुगतुं नहि,
तुम सोहे हो जग केवलनाण के;
भूख्यां भोजन मागतां,
आपे उलट हो अवसरना जाण के.....श्री सीमंधर०
कहेश्यो तुम जुगता नहि,
जुगताने हो वळी तारे सांई के;
योग्य जननुं कहेवुं किश्युं,
अल्पशक्तिवंतने हो तारो ग्रही बांही के.....श्री सीमंधर०
थोडुं ही अवसरे आपीए,
घणानी हो प्रभु छे पछी वात के;
पगले पगले पार पामीये,
पछी लहीये हो सघळा अवदात के.....श्री सीमंधर०
मोडुं वहेलुं तमे आपशो,
बीजानो हो हुं न करुं संग के;

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श्री सीमंधरप्रभु शिष्यनो,
राखीजे हो प्रभु अविचल रंग के.....श्री सीमंधर०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(दीठी हो प्रभु दीठी जगगुरु तुझए देशी)
साचो हो प्रभु साचो तुं वीतराग,
जाण्यो हो प्रभु जाण्यो में निश्चे करीजी;
काचो हो प्रभु काचो मोह जंजाळ,
छांडी हो प्रभु छांडी तें समता धरीजी.
सेवे हो प्रभु सेवे देवनी कोडी,
जोडी हो प्रभु जोडी निज कर आगलेजी;
देवे हों प्रभु देवे इंद्रनी नार,
द्रष्टि हो प्रभु द्रष्टि तुझ गुण रागलेजी.
गावे हो प्रभु गावे किन्नरी गीत,
झीणे हो प्रभु झीणे रागे रस भरीजी;
बोले हो प्रभु बोले खग यशवाद,
भावे हो प्रभु भावे मुनि ध्याने धरीजी.
सोहे हो प्रभु सोहे अतिशय रूप,
बेसे हो प्रभु बेसे कनक सिंहासनेजी;
गाजे हो प्रभु गाजे मधुरो नाद,
राजे हो प्रभु राजे संघ तुझ शासनेजी.

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तुं तो हो प्रभु तुं तो ताहरे रूप,
भुंजे हो प्रभु भुंजे संपद आपणीजी;
नाठी हो प्रभु नाठी कर्म तति दूर,
उठी हो प्रभु उठी तुझथी पापणीजी.
जोवो हो प्रभु जोवो मुझ एक वार,
स्वामी हो प्रभु स्वामी सीमंधर धणीजी;
वृद्धि हो प्रभु वृद्धि ज्ञानादि अपार,
पामे हो प्रभु पामे शिव लक्ष्मी धणीजी.
श्री अनंतनाथ जिनस्तवन
(ॠषभ जिणंदसुं प्रीतडीए देशी)
अनंत जिणंदसुं प्रीतडी,
नीकी लागी हो अमृतरस जेम,
अवर सरागी देवनी,
विष सरीखी हो सेवा करुं केम.....अ०
जिम पदमिनी मन पिउ वसे,
निरधनीया हो मन धनकी प्रीत;
मधुकर केतकी मन वसे,
जिम साजन हो विरहीजन चित्त.....अ०
करषणी मेघ आषाढ ज्युं,
निज वाछड हो सुरभि जिम प्रेम;

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साहिब अनंत जिणंदसुं,
मुझ लागी हो भक्ति मन तेम.....अ०
प्रीति अनादिनी दुःख भरी,
में कीधी हो पर पुद्गल संग;
जगत भम्यो तिण प्रीतसुं,
स्वांग धारी हो नाच्यो नवनव रंग.....अ०
जिसको अपना जानीया,
तिन दीधा हो छीनमें अति छेह;
परजन केरी प्रीतडी,
में देखी हो अंते निःसनेह.....अ०
मेरा कोई न जगतमें,
तुम छोडी हो जिनवर जगदीश;
प्रीत करूं अब कोनसुं,
तुं त्राता हो मोहे विसवावीस.....अ०
आतमराम तुं माहरो,
सिरसेहरो हो हैयडानो हार;
दीनदयाल कृपा करो,
मुझ वेगे हो अब पार उतार.....अ०

