Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दीक्षाकल्याणकस्तवन
वंदो वंदो परम विरागी त्यागी जिनने रे,
थाये जिन दिगंबर मुद्राधारी देव,
श्री सीमंधर प्रभुजी तपोवनमां संचर्या रे.
(वसंततिलका)
दीक्षा ग्रही मनःपर्ययज्ञान साध्युं,
विश्व बधुं सुरपति नादेथी गाज्युं,
एवा प्रभु प्रणमीए प्रणये तमोने,
मेवा प्रभु शिवतणा अर्पो अमोने.
रूडो तप कल्याणिक आजे प्रभुनो दीपतो रे,
मंगल हय गय रथ नर ध्वज ने स्वस्तिक;
शोभित चंद्रप्रभा शिबिकामां रत्न सिंहासने रे वंदो.
प्रचंड वायु अन्य शिखरोने चळावे,
मेरु समो शिखर अचलित जे सदाए;
देवाधिदेव तुज समो जगमां न दीठो,
रत्नत्रयी शिखरथी प्रभु आप शोभो.
जगत प्रकाशक शांति धारी अहो तुज दिव्यतारे,
साध्युं ध्यान ध्येय ने ध्याता एकाकार,
एवा वनविहारी प्रभुजी वीतरागी थया रे. वंदो०

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श्री महावीर जिनस्तवन
(रागभुजंगी)
श्रीमान् महावीर प्रभो मुनीन्दो,
देवाधिदेवेश्वर ज्ञानसिन्धो,
स्वामिन् तुम्हारे पद पद्मका हो,
प्रेमी सदाही यह चित्त मेरा.
तत्त्वार्थश्रद्धान सदैव धारुं,
दो शक्ति हो उत्तम शील मेरा;
सन्मार्गपै मैं चलते न हारुं,
हो ज्ञान चारित्र विशुद्ध मेरा.
स्वामिन् तुम्हारी यह शांत मुद्रा,
किसके लगाती हियमें न मुद्रा;
कहे इसे क्या यह बुद्धि क्षुद्रा,
स्वीकारिये नाथ प्रणाम मेरा.
प्रभो तुम्हीं हो निकटोपकारी,
प्रभो तुम्हीं हो भवदुःखहारी;
प्रभो तुम्हीं हो शुचि पंथचारी,
हो नाथ साष्टांग प्रणाम मेरा.
जो भव्य पूजा करते तुम्हारी,
होती उन्ही की गति उच्च प्यारी;

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प्रसिद्ध है ‘दादुर फूल’ वारी,
सम्पूर्ण है निश्चय नाथ मेरा.
मेरी प्रभो दर्शन शुद्धि होवे,
सद्भावनापूर्ण समृद्धि होवे;
रत्नत्रयीकी शुद्ध सिद्धि होवे,
सद्बुद्धिपै हो अधिकार मेरा.
आया नहीं गौतम विज्ञ जौंलों
खिरी न वाणी तव दिव्य तौलौं;
पीयूष से पात्र भरा सतौलों;
मैं पात्र होउं अभिलाष मेरा.
प्रभो तुम्हें ही दिनरात ध्याऊं,
सदा तुम्हारे गुणगान गाऊं;
प्रभावना खुब विशिष्ट होओ,
कल्याण होवे सब भांति मेरा.
श्री वीरके मारग पै चलें जो,
श्री वीर पूजा मनसे करें जो;
सद्भव्य वीरस्तवन को पढें जो,
वे लब्धियां पा सूखपूर्ण होवे.

