Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाणा खडखड कुण खमे रे,
पूरो आश्यालंब रे.....प्रभु गुण भरिआ.
मन मंदिर छे माहरुं रे,
प्रभु! तुझ वसवा लाग रे..प्रभु सुख दरिआ;
माया कंटक काढीआ रे,
कीधो क्रोध-रज त्याग रे....प्रभु गुण भरिआ.
प्रगटी सुरुचि सुवासना रे,
मृगमद मिश्र कपूर रे...प्रभु सुख दरिआ;
धूप घटी इंहां महमहे रे,
शासन श्रद्धा पूर रे....प्रभु गुण भरिआ.
चारित्र शुद्ध बिछावणां रे,
तकिआ पंच-आचार रे....प्रभु सुख दरिआ;
चिंहु दिशि दीवा झगमगे रे,
ज्ञान रतन विस्तार रे....प्रभु गुण भरिआ.
अध्यातम धज लहलहे रे,
मणि तोरण सुविवेक रे....प्रभु सुख दरिआ;
ज्ञानप्रमाण इंहां ओरडा रे,
मणि पेटी नय टेक रे.....प्रभु गुण भरिआ.
ध्यान कुसुम इंहां पाथरी रे,
साची समता सेज रे....प्रभु सुख दरिआ;

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इहां आवी प्रभु बेसीए रे,
कीजे निज गुण हेज रे.....प्रभु गुण भरिआ.
सीमंधर जिन राजियारे,
सुवर्णपुरे शणगार रे...प्रभु गुण भरिआ;
मन मंदिर जो आवश्यो रे,
एक वार धरी प्रेम रे....प्रभु सुख दरिआ;
भगतिभाव देखी भलो रे,
जई शकश्यो तो केम रे...प्रभु सुख भरिआ.
अरज सुणी मन आविआ रे,
सीमंधर जिणंद दयाल रे...प्रभु सुख दरिआ;
ओच्छव रंग वधामणा रे,
प्रगट्यो प्रेम विशाल रे...प्रभु गुण भरिआ. १०
अर्घपाद्य करुणा क्षमा रे,
सत्य वचन तंबोल रे....प्रभु सुख दरिआ;
धरशुं तुम्ह सेवा भणी रे,
अंतरंग रंगरोल रे.....प्रभु गुण भरिआ. ११
हवे भगति रस रीझियो रे,
मत छोडो मन गेहरे....प्रभु सुख दरिआ;
निरवहजो रूडी परे रे,
साहिब ! सुगुण सनेह रे..प्रभु गुण भरिआ. १२

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भ्रमर सहज गुण कुसुमनो रे,
अमर-महित जगनाथ रे....प्रभु सुख दरिआ;
जो तुं मनवासी थयो रे,
तो हुं हुओ सनाथ रे......प्रभु गुण भरिआ. १३
श्री जिनराज प्रभु तणो रे,
अरज करे एम शिष्य रे...प्रभु सुख दरिआ;
रमजो मुज मन मंदिरे रे,
प्रभु ! मागुं हुं निशदिन रे...प्रभु गुण भरिआ. १४
श्री जिनेन्द्रस्तवन
(रागभारतना डंका आलममें........)
प्रभु निर्मायी निष्कामी छो,
दीन दुःखी तणा विशरामी छो;
प्रभु अजरामर पद गामी छो;
तमे जिनपति अंतरजामी छो.....तमे०
तमे ज्ञानानंदना दरिया छो,
अनंत अनंत गुण भरिआ छो;
तमे शिवरमणीना कामी छो, तमे.....१
तमे जीव जीवनना रसिया छो,
सवि कर्म कलंकथी खसिया छो;
तमे जगपति आतम रामी छो, तमे.....२
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तमे बोधिबीजना दायक छो,
प्रभु जैन धर्मना नायक छो;
तमे क्षमा राणीना स्वामी छो, तमे......३
तमे ज्ञानदीपक धरनारा छो,
प्रभु मोह-तिमिर हरनारा छो;
तमे भोग रोगना वामी छो, तमे......४
तमे मुनिपति भविजन भ्राता छो,
वली त्रण जगतना त्राता छो;
तमे आतम तेजना धामी छो, तमे.......५
एवा प्रभु नाथजी मळिया छो,
मुज आंगणे सुरतरु फलिया छो;
पद आतम दाता नामी छो, तमे....६
श्री वीर जिनस्तवन
(रागनागरवेलीयो रोपाव तारा राज महेलोमां)
ज्योति भक्तिनी जगाव,
मारा मनमंदिरे;
व्हाला वीरजी तुं आव,
मारा मनोमंदिरे.....ज्योति०
भव तारक जिनजी प्यारा,
दिव्य ज्ञान दर्शन धारा;