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श्री सीमंधर जिनस्तवन
(साहिब अजित जिणंद जुहारियेए देशी)
साहिब श्री सीमंधर साहिबा,
साहेब तुम प्रभु देवाधिदेव;
सनमुख जुओने म्हारा साहिबा,
साहेब मन शुद्धे करुं तुम सेव,
एक वार मळोने म्हारा साहिबा.....१
साहेब सुख दुःख वातो म्हारे अति घणी,
साहेब कोण आगळ कहुं नाथ; सनमुख०
साहेब केवळज्ञानी प्रभु जो मळे,
साहेब तो थाउं हुं रे सनाथ. एक वार०
साहेब भरतक्षेत्रमां हुं अवतर्यो,
साहेब ओछुं एटलुं पुण्य; सनमुख०
साहेब ज्ञान विरह पड्यो आकरो,
साहेब ज्ञान रह्युं अति न्यून. एक वार०
साहेब जेम शुद्धाशुद्ध वस्तु छे,
साहेब रवि करे तेह प्रकाश; सनमुख०
साहेब तिमहीज ज्ञानी मळे थके,
ते तो आपे रे समकित वास. एक वार०

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साहेब मेघ वरसे छे वाडमां,
साहेब वरसे छे गामोगाम; सनमुख०
साहेब ठाम कुठाम जुए नहि,
साहेब एवां म्होटानां काम. एक वार०
साहेब हुं वस्यो भरतने छेडले,
साहेब तुमे वस्या महाविदेह मोझार; सनमुख०
साहेब दूर रही करूं वंदना,
साहेब भवसमुद्र उतारो पार. एक वार०
साहेब तुम पासे देव घणा वसे,
साहेब एक मोकलजो महाराज; सनमुख०
साहेब मुखनो संदेशो सांभळो,
साहेब तो सहेजे सरे मुज काज. एक वार०
साहेब हुं तुम पगनी मोजडी,
साहेब हुं तुम दासनो दास; सनमुख०
साहेब तुम सेवकनी नम्र प्रार्थना,
साहेब मने राखो तमारी पास. एक वार०
श्री शांतिनाथस्तवन
(दीठी हो प्रभु दीठीराग)
शांति हो जिन शांति करो शांतिनाथ,
अचिरा हो जिन अचिरानंदन वंदनाजी;

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केवळ हो प्रभु केवळ लहीये दीदार,
भागी हो जिन भागी भावठ भंजनाजी.
प्रगटी हो जिन प्रगटी रिद्धि निदान,
माहरे हो जिन माहरे जस सुरतरू फळ्यो;
तोरण हो जिन तोरण बांध्या बार,
अभय हो जिन अभयदान दाता मळ्योजी.
दायक हो जिन दायक दीनदयाळ,
जेहने हो जिन जेहने बोले हुए मुदाजी;
जिननी हो जिन जिननी वाणी मुज,
प्यारी हो जिन प्यारी लागे ते सदाजी.
उदयो हो जिन उदयो ज्ञानदिणंद,
धाठो हो जिन धाठो अशुभ शुभ दिन वळ्योजी;
मळीओ हो जिन मळीओ इष्ट संयोग,
सुंदर हो जिन सुंदरता तन मन भळ्योजी.
साखी हो जिन साखी इंद नरिंद,
अवर हो जिन अवर अनुभव आतमाजी;
प्रेमे हो जिन प्रेमे सेवक सुजाण,
गाया हो जिन गाया गुण ए तातनाजी.
१. आनंद.