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श्री अरहंतस्तुति
(सवैया इकतीसा)
जो अडोल परजंक मुद्राधारी सरवथा,
अथवा सु काउसग्ग मुद्रा थिरपाल है;
खेत सपरस कर्म प्रकृतिकै उदै आयै,
बिना डग भरै अंतरीच्छ जाकी चाल है.
जाकी थिति पूरव करोडो आठ वर्ष घाटि,
अंतरमुहूरत जघन्य जग-जाल है;
सो है देव अठारह दूषन रहित ताकौं,
बनारसि कहै मेरी बंदना त्रिकाल है.
केवळज्ञानस्तुति
(सवैया इकतीसा)
पंच परकार ग्यानावरनकौ नास करि,
प्रगटी प्रसिद्ध जगमांहि जगमगी है;
ज्ञायक प्रभामें नाना ज्ञेयकी अवस्था धरि,
अनेक भई पै एकताके रस पगी है.

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याही भांति रहेगी अनंत काल परजंत,
अनंत सकति फौरि अनंतसौं लगी है;
नरदेह देवलमैं केवल सरूप सुद्ध,
ऐसी ग्यान ज्योतिकी सिखा समाधि जगी है.
त्रिविध अमृतचन्द्रकला
(सवैया इकतीसा)
अच्छर अरथमैं मगन रहै सदा काल,
महासुख दैवा जैसी सेवा कामगविकी;
अमल अबाधित अलख गुन गावना है,
पावना परम सुद्ध भावना है भविकी.
मिथ्यात तिमिर अपहारा वर्धमान धारा,
जैसी उभै जामलौं किरण दीपैं रविकी;
ऐसी है अमृतचन्द्रकला त्रिधारूप धरै,
अनुभौ दसा, गरंथ टीका, बुद्धि कविकी.
गुरुगम ज्ञान विचार
(रागशान्ति जिनेश्वर साचो साहिब)
कर ले गुरुगम ज्ञान विचाराकर ले०
नाम अध्यातम ठवण द्रव्यथी,
भाव अध्यातम न्यारा....कर ले० १

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एक बुंदजळथी ए प्रगट्या;
श्रुतसागर विस्तारा;
धन्य जिनोने उलट उदधिकुं,
एक बुंदमें डारा.....कर ले० २
बीजरुचि धर ममता परिहर,
लही आगम अनुसारा;
परपखथी लख इणविध अप्पा,
अहि कचुंक जिम न्यारा...कर ले० ३
भास परत भ्रम नासहु तासहुं,
मिथ्या जगत पसारा;
चिदानंद चित्त होत अचळ इम,
जिम नभ ध्रुका तारा.....कर ले० ४
श्री जिनेन्द्रस्तवन
(रागगझल)
रसीला धमीर्नां हैडां,
संयममां अहर्निश रमतां;
सलुणां जिननां स्वप्नां,
नजरथी ना जरी खसतां. रसीला० १

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आगम जो होय हैडे तो,
बधीये ॠद्धि पासे छे;
खसे दूर जो हृदयथी ए,
जीवन आ शून्य भासे छे. रसीला० २
असार संसारने मानी,
जे वीतरागने ध्यावे;
सकल दूरित करी हानि,
ए सिद्धिमां सिधावे छे. रसीला० ३
समता रसभरी मुद्रा,
अहो जिन तुल्य भासे छे;
धरीने भावथी वंदे,
जनम निस्तार तेने छे. रसीला० ४
पूर्ण आनंदने ध्येये,
जे जिनराजने गावे;
अमर आत्म सुखनो भोगी,
थई अमृत सुहावे छे. रसीला० ५
श्री शांतिनाथ जिनस्तवन
(वसंततिलकाराग)
हे शांतिनाथ! जगपूज्य प्रभो दयालो;
देवेन्द्र विश्वसुत शुद्ध सुवर्ण देह;
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तेरे मनोरम पदद्वयमें रचो ये,
सद्भाव भक्ति परिपूरित चित्त मेरा.
कैसी मनोज्ञ रमणीय सुशान्त तेरी,
ध्यानस्थ मूर्ति भगवन् यह सोचती है;
संसारतापहरणार्थ मनो स्वयं ही,
श्री शांतिकी सकल आकर ही खडी हो.
तेरे प्रभो वचनकी विमल प्रभा से,
अज्ञानअन्ध-तम है किसका न जाता?
विद्युच्छटा अनुपम स्थिर शक्तिवाली,
जो छा रहे तम कहां फिर है दिखाता?
हे नाथ दर्शन किये तव शान्ति आवे,
आवे न पास दुःख दारिद्र क्लेश जावे,
छावे महा अतुल आतम-रत्न पावे;
धावे सुमार्ग पर ठोकर भी न खावे.
आकाश चुम्बन करे भगवान तेरा,
प्रासाद सुन्दर ध्वजा उडती वहां, सो
‘जो आत्मसिद्धि करके जग जीतते हैं,
उनका प्रभाव यह है’ बतला रही है.
आनन्द-मंगल सदा उस ठौर होवे,
अपवर्ग-सौख्य-गुण अनंत समृद्धि होवे,

