Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पार न पावै सुरगुरु स्वामी, जिनगुनरत्नाकर नामी;
दीनदयाल आतमरामी, रंग रस ढोल ढोल ढोल. मैं०
आप हुए निज विशरामी, हम रहे संसार के भ्रामी;
म्हेर कर के दे दो स्वामी, शिववन मोल मोल मोल. मैं०
श्री गुरुवर सेवा कामी, तुज दासका स्वामी नामी;
मैं पावुं सदा निष्कामी, जिन रंग रोल रोल रोल. मैं०
श्री कुंथुनाथ जिनस्तवन
(रागवासुपूज्य विकासी, चंपाना वासी०)
कुंथुनाथजी प्यारा, प्राण आधारा, तारो भवोदधि पार;
सूर्यसुत सहारा, सुरमनोहारा स्वामी अमारा,
पाप अमाप संहार.
हस्तिनापुरना नामी स्वामी, श्रीनंदन....श्री......का......र;
महीमांही महिमा महा तारो, तारो तारणहा........र.......रे
संसार-सागर खारा, दुःखभंडारा, निजगुणहारा,
पामर पार उतार. कुंथुनाथजी०
षट खंड साधी थया छठ्ठा चक्री, नवनिधि ॠद्धि अपा.....र;
अभ्यंतर
षट-कर्मारि मारी, खटपट छोडी असा.....र......रे
सत्तरमा जिन धारा, संयम सारा आतम उजाळ्या,
जाणी अथिर संसार. कुंथुनाथजी०
१. श्रीमतीना सुपुत्र.

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केवल-कमला-विमला पामी, थापी तीरथ हितका.......र;
धर्मचक्रवर्ति थई नामी, तार्यां केई नरना.....र....रे
छागलंछनधारा, अजपदकारा, कर्मरजहारा,
काज अमारां सार. कुंथुनाथजी०
काल अनादिनी प्रीति विसारी, कीधो तें शिववधू प्या.......र;
सेवक भवअटवीमांही रझळ्यो, पाम्यो दुःख अपा....र.....रे
प्रभु दुःख हरनारा, सुख करनारा, सेवक तमारा,
मागे रत्नत्रयी सार. कुंथुनाथजी०
भक्तवत्सल भगवंत कहावो, आवो अमा.......री वा......र;
श्री जिनवर-पद
पंकज-भृंगनी, अरजी दिलमां धा....र...रे
सेवक-संकट-टारा मंगलकारा पायक प्यारा,
भक्त जीवन उद्धार. कुंथुनाथजी.
श्री नेमि जिनस्तवन
(रागपारेवडा जाजो वीराना देशमां)
ओ! पंखिडा! जाजे प्रभुना देशमां (२)
बोलजे हेजे संदेशमां.......ओ! पंखिडा०
श्यामजी सिधाव्या शिवनारीने कारणे;
गिरनार जेवा प्रदेशमां.....ओ! पंखिडा०
कहेजे के राजुलाए, कीधी छे बाधा;
जीववुं छे साधु वेशमां.....ओ! पंखिडा०
१ चरणरूपी कमळना भमरानी

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स्वामी नेमिनाथ तुंहि, आशरो छे मारे;
तारो मने त्यागना वेशमां....ओ ! पंखिडा०
मुक्त ब्रह्मचारी ए, दंपतिने प्रणमो,
संत कहे छे उपदेशमां........ओ! पंखिडा०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
ओ! पंखिडा जाजे विदेहना देशमां,
बोलजे हेजे संदेशमां.....ओ०
स्वामी बिराजे छे पूरण आनंदमां,
विदेह जेवा प्रदेशमां.......ओ०
कहेजे के तुम भक्तो भरते झूरे छे,
जीवे तुम दर्शन आशमां.......ओ०
कहेजे तुम भक्ते कीधी प्रतिज्ञा,
जीवे छे त्यागी वेशमां.......ओ०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
आटलो संदेशो चंदा जिनजीने कहेजो,
तेनो प्रत्युत्तर अमने देजो संदेशो चंदा जिनजीने कहेजो.
श्री सीमंधरस्वामी दूरे वसो छो,
वंदना स्वीकारी मारी लेजो.संदेशो चंदा०