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श्री सीमंधर जिनस्तवन
(ललनाराग)
प्रणमुं प्रेमे प्रह समे, जिनवर सीमंधरनाथ भवियण;
ए जगमांहीं जोवतां साचो शिवपुर साथ....
भवि० प्रणमुं०
सुखदायक साहिब मल्यो, तो फल्यो सुरतरु बार; भवि०
देखी प्रभु दीदारने पामीजे भव पार.....
भवि० प्रणमुं०
नामथी नवनिधि पामी, दरिशण दुरित पलाय; भवि०
प्रह समे प्रेमे प्रणमतां, भवभव पातिक जाय....
भवि० प्रणमुं०
सुरती ए जिनवर तणी, साची सुरतरु वेल; भवि०
निरखंता नित नयणशुं, उगमे आनंद रेल.....
भवि० प्रणमुं०
शांति सुधारसशुं भरी, ए मूरति मनोहार; भवि०
प्रणमे जे नित प्रेमशुं, धन धन तस अवतार.....
भवि० प्रणमुं०
पुण्य हशे ते पामशे, ए जिननी नित सेव; भव०
सकळ गुणे करी शोभतो, अवर न एहवो देव......
भवि० प्रणमुं०

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चरणकमळ ए प्रभु तणां, सेवंतां निशदीस; भवि०
ज्ञानानंद तणी संपदा, पामीये विसवावीश.....
प्रभु० प्रणमुं०
श्री पद्म जिनस्तवन
(राजुल कहे छे नाथ बोल्या पाळजो रेराग)
पद्म जिनेश्वर विनती, मुज मननीजी;
विनती करुं वारंवार, सुणो भवभवनीजी.
घणा पुण्ये तुम्ह पामीयो, सुखदाताजी;
मुख पंकज दीदार, थई मन शाताजी.
में निश्चय सेती तुं धर्यो चित्त हरखेजी;
नाणु लई जेम कोई खरो, निज परखेजी.
कंचन कसोटी चाटतां खरूं खोटुंजी;
तिम तुंही ज मुज स्वामी, महातम मोटुंजी.
प्रेम धरीने नीरखीयो, सुण स्वामीजी;
मीठी महेर करी रे, नवनिधि पामीजी.
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(धरम परम अरनाथनोराग)
सीमंधर थासुं विनवुं, विनति अवधारोजी;
सेवक हुं छुं ताहरो, मने पार उतारोजी.
सीमंधर०

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धन्य विदेहनां मानवी, नित्य दर्शन करतांजी;
पाय तुमारा सेवीने, शीवरमणी वरताजी,
सीमंधर०
कोटी देव जघन्यथी, प्रभु पासे ठावेजी,
एक त्यांथी अहीं आवतां, दास दर्शन पावेजी.
सीमंधर०
तिहां तो आरो सुखमो, इहां दुखमो आरोजी,
प्रभु चरणना रागथी, मने लागे ए सारोजी.
सीमंधर०
भरते क्लेश वधी पड्यो, वाद समय स्थपायोजी;
भुंडी हुंडाए दाखव्युं स्वेच्छाचारी पूजायोजी.
सीमंधर०
प्रभु रागे हुं बची गयो, में ए फंद नसायोजी;
तुज कृपाए आ चित्तमां, आगमसार वसायोजी.
सीमंधर०
ज्ञान चारित्र मारूं प्रभु, रहे स्थिर एम किजोजी;
लोक हेरीमां हुं ना पडुं, वरदान ए दीजोजी.
सीमंधर०
आवता भवे प्रभु पादनी, सेवा व्रतयुत दीजोजी;
यथाख्यात मुज आपीने, साथे मोक्षमां लीजोजी.
सीमंधर०

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आत्मकमलमां जिन! तुमे, अविचलभावे बिराजोजी;
सार सकल मुज आपीने, अष्ट कर्मोने कापोजी.
सीमंधर०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(दीठी हो प्रभु दीठीराग)
फळिया हो प्रभु फळिया मनोरथ मुज,
मळिया हो प्रभु मळिया देव जिनेश्वरूजी;
उज्ज्वळ हो प्रभु पृथ्वी उज्ज्वळ कीध,
पूरण हो प्रभु पूरण आशा सुरतरूजी.
आपे हो प्रभु आपे सवि सुख रिद्धि,
थापे हो प्रभु थापे निज पद लोकनेजी;
व्यापे हो प्रभु व्यापे प्रभु गुण जेह,
कापे हो प्रभु कापे तेहना शोकनेजी.
धनधन हो प्रभु धनधन तुं जगमांहि,
मुज मन हो प्रभु मुज मनमें तुंहि ज वस्योजी;
निरखी हो प्रभु निरखी ताहरूं रूप,
हरखी हो प्रभु हरखी तन मन उलस्योजी.
समता हो प्रभु समता अमृतसिंधु,
गमता हो प्रभु मन गमता स्वामी मळ्याजी;