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विद्वेषभाव सबका सब दूर होवे,
होवे जहां भजन-पूजन नित्य तेरा.
हे शान्तिनाथ भगवान तुझे नमूं मैं;
देवाधिदेव जगदीश तुझे नमूं मैं;
त्रैलोक्य-शान्तिकर देव तुझे नमूं मैं,
स्वामिन् नमूं, जिन नमूं, भगवन् नमूं मैं.
तूं बुद्ध तूं जिन मुनीन्द्र विभू स्वयंभू,
तूं राम कृष्ण जगदीश दयालु दाता;
संसारका तरण तारण तूं कहाया,
तेरा किये स्मरण हर्ष न कौन पाया.
है ज्ञानदर्पण महोज्ज्वल नाथ तेरा,
आश्चर्यकारक महा जिसमें पडा है
त्रैलोक्यके सकल भाव त्रिकाल के भी,
होवे भविष्यमें उसमें अति उच्च मेरा.
जो शुद्ध बुद्ध कर निर्मल वृत्तियोंको,
श्री शांतिनाथ प्रभुके स्तवको पढेंगे,
होंगे सभी विमल ज्ञानी महासुखी वे,
आत्मजको अतुल शान्तिभरा करेंगे. १०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(रागभारतका डंका.....आलममें)
सीमंधर आतम-आरामी, भाग्ये मळिया जगविशरामी;
अंतर आनंद अति पामी, त्हारुं नाम रटुं पलपल स्वामी.

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अनंतकाळे प्रभु आवी मळ्यो, म्हारा मननो मनोरथ सकळ फळ्यो,
प्रभु शिवरमणीना छो कामी; त्हारुं नाम रटु पलपल स्वामी.
प्रभु महाविदेहनो तुं वासी, त्हारा दर्शने पाप जावे नासी,
अक्षय गुणगण रत्नधामी, त्हारुं नाम रटुं पलपल स्वामी.
एह जिनवरनो महिमा मोटो, जेनो जगमां जडे न कदी जोटो,
जेना ध्याने कोटी शिवगामी, त्हारुं नाम रटुं पलपल स्वामी.
म्हारा मनघरमां प्रभु आवी रहो, पछी खामी शानी
विभु म्हारे कहो,
लहे हर्ष सेवक अंतरजामी, त्हारुं नाम रटुं पलपल स्वामी.
श्री सीमंधर जिनस्तवन
महाविदेहना वासी प्रभुने प्रातः प्रणाम......प्रभुने०
श्रेयांसनंदन रूडो दीठो, लागे अमीरसथी पण मीठो;
अवर अनिठ तमाम.....प्रभुने......१
तुज मुखडानी माया लागी, अंतर आतमनी ज्योत जागी;
समरूं सदा तुज नाम....प्रभुने......२
झळहळ ज्योति दीपे तमारी, भवि तमतिमिरनी हरनारी;
अभिनय भानु स्वाम.....प्रभुने......३