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तुज पदपंकज मुज मनभृंग,
चित्तमां लाग्यो मजीठो रंगसंदेशो० चंदा०
तरणतारण प्रभु मुजने तारो,
तारक बिरुदने धरजोसंदेशो चंदा०
तुज विरहमां प्रभु टळवळतो देखी,
सेवकने झट तारी लेजो.संदेशो चंदा०
तुज सेवामां प्रभु देव छे कोडी,
एक मोकलजो आवे दोडी.संदेशो चंदा०
तो मुज आशा पूरण थाय,
आनंद मंगळ वरताय.संदेशो० चंदा०
देवाधिदेव तुं तो दीन-दयाळ,
हुं विनवुं बे कर जोड नाथ.संदेशो चंदा०
श्री वर्द्धमान जिनस्तवन
जय वर्द्धमान प्रभो, स्वामी जय वर्द्धमान प्रभो,
दास खडे हैं चरणकमलमें, नैया पार करो.....ओ जय०
काम क्रोध मद लोभ रहित स्वामी, तुम अंतरयामी;
भक्तजनों के तारणवाले, अति शुद्ध-वृत्ति गामी.....ओ०
देव देवियां सुरनर सारे, महिमा नित गावे;
आनंद मंगलाचार रहे मन, वांछित फल पावे....ओ....०

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रागद्वेष-मल रहित जिनेश्वर, हो केवलज्ञानी;
अधम उद्धारक सब सुखकारक, हो आतम ध्यानी....ओ०
अजर अमर अविकार निरंजन, पूरण उपकारी;
अविनाशी सच्चिदानंदघन, होते सुखकारी......ओ० जय०
श्री श्री राम स्वरूप तूही है, सबसे हितकारी;
आत्मज्ञानी-गुरु चरण-कमल पर, निशदिन बलिहारी..ओ०
श्री जिनस्तवन
आशा बांधी है जिनवर भवसागर तारोगे........(२)
तूटी है मोरी नैया, तुं हो जिनवर खेवैया;
मेरे लीये करमोंका, भंजन कर डालोगे.......आशा०
संसारको मेटनवाले, तुम बिन मोहे कोन संभाले;
तब ही मिलेगी मुक्ति, जब तुम मन आवोगे......आशा०
श्री जिनवर विनति मानो, शरणागत सेवक जानो;
दुःखियाको अपना करके, संकट सब टालोगे.......आशा०
श्री जिनस्तवन
जय अंतरयामी स्वामी जय अंतरयामी;
दुःखहारी सुखकारी प्रभु तुं, त्रिभुवन के स्वामी.....जय०

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नाथ निरंजन सब दुःखभंजन संतन आधारा,
पापनिकंदन भावी भंजन, संपति दातारा.....जय०
करुणासिंधु दयालु दयानिधि जयजय गुणधारी,
वांछित-पूरण श्रीजन सबजन, सबजन सुखकारी.....जय०
ज्ञान-प्रकाशी शीवपुरवासी अविनाशी अविकार,
अलख अगोचर त्रिभूमे अविचल, शिवरमणी भरथार..जय०
विमल कृतारथ कलमलहारक तुम हो दीनदयाल,
जय जय कारक तारक स्वामी, सत्त जीवन रक्षपाल.......जय०
नाम शिखावे पाप नशावे, चरनन शिरनावे,
पुनि पुनि अरज सुनावे सेवक, शिवकमला पावे.....जय०
श्री जिनस्तवन
महावीरस्वामी में क्या चाहता हूं,
फक्त आपका आशरा चाहता हुं;
मिली तुजको पदवी जो निरवान पददी हां,
जी तुज जैसा में भी हुवा चाहता हुं.....महावीर०
फसा हुं में चक्करमें आवागमनके हां,
के अब इसे होना रीहा चाहता हुं;
दयाकर दयाकर तुं मुझपे दयालु हां,
क्षमा चाहता हुं क्षमा चाहता हुं.....महावीर०

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बूरा हुं भला हुं अधम हुं के पापी हां,
दयाकर तुं मुझे के दया चाहता हुं.....महावीर०
श्री जिनस्तवन
त्रिशलाना जायानी लागी मने माया,
महावीरनां मीठां संभारणां,
वीर-प्रभु साथे में तो बांधी छे प्रीतडी,
दिलमां वसी गई मूरति अलबेलडी;
धरुं संयम केरा चीर......मीठां०
आतमानी ज्योत जेणे जगमां जगावी,
स्वपरना उद्धार काजे जींदगी वीतावी;
सागर समान गंभीर.....मीठां०
भजतां भावे भव कर्मो खपावे,
शिवलक्ष्मी सुख-संपद पावे,
उतारे भवजल तीर.....मीठां०
त्रिशलाना जायानी लागी मने माया.......महावीरनां०
श्री जिनस्तवन
एक ज हृदयना जानथी वरसो सुधी सेवा करी,
तारा चरण पासे हृदयना पुष्पनी सौरभ धरी;