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दिव्य ज्ञान प्रगटाव,
मारा मनोमंदिरे....ज्योति.
त्रिशलानंदन जग सारा,
तुज सम को छे आधारा;
तारा सुगुणो वसाव,
मारा मनोमंदिरे.....ज्योति.
सिद्धारथ कुळे दीवो,
तुहि जग चिरंजीवो;
जड जीवन उडाव,
मारा मनोमंदिरे......ज्योति.
निर्यामक तुहि साचो,
पण उतारूं हुं छुं काचो,
जीवन नाव तराव,
मारा मनोमंदिरे.....ज्योति.
तुंहि शिव सुंदरीनो भोगी,
वळी निज गुण गणनो योगी;
आतम सुख चखाव,
मारा मनोमंदिरे.....ज्योति.

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श्री नेमिनाथ जिनस्तवन
(रागधन्य धन्य देवदेवी नरनार)
नमिये नेमिनाथ महाराज, नमिये नेमिनाथ.....
रागद्वेष मोह रिपु जीतीने, कीधुं आतम काज.
बाल पणे पशुडां उगारी, त्यागी राजुलनार;
जई गिरनारे शिव सुख लेवा, लीधो संजमसार....
नमिये.
शुक्ल ध्याननुं ध्यान धरीने, लीधुं केवलज्ञान;
समवसरणमां देई देशना, कराव्युं आत्मभान.....
नमिये.
अनंत गुणे अरिहंत बिराजे, जयजय मंगलकार;
सुरनर किन्नर प्रभु गुण गावे, ऊतरवा भवपार...
नमिये.
चार गति संसारे भमतां, दीठो देव दयाळ;
अजरामर पद लेवा काजे, भजिये थई उजमाळ...
नमिये.
धनधन ते नरनारी जाणो, ध्यान धरे जिनराज;
भक्तिथी सेवक एम भाखे, ते लहे शाश्वत राज....
नमिये.

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श्री महावीरस्वामीस्तवन
(भारतका डंका आलममेंए राग)
भवपार करी भवि भाव धरी,
भजिये नित्य महावीरस्वामीको;
जस गुण गणका कछु पार नहीं,
देखा नहीं ऐसे नामीको...भव०
त्रिशला सुत महावीर नाम बडा,
जपता जो नहीं भवकूप पडा;
इस प्रभुजीकी मोहे धून लगी,
पामरता मोरी जाय भगी......भव०
सिद्धारथ नंदन फंद हरो,
निज दासको भवजल पार करो;
तुम नाम रटन दिन रात करुं,
निज दिलमें खूब आनंद धरुं......भव०
श्री वीर प्रभु उपसर्ग सही,
मनमें नहीं जिन जरी भेद धरी;
शुद्ध द्वादशांगीका ज्ञान दिया,
द्रव्य गुण पर्याय विकाश किया.....भव०
भंग सात स्याद्वाद सार दिया,
भटके नहीं हृदये स्थाप लिया;