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सीमंधर अलबेला स्वामी, जग परमेश्वर जगहितकामी;
ज्ञान-दर्शन गुणधाम....प्रभुने......४
तुज दर्शन अमृतरस पीधुं, भवोभवनुं अम कारज सीधुं;
अवरशुं मुज न काम.....प्रभुने.......५
श्री जिनेन्द्रस्तवन
जिणंद शासन रुचि गयुं तो,
समकित सुखडी मळी गई;
मुणींद ध्याने दिल थयुं तो,
भवनी भुखडी गळी गई.
केवलनाणी गुणमणी खाणी,
भविप्राणी सुखकारी वाणी;
सांभळी भवभीति टळी गई......ने भवनी०
आतमरामी अंतरजामी,
छबी तमारी भवि हितकामी,
दीनता देखी चळी गई......ने भवनी०
देव दुजा में सघळा जोया,
पण तुजसु मेरा मन मोह्या;
आतम मेधा हळी गई.....ने भवनी०

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श्री सीमंधर जिनस्तवन
भक्ति तो कर रहा हूं, तारो जरूर तारो.
प्रभु जगस्वामी तुम हो, निज तीर्थनाथ तुम हो;
तुम पासे आ रहा हूं, तारो जरूर तारो....१
प्रभु सेव्या नाम तुमरा, सेवक नाम हमरा;
सेवा तो कर रहा हूं, तारो जरूर तारो....२
प्रभु कल्पवृक्ष तुम हो, प्रभु कामधेनु तुम हो;
आशा तो रख रहा हूं, तारो जरूर तारो....३
प्रभु मात तात तुम हो, प्रभु भ्रात त्रात तुम हो;
शरणुं तो ले रहा हूं, तारो जरूर तारो....४
जिणंद तुम हो अच्छा, तुम गुण रत्न स्वच्छा;
जिन गुन गा रहा हूं, तारो जरूर तारो....५
सीमंधर नामे दुःख जावे, अमृत सुख पावे;
हररोज रट रहा हूं, तारो जरूर तारो....६
श्री जिनेन्द्रस्तवन
अनुपम छबि अविकारी नाथकी, अनुपम छबि अविकारी,
पद्मासन द्रढ मुद्रा जिनकी द्रष्टि नासिका धारी.
वीतरागता भाव विराजै, भविजनको हितकारी;
नाथकी०

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वस्त्राभरन बिना तन सोहै, बालकवत अविकारी,
विषय अनंत महाविषनाशन मंत्रसिखावनहारी;
नाथकी०
यदपि ज्ञान बिन दिखित ज्ञानको कारन है अनिवारी,
बचन बिना पुनि जगजीवनको, दे शिक्षा हितकारी;
नाथकी०
आगम अरु अनुमान सिद्ध यों, जिनप्रतिमा भवतारी,
कृतकृत्य जिनेश्वरकी छवि, पूजो शिवमगचारी....
नाथकी०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
दीठी सीमंधर तणी मूरति अलबेलडी, मूरति अलबेलडी
उज्ज्वल भर्यो अवतार रे......मोक्षगामी भवथी उगारजो...
शिवगामी भवथी उगारजो.
पगले पगले प्रभुना गुणो संभारतां, गुणो संभारतां
अंतरना विसरे उचाट रेमोक्षगामी०
आपना दर्शनथी में आतमा जगाडियो आतमा जगाडियो
ज्ञान दीपक प्रगटाव रेमोक्षगामी०

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आतमा अनंत प्रभु आपे उगारिया, आपे उगारिया;
तारो सेवकने भवपार रेमोक्षगामी०
पद
(रागआशावरी)
अबधू क्या मांगु गुण हीना, वे गुन गनि न प्रविना;
अबधू०
गाय न जानुं, बजाय न जानुं, न जानुं सुरभेवा,
रीझ न जानुं, रीझाय न जानुं, न जानुं पद सेवा;
अबधू०
वेद न जानुं, किताब न जानुं, जानुं न लच्छन छंदा,
तरक वाद विवाद न जानुं, न जानुं कवि फंदा;
अबधू०
जाप न जानुं, जुवाब न जानुं, न जानुं कवि बाता,
भाव न जानुं, भगति न जानुं, जानुं सीरा ताता;
अबधू०
ग्यान न जानुं, विग्यान न जानुं, न जानुं भज नामा,
आनंदघन प्रभुके द्वारे, रटन करुं गुणधामा;
अबधू०
१. पाठांतरन जानुं पद नामा.