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लाख संकट मस्तके, परवा छतां ए ना करी,
तारा ज दर्शन काज वीती जींदगी आंसुभरी;
दरशन आपो ओ प्रभुजी प्यारा दर्शन प्यासी आजे
बाल तुमारो.
राम तुंही छे श्याम तुंही छे, जगत-उद्धारक नाथ तुंही छे,
भवरणनो विसामो तुंही छे, तुं छे अमारो आरो.
दर्शन०
वीतराग केरी तुं प्रतिमा, तोये दया संचारशे,
निस्पृह देखुं आंख पण त्यां अमी केरी धार छे;
साकार देखुं बाह्यथी तोये तुं तो निराकार छे;
ज्ञेय तारा ज्ञानमां पण ज्ञान तुज स्वरूप छे;
कष्टो कापो ओ प्रभुजी व्हाला दुनिया पूजे आजे बाल तुमारो.द०
राम तुंही छे श्याम तुंही छे, जगत-उद्धारक नाथ तुंही छे,
भवरणनो विसामो तुंही छे, तुं छे अमारो आरो. दरशन०
श्री जिनस्तवन
भक्तिरसना भावभीना ए, भरभर प्याला पीलो;
सौ भरपूर प्याला पीलो.
समताभावे जिनदरशनना, अमृतपान करी लो;
सौ अमृतपान करी लो.

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काल अनादिना कर्मने छेदी, क्रोध मान मायाने भेदी;
चिद्-विश्वमां तत्त्वज्ञानना, महावीर पाठ पढी लो,
सौ० भक्तिरसना०
सागर खारा सलिल तुफानी, मळ्या हवे जिन खरा सुकानी;
भवसागर तरवा जो चाहो, नैया पार करी लो,
सौ० भक्तिरसना०
राजपाट सुख-संपद त्यागी, बन्या संयमी जिन वीतरागी;
त्यागवृत्तिना अजोड मंत्र ए, घटघट ध्यान धरी लो,
सौ० भक्तिरसना०
आतम-धर्मनुं मनन करीने, भावे वीरवचन दिल धरीने;
महावीर वधाई मंगल थावे, शिवलक्ष्मी सुख वरी लो,
सौ० भक्तिरसना०
श्री नंदीश्वर जिनस्तवन
नंदीश्वरजिनधामनी शोभा सारी,
हांरे बिंब रतनमयी वीतरागी;
हांरे जिहां बावन जिनमंदिर भारी,
हांरे सोहे (बिंब) एकसो आठ. (२) नंदी
अष्टाह्निका पर्व जगमें बहु रूडो,
हांरे तिहां ऊतरे देवोनां वृंदो;

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हांरे उत्तम द्रव्य लावीने आठो,
हांरे करता भावे पूजन (२) नंदी
रत्नमणि-दीपे आरति इंद्रो करता,
हारे वीणा ताल मृदंग स्वरे गाता;
हांरे विधविध भावे नृत्य करता,
हांरे गावे महिमा अचिंत्य (२) नंदी
सुवर्णपुरी तीर्थधाममां दास वसियो,
हांरे शाश्वत प्रतिमा दर्शननो रसियो;
हांरे जिनधाम निरखवा ऊलसियो,
हांरे क्यारे भेटुं जिनराज (२) नंदी
मांहोमांहे सहु देवेन्द्रो गान करता,
हांरे चालो चालो सहु मळी संगमां;
हांरे वंदन पूजन भक्ति करवा,
हांरे जईए नंदीश्वरधाम (२)
हांरे अहो अहो धन्य भाग्य (२) नंदी
श्री सीमंधर जिनस्तवन
मारा नाथनी वधाई आजे छे,
मारा स्वामीनी वधाई आजे छे;
एना शब्द गगनमां गाजे छे,
नारा नाथनी वधाई आजे छे.