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नवतत्त्व ज्ञान प्रकाश किया,
तस द्वारा समकित दान दिया......भव०
चरणानुयोग तस भाव भरा,
पाया सो शिव वधुकोटी वरा;
लेते शिव आनंद नित्य नरा,
ए स्वरूप सारमें सार खरा.......भव०
तुज सेवक यह आनंद चहे,
मुज आत्म कमल शुभ रेह लहे;
तत्त्व सार दियो मुजको,
ए देतां वार नहीं तुजको....भव०
श्री शांतिनाथ जिनस्तवन
(देशीअबोलडां शाने लीधां छे)
एक वार बोलो शान्तिनाथ,
अबोलडां शाने लीधां छे.
एक वार बोलो सीमंधरनाथ,
अबोलडां शाने लीधां छे.
शान्तिकरण श्री शान्ति जिणंदा,
मनमोहन जगसारा.......अबोलडां०

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जस नामे भय सघळा भागे,
घेर घेर मंगळमाळा.....अबोलडां०
जेहने दिग्कुमारी हुलरावे,
इन्द्रो पण गुण गाय तारा....अबोलडां०
छए खंडना भोग तजीने,
दीक्षा सुंदरी वरनारा.......अबोलडां०
केवल कमला तुमे वरीने,
शिववधु साथे रमनारा.....अबोलडां०
एहने भजतां सुखिया थईए,
दुःखडां नावे लगारा.......अबोलडां०
तुजने भजे तेनो धन जन्मारो,
अमृत पद पामनारा.......अबोलडां०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(अबोलडां शाने लीधां छेराग)
एक वार बोलो सीमंधरनाथ,
अबोलडां शाने लीधां छे.
एक वार दिव्यध्वनि छोडो,
अबोलडां शाने लीधां छे.

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एक वार बोलो विदेहीनाथ,
अबोलडां शाने लीधां छे......अबोलडां०
जिन प्रतिमा जिन सरिखा लागे,
विरहनां दुःख नाशे......अबोलडां०
समवसरण प्रभु रूडुं रचाणुं,
देव देवी हरखाय......अबोलडां०
शुक्ल ध्यान युक्त मुद्रा सोहे छे,
केवळथी भरपूर......अबोलडां०
एक वार प्रभु दिव्यध्वनी छूटे जो,
आनंदनो नहि पार......अबोलडां०
पंचम काळ नहि चोथो छे काळ,
वाणी छूटे तो रसाळ......अबोलडां०
सेवकना दील खूश करोने,
आनंद मंगळ वरताय......अबोलडां०
सद्गुरुदेव मारा विनती करे छे,
वाणी छोडो वीतराग......अबोलडां०
हवे प्रभुजी ढील न करो,
पात्र बेठा छे तुज पास......अबोलडां०

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हवे प्रभुजी शुं वाट जुओ छो,
वाणी छोडो आज काल अबोलडां०
बोलो बोलोने वीतराग अबोलडां० १०
अनंत रहस्य प्रभु वाणीए निकळे,
समाधान सर्वना थाय....अबोलडां० ११
अतिशय वंदन होजो अमारुं,
सीमंधर भगवान....अबोलडां० १२
बोलो बोलोने वीतराग....अबोलडां छोडो प्रभुजी.....
एक वार बोलो सीमंधरनाथ अबोलडां छोडो प्रभुजी० १३
श्री सीमंधर जिनस्तवन
हांरे आज मलिओ मुजने तीन भुवननो नाथ जो,
उदयो सुख-सुरतरु मुज घट घर आंगणे रे जो;
हांरे आज अष्ट महा सिद्धि आवी महारे हाथ जो,
नाठा माठा दहाडा दरिसण प्रभु तणे रे जो.
हांरे म्हारे हियडे उलसी उल्लसित रसनी राशि जो,
नेह सलुणी नजर निहाळी ताहरी रे जो;
हांरे हुं तो जाणुं निशदिन बेसी रहुं तुज पास जो,
तारे नेहे भेदी मीजी माहरी रे जो.
हांरे म्हारी पूगी पूरण रीते मननी होंश जो,
दुरजनिया ते दुःख भरी आवटस्ये पड्या रे जो;