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श्री महावीरस्तवन
(रागसोरठा)
कंचन वरणो नाह रे, मुने कोई मिलावो....कं०
अंजन रेख न आंख न भावे, मंजन शिर पडो दाह रे;
मुने कोई०
कौन सेन जाने पर मनकी, वेदन विरह अथाह रे, मुने०
थर थर ध्रूजे देहडी मारी, जिम वानर भरमाह रे,
मुनि०
देह न गेह न नेह न रेह न, भावे न दूहा गाहा रे, मुने०
आनंदघन वालो बांहडी झाले, निश दिन धरुं उमाहा रे;
मुने०
श्री वीरस्तवन
जय जय वीर जिनंदा तुमको लाखों प्रणाम,
तुमको क्रोडो प्रणाम.
जय जय त्रिशलानन्दा तुमको लाखों प्रणाम....तुमको०
छबि परम दिगम्बर प्यारी, मनमोहनी मूरत ए न्यारी;
तुम देखे होय आनंदा, तुमको लाखों प्रणाम.....तुमको०
तुम वीतराग प्रभु हितकारी, प्रभुजी लोकालोक निहारी,
जय केवल ज्योति अमंदा, तुमको लाखों प्रणाम....तुमको०

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मिथ्यात महा तमहारी, जिनबचन किरण विस्तारी,
तुम तीन भुवन के चंदा, तुमको लाखों प्रणाम....तुमको०
तुम पतित उधारन हारे, गुण गाते हैं सुरनर सारे,
सब पातक पाप निकंदा, तुमको लाखों प्रणाम....तुमको०
‘‘शिवराम’’ शरण में आया, प्रभु चरणन शीश नवाया,
अब काट कर्म का फंदा, तुमको लाखों प्रणाम.....तुमको०
❖❖❖
श्री जिनवाणीस्तुति
हे जिनवाणी माता तुमको लाखों प्रणाम,
तुमको क्रोडो प्रणाम;
शिवसुखदानी माता तुमको लाखों प्रणाम...तुमको०
तू वस्तु स्वरूप बतावे, अरु सकल विरोध मिटावे,
स्याद्वाद विख्याता तुमको लाखों प्रणाम....तुमको०
तू करे ज्ञाताका मण्डन, मिथ्यात कुमारग खण्डन,
हे तीन जगतकी त्राता, तुमको लाखों प्रणाम...तुमको०
तू लोकालोक प्रकाशे, चर अचर पदार्थ विकाशे,
हे विश्व तत्त्वकी ज्ञाता तुमको, लाखों प्रणाम.....तुमको०
तू स्वपर स्वरूप सुझावे, सिद्धान्तका मर्म समझावे,
तू मेटे सर्व असाता, तुमको लाखों प्रणाम....तुमको०

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हे माता कृपा अब कीजे, अब परभाव सकल हर लीजे,
‘‘शिवराम’’ सदा गुण गाता, तुमको लाखों प्रणाम...तुमको०
श्री जिनेन्द्रस्तवन
(धर्मध्वज फरके छे मोरे मंदिरियेराग)
मुझे तुम विण नहि स्वामी चेन पडे,
मुझे तुम विण नहि बीजे क्यांय गमे.
(शेर)
तुमही हो जिनराज तारक तुमही हो कृपाळजी,
तीन भुवन के नाथ स्वामी अनोपम तुम देदार है;
मोहे तारो तातजी भक्ति वडे,
मेरा भाग्य हे प्रभुजी बहुत बडे. मुझे०
सुर असुर नरनाथ केरे स्वामी सेवा तुज करे,
प्रभाव तेरा अजब स्वामी भाव रोग सहु टळे;
मुझने निरंतर प्रभुजी शरणे राखो,
मुजने केवळरत्न प्रभुजी आपो. मुझे०
सुरतरु चिंतामणि प्रभु कामधेनु तुं मल्यो,
अतुल भाग्ये पाद पामी मुज मनोरथ सब फल्यो;