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तेहवा हो प्रभु तेहवा दीठा आज,
जेहवा हो प्रभु जेहवा काने सांभळ्याजी.
माहरी हो प्रभु माहरी पूगी आश,
ताहरी हो प्रभु ताहरी करुणा हुई हवेजी;
जिनजी हो प्रभु जिनजी तारो दास,
विनवुं हो प्रभु विनवुं हुं भावे करीजी.
श्री जिनेन्द्रस्तवन
(जिनवर पूजोराग)
जगलोचन जब उगीओ रे, पसर्यो पुहवि प्रकाश;
गुणरा लायक.
अनुभव ए मुज वातनो रे, उदय हुओ उजास; गुण०
ऊग्यो ऊग्यो रे, जिनवर ऊग्यो, हांरे प्रभु ऊग्यो महाप्रभात;
गुणरा लायक.
भजन थकी भव भयहरू रे, दरिसणथी दूर दुःख; गुण०
पईव कपूरनी वासते रे, पामे महा सुर सुख. गुण०
अविहड एहने कारणे रे, धरे धरमशुं ध्यान; गुण०
चित्त वित्त पात्र संजोगशुं रे, प्रगटे बहुरिद्धि दान. गुण०
स्वरूप वधारण साहिबो रे, कामितकामनो धाम; गुण०
जलधर जल वरसे सदा रे, न जोवे ठाम कुठाम. गुण०
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पश्चिम इंदु रवि पूरवे रे, जगत नमे जस पाय; गुण०
चित्त वित्त पात्रने कारणे रे, पामुं आतम लाभ. गुण०
श्री चंद्रप्रभ जिनस्तवन
हांरे मारे चंद्रवदन जिन चंद्रप्रभु जगनाहजो.
दीठो मीठो इच्छो जिनवर आठमो रे लो; हांरे०
हांरे प्रभु मनडानो मानीतो प्राण आधार जो,
जग सुखदायक जंगमसुर साखी समो रे लो; हांरे०
हांरे प्रभु शुद्ध आशय उदयाचळ समकित सूर जो,
विमलदशा पूरव दिशे ऊग्यो दीपतो रे लो; हांरे०
हांरे प्रभु सद्हणा अनुमोद परिमल पूर जो,
परछायो मन मानससर अनुभव वायरे रे लो; हांरे०
हांरे प्रभु चेतन चकवा उपशम सरवर नीर जो,
शुभमति चकवी संगे रंग रमल करे रे लो. हांरे०
हांरे प्रभु ज्ञानप्रकाशे नयणलां मुज दोय जो,
जाणे रे खटद्रव्य स्वभावे चैतन्यप्रभु रे लो; हांरे०
हांरे प्रभु जड चेतन भिन्नाभिन्न नित्यानित्य जो;
रूपी अरूपी आदि स्वरूप ज्ञायकपणे रे लो; हांरे०
हांरे प्रभु लखगुणदायक लखमणा राणी नंद जो,
चरण सरोरूह सेवा मेवा सारीखी रे लो, हांरे०

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श्री नेमिनाथ जिनस्तवन
(स्वामी सुजात सुहायाराग)
नेमि जिणेसर मुज परमेसर, अलवेसर उपगारी रे;
सुण साहिबा साचा.
जगजीवन जिनराज जयंकर, मुजने तुज सुरति प्यारी रे.
सुण साहिबा साचा०
महिर करीजे वंछित दीजे, सेवक चित्त धरीजे रे; सुण०
सेवा जाणी शिवसुख खाणी, भक्ति सहि नाणी दीजे रे.
सुण०
कामकुंभ ने सुरतरुथी पण, प्रभु भक्ति मुज प्यारी रे; सुण०
जेओए खिण एक लगी सेवी, शिवसुखनी दातारी रे.
सुण०
भगति सुवासना वासे वासित, जे होये भवि प्राणी रे; सुण०
जीवनमुक्त चिदानंद रूपी, ते कहिये शुद्ध नाणी रे.
सुण०
प्रभु तुम भक्ति तणी अति मोटी, शक्ति ए जगमां व्यापे रे;
एक वार पण भावे सेवी, चिदानंद पद आपे रे.
सुण०
पूरण पूरव पुण्य पसाये, जो तुम्ह भगति में पामी रे; सुण०
तो हुं दुत्तर ए भव दरियो, तरीओ सहेजे स्वामी रे.
सुण०

