Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नाम ध्यातां जो पाईए रे, कांई प्रेम विना नवि तान रे; प्र०
मोह विकार जिहां तिहां रे, कांई किम तरीए गुणधाम रे. प्र०
मोह बंध ज बांधीओ रे, कांई बंध जहां नहीं सोय रे; प्र०
कर्म बंध न कीजीए रे, कांई कर्मबंधन गये जोय रे. प्र०
तेहमां शी पाड चडावीए रे, कांई तुमेश्री महाराज रे; प्र०
विण करणी जो तारशो रे, कांई साचा श्री जिनराज रे. प्र०
प्रेम मगन नीभावता रे, कांई भाव तिहां भवनाश रे; प्र०
भाव तिहां भगवंत छे रे, कांई उपदिशे आतम सार रे. प्र०
पूरण घटाभ्यंतर भर्यो रे, कांई अनुभव अनुहार रे; प्र०
आतम ध्याने ओळखी रे, कांई तरशुं भवनो पार रे. प्र०
वर्धमान मुज विनति रे, कांई मानजो निशदिश रे; प्र०
सेवक कहे मनमंदिरे रे, कांई वसियो तु विश्वावीश रे. प्र०
श्री कुंदकुंदप्रभुनुं स्तवन
मने को’ने कुंदकुंद प्रभु केवा हशे?
क्यां रहेता हशे? शुं करता हशे? मने०
सीमंधर देवना दर्शन करीने
संदेशो लावनार केवा हशे? मने०
सार-समय केरी बंसरी बजावी
हैया डोलावनार केवा हशे? मने०

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दर्शन महत्ता ने चेतननी शुद्धता
विश्वे गजावनार केवा हशे? मने०
निश्चय निहाळनार शासन शोभावनार
सुधाना सींचनार केवा हशे? मने०
प्रभुस्तवन
हुं तो हालुं चालुं ने प्रभु सांभरे रे......
मारुं हालवुं ते अटकी जाय के प्रभु मने सांभरे रे.
हुं तो भोजन करुं ने प्रभु सांभरे रे.....
मारा भोजनीया अटकी जाय के प्रभु मने सांभरे रे.
हुं तो नींदर करुं ने प्रभु सांभरे रे....
मारी नींदरडी ऊडी ऊडी जाय के प्रभु मने सांभरे रे.
सर्व शुभाशुभे प्रभु सांभरे रे......
मारा शुभाशुभ छूटी जाय के प्रभु सांभरे रे.
प्रभुस्तुति
हे भगवान आप छो, अनंत गुणामृत कंद;
अंतर बाहिर लक्ष्मीथी सुशोभित जग वंद्य.
परमानंद स्वरूपनुं दान करतार जगनाथ;
स्वयंभू विभू आप छो, आत्मभू आत्म प्रकाश.

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विश्वात्मा विश्वतचक्षु, अपुर्नभव नाथ;
अक्षय स्वरूप अखंड छो, ज्ञानेश्वर भगवान.
धर्मचक्री विजयी, प्रशांतकारी नाथ;
केवळ ज्योति जळहळे, चैतन्य देदीप्यमान.
पुरुषार्थ सिद्धार्थ छो, ध्येय स्वरूप जगनाथ;
अनंत प्रभुत्व प्रगट थयुं, प्रभुष्ण महाराज.
दिव्य भाषित नाथ छो, पवित्र शासन देव;
श्रीपति अर्हंत छो, महाज्ञानी भगवान.
तीर्थकृत भगवान छो, अमल अकलंक देव;
धर्मपति धर्मात्मा, पूर्णानंदी स्वरूप.
विश्व विद्यामहेश्वरी, सद्गुणोथी पूर्ण;
वृद्ध, स्थीवर, ज्येष्ठ छो, अग्रेसर अर्हंत.
निर्द्वंद निराहार छो, कृतकृत्य स्वरूप;
धीर वीर गंभीर छो, अचिंत्य वैभवरूप.
श्री कुंदकुंददेवने विनति
एवा कुंदप्रभु अम मंदिरिये,
एवा आतम आवो अम मंदिरिये;
20