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हांरे प्रभु तुं तो सुरतरु बीजा जाण्या तूस जो,
तुज गुण हीरो मुज हियडा घाटे जड्यो रे जो.
हांरे प्रभु तुजस्युं म्हारे चोळ मजीठो रंग जो,
लाग्यो एहवो ते छे कुण टाळी शके रे जो;
हांरे प्रभु पलटे ते तो काचो रंग पतंग जो,
लाग न लागेरे दुरजननो को मुज थके रे जो.
हांरे प्रभु ताहरी मुद्रा साची मोहन वेलजो,
मोह्या तीन भुवनजन दास थई रह्या रे जो;
हांरे प्रभु जे नवि रंज्या ते सुरतरुने ठेली जो,
दुःख विष वेलि आदर करवा उमह्यारे जो.
हांरे प्रभु ताहरी भक्ति भीनुं माहरुं चित्त जो,
तल जिम तेले तेले जेम सुवासना रे जो;
हांरे प्रभु ताहरी दीठी जगमें मोटी रीत जो,
सुफल फल्यां अरदास वचन मुज दासनां रे जो.
हांरे म्हारे प्रथम प्रभुजी पूरण गुणनो ईस जो,
गातां सीमंधर जिनजी हुं से मनतणी रे जो.
श्री नेमि जिनेश्वरस्तवन
(ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामनेए देशी)
प्रीतलडी बंधाणी रे नेम जिणंदशुं,
प्रभु पाखे क्षण एक मने न सुहाय जो;

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ध्याननी ताली रे लागी नेहशुं,
जलद-घटा जिम +शिवसुतवाहन दाय जो. प्रीत०
नेह घेलुं मन मारुं रे प्रभु अलजे रहे,
तन मन धन ए कारणथी प्रभु मुझ जो;
म्हारे तो आधार रे साहिब रावलो,
अंतरगतनी प्रभु आगळ कहुं गुज्झ जो. प्रीत०
साहेब ते साचो रे जगमां जाणीए,
सेवकनां जे सहेजे सुधारे काज जो;
एहवे रे आचरणे केम करी रहुं,
बिरूद तुमारुं तारण तरण जहाज जो. प्रीत०
तारकता तुज मांहे रे श्रवणे सांभळी,
ते भणी हुं आव्यो छुं दीनदयाळ जो;
तुज करुणानी ल्हेरे रे मुज कारज सरे,
शुं घणुं कहीए जाण आगळ कृपाळ जो. प्रीत०
करुणाधिक कीधी रे सेवक उपरे,
भव-भय-भावठ भांगी भक्ति प्रसंग जो;
मन वंछित फळीयां रे जिन आलंबने,
कर जोडीने भक्त कहे मन रंग जो. प्रीत०
जलद = मेघ; + शिवसुतवाहन = मयूर

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श्री सीमंधर जिनस्तवन
(आवेल आशा भर्याराग)
प्रभुनी वाणी जोर रसाळ, मनडुं सांभळवा तलसे,
सजल जलद जिम गाजतो, जाणुं वरसे अमृतधार; मन०
सांभळतां लागे नहि, खीण भूखने तरस लगार. मन०
तिर्यंच मनुष ने देवता सहु, समजे निज निज वाण;
जोजन खेत्रे विस्तरे, नय उपनय रतननी खाण. मन०
बेसे हरि मृग एकठां, उंदर मांजारनां बाळ; मन०
मोह्या प्रभुनी वाणीये, को न करे एहनी आळ. मन०
सहस वरस जो नीगमे, तोहे तृप्ति न पामे मन्न; मन०
साताये सहु जीवनां, रोमांचित हुवे तन्न. मन०
वाणी सीमंधरजिणंदनी, शिवरमणीनी दातार; मन०
वीतरागी जिणंदजीनो, प्रभु होजो जय जयकार. मन०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
हांरे मुज प्राणाधार तुं सीमंधर जिनराय जो,
मळियो भाग्ये हुं हळियो प्रीत प्रसंगथी रे लो;
हांरे मुज सुंदर लागी माया ताहरी जोर जो,
अलगो रे न रहुं हुं प्रभु तुज संगथी रे लो.