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साहिब सेवक जाणी साचो नेक सुनजरे जोजो रे; सुण०
सेवक कहे भवभव जिनजी, तुम्ह भगति मुज होजो रे.
सुण०
श्री नेमिनाथ जिनस्तवन
(आदित्य अरिहंतराग)
नेमि जिनेसर देव नयणे दीठा रे,
मूरतिवंत महंत लागे मीठा रे;
मधुरी जेहनी वाणी जेवी शेलडी,
सांभळतां सुख थाय कामित वेलडी.
जाग्यां माहरां भाग्य तुज चरणे आयो,
पाप गयां पलाय गंगाजळ न्हायो;
दूधे वरस्या मेह अशुभ दिवस नाठा,
दूर गया दुःखदंद दुश्मन थया माठा.
हवे माहरो अवतार सफळ थयो लेखे,
पण मुजने एक वार कृपा नजरे देखे,
सुरमणिथी जगदिश तुमे तो अधिक मिल्या,
पासा माहरे दाव मुह माग्या ढळीया.
भूख्याने महाराज जिम भोजन मिले,
तरस्याने टाढुं नीर अंतर ताप टळे;

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थाक्यो ते सुखपाळ बेसी सुख पामे,
तेम चाहंतां मित्त मिलतां हित जामे.
ताहरे चरणे नाथ हेजे वळग्यो छुं,
कदीय म देजो छेह नहि हुं अळगो छुं;
श्री सद्गुरु ज्ञानी प्रभुजी उपगारी,
सेवक नमे तुम पाय थाये शिवगामी.
श्री सीमंधर जिनेश्वरस्तवन
(पद्मप्रभु गुणनिधिरे लालए देशी)
सीमंधर जिनेश्वर जाणजो रे लाल,
मुज मननो अभिप्राय रे...जिनेश्वर मोरा;
तुं आतम अलवेसरू रे लाल,
रखे तुज विरहो थाय रे....जिनेश्वर मोरा;
तुज विरहो केम वेठीए रे लाल.....१
तुज विरहो दुःखदाय रे जिने०
तुज विरहो न खमाय रे जिने०
खीण वरसांसो थाय रे जिने०
विरहो म्होटी बलाय रे जिने०
तुज विरहो केम वेठीये रे लाल....२
ताहरी पासे आववुं रे लाल,
पहेलां न आवे तुं दाय रे...जिनेश्वर मोरा;

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आव्या पछी तो जायवुं रे लाल,
तुज गुण वश्ये न सोहाय रे......
जिनेश्वर मोरा, तुज विरहो केम वेठीये रे लाल.
न मळ्यानो धोखो नहीं रे लाल,
जस गुणनुं नहि नाण रे जिने०
मिळिया गुण कळिया पछी रे लाल,
विछुरत जाए प्राण रे जिने० तु०
जाति अंधने दुःख नहीं रे लाल,
न लहे नयननो स्वाद रे जिने०
नयण सवाद लही करी रे लाल,
हार्याने विखवाद रे जिने० तु०
बीजे पण क्यांहि नवि गमे रे लाल,
जिणे तुज विरहे बचाय रे जिनेश्वर मोरा;
मालती कुसुमे म्हालीयो रे लाल,
मधुप करीरे न जाय रे. जिने० तुज वि०
वन दव दाधां रूखडां रे लाल,
पाल्हवे वळी वरसात रे जिनेश्वर मोरा;
तुज विरहानळना दह्या रे लाल,
काळ अनंत गमात रे जिने० तुज वि०
टाढक रहे तुज संगमां रे लाल,
आकुळता मिटी जाय रे जिनेश्वर मोरा;