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जेणे तपोवन तीर्थमां ज्ञान लाध्युं,
जेणे वन जंगलमां शास्त्र रच्युं;
ॐकार ध्वनिनुं सत्त्व साध्युं.एवा०
जेणे आत्मवैभवथी तत्त्व सींच्यां,
वळी संयम गुच्छमां गुंजी रह्या;
जेणे जीवनमां जिनवर चिंतव्या.एवा०
महा मंगळ प्रतिष्ठा महा ग्रंथनी,
वळी अगम निगमना भावो भरी;
दीसे सार समयनी रचना रूडी.एवा०
श्री सीमंधर देवना दर्शन करी,
सत्य संदेशा लावनार चिंतामणि;
प्रभु श्रुतधारी कळिकाळ केवळी.एवा०
हे गुणनिधि गुणागारी प्रभु,
तारी आदर्शता न्यारी न्यारी प्रभु;
हुं पामर ए शुं कथी शकुं.एवा०
प्रभु कुंदकुंददेव सुवास तारी,
प्रसरावी मुमुक्षु हृदय मांही;
का’नदेवे मीठा मेह वरसावी.एवा०

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श्री भगवान कुंदकुंदने अंजलि
सुखशान्तिप्रदाता, जगना त्राता, कुंदकुंद महाराज;
जनभ्रांतिविधाता, तत्त्वोना ज्ञाता, नमन करुं छु आज.
जडतानो आ धरणी उपर, हतो प्रबळ अधिकार;
कर्यो उपकार अपार प्रभु ! तें, रचीने ग्रंथ उदार रेसुख०
वरसावी निज वचन-सुधारस, कर्यो सुशीतल लोक;
समयसारनुं पान करीने, गयो मानसिक शोक रेसुख०
तारा ग्रंथोनुं मनन करीने पामुं अलौकिक भान;
क्षणे क्षणे हुं ज्ञायक समरुं, पामुं केवळज्ञान रेसुख०
तारुं हृदय प्रभु! ज्ञान-समतानुं, रह्युं निरंतर धाम;
उपकारोनी विमल यादीमां, लाखो वार प्रणाम रेसुख०
श्री जिनस्तवन
सुवर्णपुरी जिनालये सोहे विदेहीनाथ (२) हांहां रे.
अमृत सरोवर ऊछळ्या तीर्थधामे अपार (२) हांहां रे.
सत्यस्वभावी मीठा वायरा वाया अम घेर आज (२)
सीमंधरनाथनी दिव्यध्वनिना लाव्या कुंद निधान (२)
वैशाख अष्टमी दिन रूडो महामंगलकार (२)
महा पवित्र समयसारना कर्या का’ने प्रकाश (२)

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चौद पूर्वना सार भर्या समयप्राभृत मोझार (२)
मोती तणा अक्षत बनावी करुं श्रुतपूजन (२)
जंबूना भरतक्षेत्रनां सुवर्णपुरी अजोड (२)
अनुपम देव-गुरु-शास्त्रनी मळे जगमां न जोड (२)
वीतराग शासन सूर गाजता गुरु कहान प्रताप (२)
भक्तदेवोना वृंद ऊतरे मारा जिनालय द्वार (२)
कंद शास्त्रनी वही ल्हेरीओ रूडा कहान हृदय (२)
अपूर्व ज्ञानामृत तणा गुरु करावे पान (२)
श्री देव-गुरु-शास्त्रनुं करुं नित पूजन (२)
श्री देव-गुरु चरणनी हो सेव अहर्नीश (२)
श्री जिनवाणीस्तवन
(भेटे झूले छे तलवार)
जिनवाणी अमृत रसाळ, रसिया आवोने सुणवा,
जिनवाणीनी श्रुतसागरनी छोळो,
ऊछळे सुवर्ण मोझार-रसिया०
तीर्थंकरनी वाणीना वायरा,
वाया छे पंचम काळ.रसिया०
निश्चय व्यवहारनी अपूर्व घटना,
वीतराग वाणीए सोहाय.रसिया०
समय प्राभृते सोहायरसिया०