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मुझे मोह रोग प्रभु जलदी टळे,
चाहुं आतम राज प्रभु तुज वडे. मुझे०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
सीमंधर जिणंदा.....सीमंधर जिणंदा,
तुम दरिशण हुये परमाणंदा;
अहनिशि ध्याउं तुम दीदारा....
महिर करीने करज्यो प्यारा....सीमंधर०
आपणने केडे जे वळगा,
किम सरे तेहने करतां अळगा,
अळगा कीधा पण रहे वळगा,
मोर पींछ परे न हुए ऊभगा...सीमंधर०
तुम्ह पण अळगे थये किम सरशे,
भगती भली आकरषी लेशे;
गगने ऊडे दूरे पडाई,
दोरी बळे हाथे रहे आई......सीमंधर०
मुज मनडुं छे चपळ स्वभावे,
तोहे अंतर्मुहूर्त प्रस्तावे;
तुं तो समय समय बदलाये,
इम किम बेहु तणो मेळ थाये.....सीमंधर०
ऊभगा = जुदा

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ते माटे तुं साहिब माहरो,
हुं छुं सेवक भवोभव ताहरो,
एह संबंधमां में हशो खामी,
सेवक भावना भावे शिरनामी.....सीमंधर०
तीर्थराज श्री सम्मेदशिखरमाहात्म्य
जय बोलो जय बोलो सम्मेदशिखर की जय बोलो.....
ऊंचा नीचा पर्वत सोहे, शीतलनाला मन को मोहे;
अजब निराली शान, शिखर की जय बोलो०.....१
अनंत जिनेश्वर मुक्ति गये हैं, मुनि अनन्ते सिद्ध भये हैं,
तीरथराज महान, शिखर की जय बोलो०.........२
चौबीस टोंक बनी हैं गिर पर, पार्श्वनाथ की सबसे उपर;
भक्त मानते आन, शिखर की जय बोलो०.....३
प्रभु महिमा परखो जो कोई, ताको चउगति भ्रमण न होई;
अंत मिले ‘शिव’ थान, शिखर की जय बोलो०.....
शाश्वत तीरथधाम शिखर की जय बोलो०......४
श्री नेमिनाथ जिनस्तवन
(चालसांवरिया पारसनाथ शिखर पर भले विराजेजी)
सांवरिया नेमिनाथ तुम तो भले विराजोजी.....

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सोरठ देश सुहावना जी जुनागढ मनहार,
ऊंचा नीचा पर्वत सोहे तीर्थ गढ गिरनार....सांव०
सौरीपुर से ब्याहन आये स्वामी नेमकुमार,
तोरन से रथ फेर सुधारा सुन पशुवन ललकार....सांव०
धर वैराग्य परिग्रह त्यागे जाना जगत असार,
मोड तोड कर दीक्षा धारी जाय चढे गिरनार......सांव०
ध्यानारूढ भये नेमीश्वर करी तपस्या सार,
अष्ट कर्म सब नष्ट किये प्रभु जाय वरी शिवनार..सांव०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
सीमंधर जिन राजिआ रे,
पुंडरगिरि शणगार रे...प्रभु सुख दरिआ;
वालेसर! सुणो विनती रे,
तुं मुज प्राण आधार रे...प्रभु गुण भरिआ.
तुज विण हुं न रही शकुं रे,
जिम बालक विण मात रे..प्रभु सुख दरिआ;
गाई दिन अतिवाहीए रे,
ताहरा गुण अवदात रे....प्रभु गुण भरिआ.
हवे मुज मंदिर आवीये रे,
में करो देव! विलंब रे....प्रभु सुख दरिआ;