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हांरे मानुं अमीय कचोळां उपशम रस तुज नेन जो,
मनोहर रे प्रसन्न वदन प्रभु ताहरुं रे लो;
हांरे प्रभु कोईनी नहि तीन भुवने तुज सम मूरति जो,
एहवी सुरति देखी उलस्युं मन माहरुं रे लो.
हांरे प्रभु अंतर पडदो खोली कीजे वात जो,
करुण नजरथी तुज सेवकने बोलावीए रे लो;
हांरे प्रभु अमीरस छांटा छांटीने एकवार जो,
सेवकना चित्तमांहि आणंद उपजावीए रे लो.
हांरे प्रभु करुणासागर दीनदयाळ कृपाळ जो,
महेर धरी मुज अंतरमां आवी वसो रे लो;
हांरे प्रभु निज बालक परे मुज लेखवजो जिणंद जो,
चरणनी सेवा देजो सेवक जाणीने रे लो.
हांरे प्रभु समता रस भरपूर दीसे देदार जो,
ज्ञान प्रबळताथी दीसे मुख चंद्रमा रे लो;
हांरे प्रभु जिनप्रतिमा ते जिनवर सरीखा जोय जो,
उपशम जिन मूरति रे मुज दिलमां वसी रे लो.
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(आवेल आशा भर्याराग)
अनुपम सीमंधर श्यामनो रे, पायो में दीदार;
साहिब मनमां वस्यो.

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चंद्र जिस्यो मुख ऊजळो रे, उज्वळ गुण नहि पार;
साहिब०
जगजननां दिल रीझवे रे, तारे आणी हेत; साहिब०
को कहेशे वीतरागने रे, राग तणां ए हेत; साहिब०
ते तो तत्त्वमति नहि रे, फोगट पावे खेद; साहिब०
गिरूआ सहजे गुण करे रे, ते नवी जाणे भेद; साहिब०
ताप हरे जिम चंद्रमा रे, सीत हरे जिम सूर; साहिब०
चिंतामणी दारिद्र हरे रे, आपे वास कपूर; साहिब०
तिम प्रभुनो गुण सहजनो रे, जाणे जे गुण गेह; साहिब०
जिन प्रभु आदि ज्ञानीनो रे, सेवक भावे धरे नेह, साहिब०
श्री शांति जिनस्तवन
(धर्म जिनेश्वर गाउं रंगशुं...)
शांति जिणेसर मुजने तुम्ये मिल्या,
जेहमांहिं सुखकंद वाल्हेसर;
ते कळियुग अम्हे गिरूओ लेखवुं,
नवि बीजा युग वृंद...वाल्हेसर० शांति०
आरो सारो रे मुज पांचमो,
जिहां तुम दरिशण दीठ; वाल्हेसर०
मरुभूमि पण थिति सुरतरु तणी,
मेरु थकी हुई इष्ट, वाल्हेसर० शांति०

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पंचम आरे रे तुम्ह मेलावडे,
रूडो राख्यो रे रंग; वाल्हेसर०
चोथा आरो रे फिरि आव्यो गणुं,
तुज सेवक कहे चंग. वाल्हेसर० शांति०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
हांरे प्रभु सीमंधरस्वामी दीठा श्री जगनाथजो;
लागी रे तुजथी द्रढ धर्मनी प्रीतडी रे लो;
हांरे प्रभु सरस सुकोमळ सुरतरु दीधी बाथजो,
जाण्युं रे में भूखे लीधी सुखडी रे लो.....हांरे०
हांरे प्रभु सकल गुणे करी गिरूओ तुंही ज एकजो,
दीठोरे मन मीठो ईठो राजीओ रे लो;
हांरे प्रभु तुजशुं मिलतां साचो मुजशुं विवेकजो,
हुं तो रे धणीआतो थईने गाजीओ रे लो....हांरे०
हांरे प्रभु नहि छे माहरे हवे केहनी परवाहजो,
जोतांरे साही मुज हेजे बांहडीरे लो;
हांरे प्रभु तुज पासेथी अळगो न रहुं नाथजो,
दोडेरे कुण तावड छांडि छांहडि रे लो.....हांरे०
हांरे प्रभु भाग्ये लहीयें तुज सरीखानो संगजो,
आणेरे जमवारे फिरिफिरि दोहिलोरे लो;
१ कोईनी. २ पकडी. ३ हेते. ४ हाथ. ५ तडको. ६ छांयडो.