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परमागममां अचिंत्य रचना;
स्याद्वाद केरी सोहाय.रसिया०
षट् द्रव्योनी स्वतंत्रताने,
दर्शावे कुंदकुंददेव.रसिया०
अद्भुत गंभीरता भरी जिनसूत्रे,
माता तारी महिमा अगाध.रसिया०
श्री गुरु कहानना परम प्रतापे,
भेट्या परमागम महान.रसिया०
भरतना अहो भाग्य खील्यां छे,
पाक्या गुरु रत्न कहान.रसिया०
परमागमनी अचिंत्य रचना,
का’न वाणीमां सोहाय.रसिया०
सद्गुरुदेवनी वाणी अणमूल छे,
अणमूल भर्या भंडार.रसिया० १०
निरपेक्ष तत्त्व समजावे गुरुजी,
समजावे निश्चय-व्यवहार.रसिया० ११
श्रुतसागरनी अनुपम लहेरीओ,
ऊछळे सुवर्ण मोझार.रसिया० १२

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श्री कुंदकुंदाचार्यस्तवन
स्वामी शासनना शिरताज अमारे आंगणे आवो;
गरवा गुणीजन गरीबनिवाज, अमारे आंगणे आवो.
तारा शा करीए सन्मान, अमारे आंगणे आवो,
मीठी ज्ञाननी फोरमफोरे, जनमां वनमां चारे कोरे;
धरीने दिलमां दीननी दाझ.....अमारे०
जूठा इंद्रिय मोह वछूटे, भवनां माया बंधन तूटे;
आतमरस पिवडावा काज......अमारे०
प्रभु तुम शुद्धामृत-दातारा, निज स्वरूपमांही रमनारा;
वनवासे कीधां आतम-ध्यान......अमारे०
साक्षात् श्री जिनवरने भेट्या, त्यांथी सत्य संदेशा लाव्या;
भरते वर्त्यो जयजयकार........अमारे०
नग्न दिगंबर मुद्राधारी, छठ्ठे सातमे झूले विरागी;
लीधा आत्मानंद अपार.......अमारे०
प्रभु तुमे रत्नत्रयने साध्या, मुक्तिना साचा पंथ बताव्या;
प्रकाश्या श्रुतसमुद्र अगाध......अमारे०
देव देवेंद्रो गगने आवे, मंगल महोत्सव ऊजवे आजे;
कुंदप्रभु स्वर्गमांथी आज........अमारे०
तुज सुपुत्र का’न जाग्या, जेणे आखा हिंद हलाव्या;
प्रगटी आतमशक्ति अतुल..........अमारे०

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जेणे सूता जीवो जगाड्या, तुज सुशास्त्रोने ऊकेल्या;
प्रकाशी श्रुतनी छोळमछोळ........अमारे०
अम भक्ततणां भाग्य खील्यां, कल्पवृक्ष आंगणे फळियां;
पंचमे वरस्या अमृत मेह........अमारे०
निशदिन करीए तारी सेव......अमारे० १०
श्री जिनस्तवन
प्रभुजी तमारी साथे, सद्धयान आज जाम्युं,
जिनजी तमारी साथे सद्धयान आज जाम्युं,
ऊग्यो रवि अनेरो; सद्भाग्यनो हुं जाणुं......प्रभुजी०
द्रष्टि कहे नीरागी तुं देव निराळो,
आ दीनदुःखियाने दीनानाथ निहाळो,
तन मन तुं हि छे जीवन, आधार एक मानुं......प्रभुजी०
दिलवर! दयाळु देवा! कर्मोथी उगारो,
भक्त कहो ओ जिनजी! सेवकने सुधारो;
शरणुं तमारुं साचुं, भवसिंधु झाज मानुं......प्रभुजी०
श्री जिनस्तवन
(में तो आरती उतारुंराग)
में तो मूरति जुहारुं जिनराजकी रे,
जिनराजकी रे जगताजकी रे......में तो०