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सीमंधर नाथनी वधाई आजे छे,
महाविदेही भरते पधार्या छे,
भव्य भक्तोनी अरजी स्वीकारी छे;
शासन-उन्नति आजे छे....मारा०
तुज सेवकनां हृदयो ऊलसे छे,
आजे अमृत वरसा वरसे छे;
दिव्यध्वनिना नादो गाजे छे......मारा०
आजे स्वर्गेथी देवदेवेन्द्रो आवे छे,
आवी भक्तिनी धून मचावे छे;
जिनराजनो जयकार गजावे छे...मारा०
प्रभु उपशम-रसमां म्हाले छे,
गुण रत्न मुद्रा सोहे छे;
निज स्वरूपानंदमां डोले छे......मारा०
तुज समवसरणे जे आवे छे,
तेनां सर्वे कार्यो सिद्ध थाये छे;
त्रिलोकीनाथनो प्रभाव ए गाजे छे...मारा०
प्रभु सेवक लळी पाय लागे छे,
तुज चरण सेवा आजे मागे छे;
सर्व वांछित वधाई आजे मागे छे,
कृपानाथ कृपा वरसावोने.....मारा०

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तारो प्रभाव त्रिभुवने गाजे छे,
मारा नाथनी वधाई आजे छे.
श्री वीश विरहमान जिनस्तवन
में वीश जिनवरको चित्तमें लगाकर डोलुं रे,
में प्रभु-भक्तिमें दिलको लगाकर बोलुं रे;
में वीश विहरमान गुण गाउं, में तुज चरणोंमें आउं,
में चित्त चित्तमें तुजको लगाकर डोलुं रे;
में तुज दर्शन बिन पाये कबहुं न छोडुं रे.....में वीश
में गणधरको नित वंदुं, में मुनिवरको नित ध्यावुं;
में नाथके ध्यानको धरके जिन जिन बोलुं रे,
में सुंदर भावको भजके अंतर खोलुं रे.......में वीश
में तुज चरणोमें रहेना चाहुं, में संपूरण सुख पाउं;
में तुज व्हाल व्हालकर चित्तको लगाकर डोलुं रे,
में तुज दर्शन बिन पाये कबहुं न छोडुं रे.....में वीश
श्री जिनस्तवन
आवो आवो जिनवर आवो, शांतिसुधारस पावो रे......आ०
जगतारकनुं बिरुद धरावो, दासने शीद तरसावो रे....आ०
अगणित अधमाधम उद्धार्या, मुजने कां विसरावो रे. आ०

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भक्त-वत्सल भगवान कहावो, सार्थक करो ए दावोरे. आ०
जगबंधु! तव शरणे आव्यो, दया दिलमां लावोरे. आ० ४
त्रिविध तापथी तप्त अंतर छे, कृपामृत वरसावोरे. आ०
निज गुणना पकवान बनाव्या, सम्यक्-सुखडी चखावोरे. आ०
तुज सेवकनी अरज उर धारो, ज्योत जिगरमां जगावोरे. अ०
श्री वीर जिनस्तवन
आ चैत्रत्रयोदशी आज छे सहु जय बोलो;
आ जन्मकल्याणक आज महावीरजीनी जय बोलो.
आ त्रिशलामाताना नंदन, जिणंदजीनो जय बोलो;
आ सिद्धारथ-नृपकुलचंद, महावीरजीनी जय बोलो.
प्रभु शासन उद्धारक जनमिया, सहु जय बोलो;
प्रभु तरणतारण जिनराज, महावीरजीनी जय बोलो.
प्रभु त्रीश वर्षे तप आदर्या, सहु जय बोलो;
वनवासे कर्युं आत्मध्यान, महावीरजीनी जय बोलो.
शुक्लध्याने उज्ज्वळता आदरी, सहु जय बोलो;
लीधा केवळज्ञान अखंड, महावीरजीनी जय बोलो.
प्रभु अनंतचतुष्टये राजता, सहु जय बोलो;
अनंत अनंत आनंद वेदनार, महावीरजीनी जय बोलो.