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हांरे प्रभु जोतां मनोहर चिंतामणीनो नंगजो,
जोतां रे किम नही जगमां सोहिलोरे लो....हांरे०
हांरे प्रभु उतारो मत चितडाथी निज दासजो,
चिंतारे चूरंतां प्रभु न करो गई रे लो;
हांरे प्रभु प्रेम वधारण सेवक तणी अरदासजो,
गणतांरे पोतानो सवि लेखे थई रे लो....हारे०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(प्रभुजी महेर करीने आज काज हमारा सारोराग)
सीमंधर जिनजी धर्म धुरंधर, पूरव पुण्ये मिलिओ;
मन मरूथलमें सुरतरू फळिओ, आज थकी दिन वळीओ....
प्रभुजी महेर करी महाराज, काज हवे मुज सारो;
साहिब गुणनिधि गरीबनिवाज, भव दव पार उतारो.
बहु गुणवंता जेह तें तार्या, ते नहि पाड तुमारो,
मुज सरीखो पामर जो तारो, तो तुमचि बलिहारो. प्र०
हुं निर्गुण पण ताहरी संगति, गुण लहुं तेह घट मान;
निंबादिक पण चंदन संगे, चंदन सम लहे तान. प्र०
निर्गुण जाणी छेह मा देशो, जोवो आप विचारी,
चंद्र कलंकित पण निज शिरथी, न तजे गंगाधारी. प्र०
१. विलंब

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सत्यवती नंदन सत्यदायक, नायक जिनपदवीनो;
पायक जास सुरासुर किंनर, घायक मोह रिपुनो. प्र०
तारक तुम्ह सम अवर न दीठो, लायक नाथ हमारो;
श्री जिनराज चरणने सेवी, हुवे भव जल तारो. प्र०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(आवेल आशा भर्याराग)
तारक बिरूद सुणी करी, हुं आवी ऊभो दरबार.....
श्री सीमंधर साहिबा.
प्रभु घणी ताण न कीजीए, मुज उतारो भव पार...
श्री सीमंधर
काळादिक दूषण दाखतां, दातारपणुं किम थाय; श्री०
जो विण अवलंबन तारीए, तो जग सघळो जश गाय..
श्री सीमंधर
बाळकने समजाववा प्रभु कहेशो भोळामणी वात; श्री०
पण हठ कीधी मूकीश नहि, विण तारे त्रिभुवन तात...
श्री सीमंधर०
जो मन तारणनुं अछे, तो ढील तणुं शुं काम, श्री०
चातक निरमुख दूखणे, थई मेघ घटा जग श्याम.....
श्री सीमंधर०
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तुज दरशणथी ताहरो, हुं कहेवाणो जग मांहे; श्री०
हवे मुज कुण लोपी शके, बळियानी झाली बांहे...
श्री सीमंधर
पांचशे धनुष तनु शोभतुं, वृषभ लंछन जगदीश; श्री०
हरख धरीने विनवुं, प्रभु तुम चरणनो शीष...
श्री सीमंधर
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(ॠषभजिणंद शुं प्रीतडीराग)
सीमंधर जिन साहिबा,
विनतडी हो मारी अवधार के,
सार करो हवे माहरी,
चित्त चोखे हे करुण हृदये निहाल रे.....सीमंधर०
सहु स्वारथीओ जग अछे,
विण स्वारथ हे दुःखनो कोण जाण के;
तुं विण बीजो को नहीं,
परमारथ हे पदनो अहिठाण के.....सीमंधर०
तुं गाजे शीर गाजते,
आशा परनी हे करवी शुं काम के;
छांयडी बावल को लीए,
सुखदायक हे छांह सुरतरू पामी के.....सीमंधर०