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भक्तिके पियूष घोल, लगाके रंग चोल,
मिथ्या पडल खोल खोल (२)
में तो सूरति निहारूं वीतरागकी रे......में तो०
क्षमाके कटार धार, कर्मोंके कटक संहार,
शिव लहुं सार सार (२)
में तो वाणी सुणी गुरुदेवकी रे.....में तो०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(पूछे मने तो हुं कहुं दिलदार हो तो आवी होए राग)
मूर्ति तारी निर्विकारी, हितकार हो तो आवी हो.....
देखी नैनानंदकारी, मनहर हो तो आवी हो.....मूर्ति०
मद मोह माया वारती, वीतरागता अपनावती;
शम-सुधा पीवडावती, अभीधार हो तो आवी हो....मूर्ति०
शिवपंथने उजियालती, आनंद चंदनी खीलती,
कल्याण रसने झीलती, रसदार हो तो आवी हो....मूर्ति०
तीर्थंकर पदवी विश्वमहीं सीमंधर जिननी छे सही;
उपमा बधी जीती रही, जयकार हो तो आवी हो.....मूर्ति०
ज्ञानी गुरुदेवे ए स्तवी, शिवशर्मनी ए अनुभवी;
सेवे सदैव सवी भवी, शिवकार हो तो आवी हो......मूर्ति०

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श्री सीमंधर जिनस्तवन
(नागरवेलिओ रोपाव, तारा राज महेलोमांए राग)
सीमंधरदेवने वसाव, तारा चित्तमंदिरमां,
देवाधिदेवने वसाव, तारा चित्तमंदिरमां;
विदेहीनाथने वसाव, तारा चित्तमंदिरमां.
भक्तिसुधारस झीली, आतमध्यानथी खीली;
श्रद्धाज्योतिओ जगाव, तारा चित्त-मंदिरमां. सी०
पुंडरगिरि नगरी जाया, जेनी कंचन वरणी काया;
सत्यवतीनंदने वसाव, तारा चित्त-मंदिरमां. सी०
दिलवर दिल वसाई, हटाई कषाय कसाई;
संयम-तोरण बंधाव तारा चित्त-मंदिरमां. सी०
अनंत गुणाकर सेवा, कर शिव-मेवा लेवा;
मंगळ घंटडी बजाव, तारा चित्त मंदिरमां. सी०
सीमंधर जिनवर राया, प्रणमे सद्गुरु तुज पाया;
भक्त-जीवन उद्धार, तारा चित्त-मंदिरमां. सी०
श्री जिनवाणीस्तवन
(जेवी करे छे करणी, तेवी तरत फळे छेए राग)
जिणंद चंद वाणी, अनुपम अमी समी छे;
गुणरत्न केरी खाणी, बुध-मानसे रमी छे. जिणंद०

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मीठाश जेनी जाणी, गर्वो बधा गळे छे;
जस पान काने करतां, भव-व्याधिओ टळे छे. जिणंद०
पशुओ जे चावे तरणां, साकर शरण धरे छे;
शरमाई मीठी द्राक्षो, वनवासने करे छे. जिणंद०
पीलुमां पिलाई इक्षु, अभिमानने तजे छे;
अभिनंदनीय ते छे, अभिवंदनीय जे छे. जिणंद०
कृपाळु गुरु-चरणे, शरणे रही भणे छे;
जिनवाणी नाव संगे, भवतीर दास ले छे. जिणंद०
श्री पद्मप्रभ जिनस्तवन
(बाबा, मनकी आंखे खोलए राग)
प्यारा ज्ञान खजाना खोल, ज्ञान खजाना खोल. प्यारा० (टेक)
अखूट खजाना तेरा खासा, अनंत गुणोंका है वासा;
जगमें दाता, जगमें त्राता, तीन रतन सेवकको दे के,
करना ॠद्धि कल्लोल. प्यारा.
अनंत केवल दर्शनधारी, गुण-रयण-रयणाकार भारी;
तुज महिमा हे अपरंपारी, करुणासागर करुणा लाकर,
हरदे दुःख-दंदोल. प्यारा०