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दिव्य रचना भरी दिव्यध्वनि छूटी, सहु जय बोलो;
तर्या भव्य जीवो अनंत, महावीरजीनी जय बोलो.
तुज शासननो वृद्धिकाळ देखुं, सहु जय बोलो;
प्रगट्या तुज सुपुत्र कहान, गुरुजीनो जय बोलो.
सत् धर्मना दरिया वहाविया; सहु जय बोलो;
जेणे उछाळ्या आखा भारत, गुरुजीनो जय बोलो.
जेणे हलाव्या आखा हिंद, गुरुजीनो जय बोलो;
शासन-वृद्धि-दिन आजनो, सहु जय बोलो.
वधतां देखुं गुरुदेव, गुरुजीनो जय बोलो;
श्री जयवंत गुरुजीनो जय देखी सहु जय बोलो.
मारा वंदन हो अनंत, गुरुजीनो जय बोलो.
श्री जिनस्तवन
में प्रभु भक्तिमें चित्तको लगाकर डोलुं........रे
में हर्षभर जिनमंदिर आउं,
में जिनवरका गुण गाउं;
प्रभुजी तुज चरणोंमें फिर फिर शिर नमावुं.........रे
अहो परम शांत मुद्राका धारी,
प्रभु तुम दर्शन है आनंदकारी;
में भक्ति भर भर तेरे पूजनको आउं........रे

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प्रभु रत्नत्रयको देने वाले,
मुझ भव-आताप मिटाने वाले;
प्रभु में ज्ञान सुधाको लेकर पान करुं......रे
कनक थाळमें अर्घको लाउं,
फिर रत्न दीपककी ज्योत जगावुं;
में जिनेन्द्रपूजा अष्ट प्रकारे रचाउं......रे
जिन! तेरी महिमा कैसे गावुं,
तेरे चरणोंमें रहना चाहुं;
श्री जिनवरके चरणोंमें शिर झुकावुं.....रे
का’न गुरुवरके चरणोंमें शिर झुकावुं.......रे
श्री सीमंधरनाथ जिनस्तवन
मनमंदिर आवो रे, करुं एक विनतडी;
प्रभु सीमंधर जिणंदा रे, दास सामुं जुवो जरी.
नाथ भरते पधारो रे, भक्तो राह जोवे घणी;
अति दर्शन आशा रे, भावे करुं भक्ति भली.
क्षण क्षण तारा भक्तो रे, वाटलडी जोवे घणी;
आवो आवो प्रभुजी रे, मंदिरिये सीमंधर धणी.
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प्रभु (अम) विनति स्वीकारी रे, भरते भगवान विचरो;
दिव्यध्वनि सुणावी रे, सेवकने न्याल करो.
तारे असंख्य प्रदेशे रे, केवळज्ञानज्योति झळके;
वीतरागी जिणंदा रे, उपशमरस मुद्रा सोहे.
मारुं मन प्रभु तलसे रे, क्यारे नीरखुं विदेही धणी;
भक्ति भावे तुझने भेटुं रे, चरणे नमुं लळी लळी.
मारा मनमां होंश घणी रे, देवाधिदेव नीरखुं फरी;
नीरखी नीरखीने हरखुं रे, साक्षात् प्रभु सेव करी.
कुंदका’नना शिरछत्र रे, विनति प्रभु ध्याने धरी;
भगवंत भरते पधारो रे, बालक पर महेर करी.
श्री वीर जिनस्तवन
(लागी लगन म्हने तारी हो ललना, लागी०राग)
लागी लगन म्हने तारी हो जिनजी, लागी लगन म्हने तारी.
तुं त्रिभुवन उपगारी हो जिनजी, लागी लगन म्हने तारी.
अकल सकल अविचल अविनाशी,
निर्वृति-नगर निवासी हो जिनजी. लागी०
केवल ज्ञान अनंत प्रकाशी,
विशदानंद विलासी हो जिनजी. लागी०

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वर्णादिक पुद्गलथी विरंगी,
आकृति मुक्त अनंगी हो जिनजी. लागी०
वेद विवर्जित अरुह असंगी,
निरुपम निज गुणरंगी हो जिनजी. लागी० तुं०
नित्य निरंजन तुं निरुपाधि,
निर्बंधन निर्व्याधि हो जिनजी. लागी०
निर्मल ज्योति निरीह निराधि,
सहज स्वरूप समाधि हो जिनजी. लागी० तुं०
त्रिलोकपति जिनशासन स्वामी,
वर्द्धमान विशरामी हो जिनजी. लागी०
निःश्रेयस शिवसुख घननामी,
आपो अंतरजामी हो जिनजी. लागी० तुं०
श्री गुरुदेवस्तवन
माताने स्वप्नां लाध्यां ने झबकीने जाग्या उजमबा,
स्वप्नां ए मीठडां लाग्यां ने दुंदुभि वाग्या उजमबा.
जोयुं हृदयमां जागी ने नींदडी त्यागी उजमबा,
कुंखे आव्या छे वडभागी ने, भावठ भांगी उजमबा.
माताने उछरंग आव्यो ने, संदेशो सुणाव्यो उजमबा,
मातपिताने हर्ष न मायो, जोषीने तेडाव्यो उजमबा.