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पंकज ज्युं जल-पंकसे न्यारा, वैसे तुं है भोग-कर्मसे न्यारा;
पद्मप्रभु मेरे प्राणसे प्यारा, मुज मन-पद्मदलों विकसाकर,
ज्ञान-सुधारस ढोल. प्यारा०
बुध मानसमें निशदिन सोहे, तुज गुणपद्मो जगजन मोहे;
मुज मन मधुकर लीनो नेहे, अनुपम प्रेम मकरंद बहाकर,
रंग लगाओ चोल. प्यारा०
श्री जीनवरजी ज्ञानप्रदीपक, तीन भुवन है तुज पद सेवक;
दास सदा कर जोड कहत है, मोह महा मातंग
भगाकर,
मुक्ति दे अनमोल. प्यारा०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(गझल)
जगतमां देव साचो तुं, तुंहि जगताज मोटो छे;
तुंहि जिनराज तूठे त्यां, जीवन आदर्श मोटो छे. जग० (टेक)
मोटानो आशरो मोटो, खजाने को नहि तोटो;
अनेरो आशरो खोटो, तुंहि भवझाज मोटो छे. जग०
१ देव अथवा पंडित पुरुषोना मानसमांमनसरोवरमां.
२ भमरो. ३ प्रेमरूपी सुगंधी फूलनो मधुर रस. ४ प्रेम. ५ घणी
लालीवाळो पाको रंग, जे अन्तसमय सुधी पण तेवो ज रहे छे (आवा
चोळमजीठनो रंग कहेवाय छे). ६ हाथी अथवा चंडाळ.

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तुंहि त्राता तुंहि भ्राता, तुंहि शिवशर्मनो दाता;
तुंहि तीन काळनो ज्ञाता, तुंहि शिरताज मोटो छे. जग०
चखाडी गुणनां भातां, भविक मन आपता शाता;
खपावो कर्मनां खातां, तुंहि जगतात मोटो छे. जग०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(पुजारी मोरे मंदिरमें आवोए राग)
भवी.......या.....! सीमंधर जिनको ध्यावो,
भवी...या...! सीमंधर जिनको ध्यावो;
प्रेमे भक्ति-सुधा-गंगामें, जीवन नाव चलावोभवीया०
मधुकर ज्युं प्रीति मालती, त्युं प्रभु प्रीति जगावो......;
जिनसे पावो शमसुखको तुम, सीमंधर-रंग लगावो. भ०
भववन-कष्ट भयो ज्युं नाशे, रंगे ये जिन गावो.......;
ध्यान धरी नीरखीर परे तुम, आतमज्योति मिलावो. भ०
भक्त-कुमुदकुं चंद्रवदन है, आनंद मंगल पावो;
अध्यातम ध्यान सुधारस-धारा, अपने घटमें बहावो. भ०
श्री जिनवरजी तुज सेवकका, नम्र कथन दिल लावो;
सीमंधर-सुधाकर चरण-सुधासे, अजरामर पद पावो. भ०
मुक्तिसुखने आपनार.
१. भमरो. २ मोगरानी जात फूलनुं. ३ मोक्षपद.

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श्री श्रेयांसनाथजिनस्तवन
(झट जाओ, चंदनहार लावोए राग)
नित आपो, श्रेयांसनाथ आपो, श्रेयअंश आपोने;
रंग लाग्यो श्रेयस्कर तारो, सेवक कष्ट का.....पोने. (अंचली)
(साखी)
सुर असुर नर नायको, सेवक तारे अनेक;
श्रेय-पदवी-दायक विभो!. अमारे आधार तुं एक रे-
सेवक कष्ट का.....पोने. नित०
(साखी)
श्रेय-विधायक शाश्वतो, तुम गुणरत्नभंडार;
गुण एक आपी प्रेमथी, रंक जीवन उद्धार रे
सेवक कष्ट का.....पोने. नित०
(साखी)
(प्रभु) भक्ति अधिकी मुक्तिथी, ए अम रंग अभंग;
चमक खेंचे जिम लोहने, तिम भक्ति मुक्तिनो प्रसंग रे
सेवक कष्ट का.......पोने. नित०
(साखी)
तरणतारण जगताज तुं, भवजलधिमां जहाज,
काज अमारां सारीने, शिवपुरीनुं देजो राज रे
सेवक कष्ट का....पोने. नित०

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(साखी)
प्रणमी अनंत जिनेश्वरा, वळी श्री सद्गुरुपाय;
दास शिशु एम विनवे, श्री श्रेयांसनाथ जिणंद रे-
सेवक कष्ट का.....पोने. नित०
श्री वर्द्धमानजिनस्तवन
(मथुरामां खेल खेली आव्या, हो का......न! ए राग)
त्रिशला देवीना जाया, हो देव! वर्द्धमान पाया
सुरेन्द्रपूज्य जे पूज्य जगतना, शिरताज आज पाया.
हो देव! वर्द्धमान पाया०
कामितपूरण पूरणपुण्ये, कामकुंभ कामधेनुं पाया,
हो देव! वर्द्धमान पाया०
भावठ भवनी आज मारी भांगी, चिंतामणि चित्त ठाया,
हो देव! वर्द्धमान पाया०
मनोमंदिरमां सुरतरु फळियो, आंगणे अमी वरसाया,
हो देव! वर्द्धमान पाया०
मानवभव में पावन कीनो, भक्ति-दीपक प्रकटाया,
हो देव! वर्द्धमान पाया०
वासरमणि सम वर्द्धमान पूजी, मनपंकज विकसाया,
हो देव! वर्द्धमान पाया०
१. सूर्य.

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नरेंद्रपूजित प्रेमे वधावी, कल्याण मंगल लाया,
हो देव! वर्द्धमान पाया०
श्री जिनराज प्रभु पाय नमीने, जिणंद-गुण-गण गाया,
हो देव! वर्द्धमान पाया०
श्री विमळनाथ जिनस्तवन
(बुल बुल अमारूं ऊडी गयुं त्यांए राग)
विमळदर्शन मळी गयुं त्यां, विमळ दर्शन हळी गयुं;
विमळ अमारूं मन थयुं त्यां विमळ भवनुं टळी गयुं.
विमळजिनना विमळ रागे, विमळ मतिनी ज्योति जागे;
कुमति तम अम बळी गयुं.विमळ०
विमळजिन निज गुण कटारे, कर्म कटक विकराळ विदारे;
जन्म-मरण-दुःख टळी गयुं.विमळ०
सजळ जळधर जळनी धारा भाविक कळाकर आनंदकारा;
विमळ जीवन मळी गयुं.विमळ०
विमळ सोवन वान गाने, विमळ ताने विमळ ध्याने;
अचळ विमळ पद मळी गयुं.विमळ०
१ निर्मळ श्रद्धा=सम्यक्त्व. २ प्राप्त थयुं. ३ आवर्त=संसार
समुद्रनी भमरीमां भमवुं ते. ४ बे बाजु धार अने छेडे अणीवाळुं
हथियार. ५ सेना. ६ जळ सहित=जळथी परिपूर्ण. ७. मेघ. ८. मोर.