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जोषीए जोष एम जोयां ने, मनडां मोह्यां उजमबा;
कां कोई नगरीनो राया के जग-तारणहारो उजमबा.
मीठडां फळ एम सुण्यां ने, उछरंग आव्या उजमबा;
परम पुरुष ए जन्म्या ने, तेज उभराणां उजमबा.
तेज देखीने मात मोह्यां ने, का’न नाम राख्या उजमबा;
मातने कानुडा प्यारा के, अजब बाळ लीला उजमबा.
कहाने एवी बंसरी बजावी रे, आत्मनाद गजाव्या उजमबा;
थयो धर्म-धुरंधर धोरी के, जग तारणहारो उजमबा.
श्री गुरुदेवस्तवन
शासन उद्धारक प्रभु जन्मदिवस छे आजनो रे
सहु जन संगे हळीमळी महोत्सव करीए आज
मारा हृदये आज आनंदना उभरा वहे रे. शासन०
(साखी)
उमराळामां जनमीया उजमबा कुख नंद,
कहान तारुं नाम छे जगतवंद्य अनुप;
जयजयकार जगतमां थाये तुजने आज
महिमा तुज गुणनी हुं शी कहुं मुखथी साहिबा रे. शा०
ज्ञान-भानु प्रकाशियो झळक्यो जगत मोझार,
सागर अनुभव ज्ञाननो रेलाव्यो गुरुराज;

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विषम काळे वरस्यो अमृतनो वरसाद,
तारी भक्तितणो आल्हाद इच्छे इन्द्रोपति रे. शासन०
सीमंधर जिनराजना नंदन रूडा कहान,
ऊछळ्या सागर श्रुतना तुज आतम मोझार;
तारा जन्मे तो हलाव्युं आखा हिंदने रे,
पंचम काळे तारो अद्वितीय अवतार
सारा भरते तारो महिमा अखंड व्यापी रह्यो रे. शासन०
सेवा चरणकमळतणी इच्छुं निशदिन देव,
तुज चरण समीप रही, करीए आत्मकल्याण.
तारा गुण तणो महिमा छे अपरंपार
तारा जन्मे गगने देवदुंदुभि वागिया रे;
इंद्रो चंद्रो तारा जन्मदिवसने ऊजवे रे. शासन०
श्री गुरुदेवस्तवन
मारा नाथनी वधाई आजे छे;
मारा स्वामीनी वधाई आजे छे;
गुरुदेवनी वधाई आजे छे,
एना शब्द गगनमां गाजे छे......मारा०
वीरमार्ग-प्रवर्तक भरते गाजे छे,
धर्म-ध्वजनो डंको बजावे छे;
शासन उन्नत्ति आजे छे......मारा०

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मुमुक्षु हृदयो उल्लसे छे
आजे अमृत वरसा वरसे छे,
जैनशासननो जयकार गाजे छे....मारा०
आजे स्वर्गेथी भक्त देवो आवे छे,
आवी भक्तिनी धून मचावे छे,
गुरुराजनो जयकार गजावे छे....मारा०
वृक्षो ने वेलडीयो नाचे छे,
फळ फूल आजे पाय लागे छे;
गुरुभक्तिमां सहकार आपे छे...मारा०
अजोड संतनी वधाई वागे छे,
केसरी सिंहनी वधाई वागे छे;
ए तो गुणमां वधतो गाजे छे....मारा०
दिव्यध्वनिना रहस्यो जेणे खोल्यां छे,
शास्त्रना ऊंडा मर्म ऊकेल्या छे;
ए तो जगना तारणहार जाग्या छे..मारा०
प्रभु सेवक लळी पाय लागे छे,
आत्मलाभनी वधाई आजे मागे छे;
कृपानाथ कृपा वरसावे छे......मारा०