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अकळ कळाधर जिनजी जोजो, अमी नजरथी अमर करजो;
चित्तचकोर ज्यां हळी गयुंविमळ०
तीर्थेश्वरना विमळ शरणे, विमळजिनना विमळ चरणे;
तुज सेवक शिर लळी गयुं.विमळ०
श्री नेमिजिनस्तवन
(रखीया बंधावो भैया, श्रावण आया रेए राग)
भविया भवाब्धि नैया, तारक...पा....या रे,
तारक पा.....या रे, तारक पा.....या.......रे. भविया० (टेक)
शिवादेवीना जाया, नेमि जिणंद राया;
समुद्रकुल सुहैया......तारक पा.......या.....रे. भविया०
पशुओने उगारी, तजी राजुल नारी;
गिरनारे जई रहीया...तारक पा.....या....रे. भविया०
जिहां संजम लीया, केवल मोक्ष पाया;
त्रैण कल्याणक गैया....तारक पा.....या.....रे. भविया०
शंख लंछन धारी, बाळथी ब्रह्मचारी;
पूजी सुधारो जैया.....तारक पा......या......रे. भविया०
श्री तीर्थंकरपद धामी, पुण्य उदये पामी;
सेवक सुकानी सैया..तारक पा.....या....रे. भविया०
१ चंद्र तथा कळी न शकाय तेवी कळाओने धारण करनार.
२ नाविक ३. स्वामी

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श्री शांति जिनस्तवन
(रागतुम्हीने मुझको प्रेम सिखाया, रागभीमपलास)
शांतिदायक शांति जिनराया, तुज दर्शन में निर्मळ पाया;
तोरे गुण गण गंगमें न्हाया, हर्ष भराया, जन्म सुहाया;
आनंद आज अपार, जिनजी! आनंद आज अपार
शांतिदायक०
दुःखदोहगने दूर भगाया, नीरखी हरखी त्रिभुवनराया;
आनंद आज अपार, जिनजी! आनंद० शांतिदायक०
शांतिनिकेतन शांतिजी पाया, शांतिसुधारस पान कराया;
आनंद आज अपार, जिनजी! आनंद० शांतिदायक०
पतितपावन सोवनकाया, सुरपति सेवित है तुज पाया;
आनंद आज अपार, जिनजी ! आनंद० शांतिदायक० ४
विश्वसेननृप अचिरा जाया, तुज चरणरज सेवके गाया;
श्रीसद्गुरु जयकार, जिनजी! श्रीसद्गुरु० शांतिदायक०
श्री जिनस्तवन
(रागचले पवनकी चाल जगमें)
मिले जगतके नाथ, अब तो मिले जगतके नाथ;
तुं हि शरण है हम लोगोंका, तुं हि आतम तन आथ.
अब तो मिले०
१. धन.
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जिनवर तोरे चरण-कमलमें, झूके सुरके नाथ;
भक्ति तोरी भवकी तरणी, भाव रोगोंका कवाथ,
अब तो मिले०
तुज दर्शनसे मनखा पावन, हुआ आज सनाथ;
दुःखके कांटे पिस पिस भांगे, देखत तेरा काथ.
अब तो मिले०
सुरतरुसा देवाधिदेवा, कभी न छोडुं साथ;
दास सुकानी! भवजलधिसे, तार ले कर हाथ.
अब तो मिले०
श्री सीमंधरनाथ जिनस्तवन
(रागमैं अरज करूं शिर नामी, प्रभु कर जोड जोड जोड)
मैं वंदुं सीमंधरस्वामी, शिर कर जोड जोड जोड,
मैं नमन करुं जगस्वामी, पूर मन कोड कोड कोड.
नयरी पुंडरगिरि स्वामी, श्री श्रेयांसकुल शशि नामि;
सत्यवतीसुत अंतरयामी, अंतर खोल खोल खोल. मैं०
दुष्ट विभावरस वामी, चार कर्म-रिपु-दल-दामी;
भवकष्ट हरो अम स्वामी, चिद्रस घोल घोल घोल. मैं०
अनंत ज्ञान दर्शन धामी, अनंत चरण-गुण-अभिरामी;
सादि अनंत पद गामी, जस नहि तोल तोल तोल. मैं०
१. नाव. २ उकाळो. ३ नूर ताकात.