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उजमबा०
वीत्या वीत्या ते कांई बाळकाळ वीत्या, लागी धून आतमानी मांही....
उजमबा०
वैरागी कहाने त्याग ज लीधो, काढ्युं अलौकिक कांई.....
उजमबा०
पाक्या छे युगप्रधानी संत ए, सेवकने हरख न माय....
उजमबा०
एवा संतनी चरण सेवाथी, भवना आवे छे अंत.....
उजमबा०
पंचमकाळे अहो भाग्य खील्या छे, वंदन होजो अनंत.....
उजमबा०
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देशोदेश जयकार गजावी, पधार्या श्री प्रभु कहान रे; ध०
मीठो म्हेरामण आंगणे दीठो, श्री सद्गुरुदेव रे; धन्य०
सोळ कळाए सूर्य प्रकाश्यो, वरस्या अमृत मेह रे. धन्य०
सत्य स्वभावने बताववा प्रभु, अजोड जाग्यो तुं संत रे; ध०
अजब शक्ति प्रभु ताहरी देखी, इन्द्रो अति गुण गाय रे. ध०
श्री गुरुराजनी पधरामणीथी, आनंद अति उलसाय रे; ध०
मंदिर ने आ धामो अमारां, दीसे अति रसाळ रे. धन्य०
वृक्षो अने वेलडियो प्रभुजी, लळी लळी लागे पाय रे; ध०
फळ फूल आजे नीचा नमीने, पूजन करे प्रभु पाय रे. ध०
मोर ने पोपट सहु कहे, आवो आवोने कहानप्रभु देव रे; ध०
प्रभु चरणना स्पर्शथी आजे, भूमि अति हरखाय रे. ध०
रंकथी मांडी रायने प्रभु, आनंद आनंद थाय रे; धन्य०
देवो आजे वैमानथी ऊतरी, वधावे कहानप्रभु देव रे. ध०
श्री गुरुराजना पुनित चरणथी, सुवर्णपुरे जयकार रे; ध०
तीर्थधामनी शोभा अपार ज्यां, बिराजे देव
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जय जिनंद वरबोध नमस्ते, जय जिनंद जितक्रोध नमस्ते.
शिष्टाचार विशिष्ट नमस्ते, इष्ट मिष्ट उत्कृष्ट नमस्ते.
द्रग विशाल वरभाल नमस्ते, हृद-दयाल गुनमाल नमस्ते.
वीतराग विज्ञान नमस्ते, चिद्विलास धृत-ध्यान नमस्ते.
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मोहमहाचल भेद चली, जगकी जडता तप दूर करी है.
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ता शुचि शारद गंगनदी प्रति, मैं अंजुलिकर शीश धरी है.
श्री जिनकी धुनि दीपशिखासम जो नहिं होत प्रकाशनहारी,
तो किस भांति पदारथ पांति, कहां लहते, रहते अविचारी;
या विधि संत कहैं धनि हैं, धनि हैं जिनवैन बडे उपकारी.
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मेरे उर आरत जो वरतै, निहचै सब सो तुम जाना है;
अवलोक विथा मत मौन गहो, नहिं मेरा कहीं ठिकाना है,
हो राजिवलोचन सोचविमोचन, मैं तुमसौं हित ठाना है. श्री० १
जिननायक ही सब लायक हैं, सुखदायक छायक ज्ञानमही;
यह बात हमारे कान परी, तब आन तुमारी सरन गही;
क्यों मेरी बार विलंब करो, जिननाथ कहो वह बात सही. श्री०
काहूको नागनरेशपती, काहूको ॠद्धि निधाना है;
अब मोपर क्यों न कृपा करते, यह क्या अंधेर जमाना है,
इनसाफ करो मत देर करो, सुखवृंद भरो भगवाना है. श्री०
तुम ही समरत्थ न न्याव करो, तब बंदेका क्या चारा है;
खल घालक पालक बालकका नृपनीति यही जगसारा है;
तुम नीतिनिपुन त्रैलोकपती, तुमही लगि दौर हमारा है. श्री०
तुमरे ही शासनका स्वामी, हमको शरना सरधाना है;
जिनको तुमरी शरनागत है, तिनसौं जमराज डराना है;
यह सुजस तुम्हारे सांचेका, सब गावत वेद पुराना है. श्री०
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अघ छोटा मोटा नाशि तुरत सुख दिया तिन्हें मनमाना है;
पावकसों शीतल नीर किया और चीर बढा असमाना है,
भोजन था जिसके पास नहीं सो किया कुबेर समाना है. श्री०
तब दासनके सब दास यही, हमरे मनमें ठहराना है;
तुम भक्तनको सुरइंदपदी, फिर चक्रपतीपद पाना है,
क्या बात कहौं विस्तार बडी, वे पावैं मुक्ति ठिकाना है. श्री०
हो दीनबंधु करुणानिधान, अबलौं न मिटा वह खटका है;
जब जोग मिला शिवसाधनका तब विघन कर्मने हटका है,
तुम विघन हमारे दूर करो, सुख देहु निराकुल घटका है. श्री०
ज्यों सागर गोपदरूप किया, मैनाका संकट टारा है;
ज्यों शूलीतें सिंहासन औ, बेडीको काट विडारा है,
त्यों मेरा संकट दूर करो, प्रभु मोकूं आस तुम्हारा है. श्री०
ज्यों खड्ग कुसुमका माल किया, बालकका जहर उतारा है;
ज्यों सेठ विपत चकचूर पूर, घर लक्ष्मीसुख विस्तारा है,
त्यों मेरा संकट दूर करो प्रभु, मोकूं आस तुम्हारा है.
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चिन्मूरति आप अनंतगुनी, नित शुद्धदशा शिवथाना है;
तद्दपि भक्तनकी भीड हरो, सुख देत तिन्हें जु सुहाना है,
यह शक्ति अचिंत तुम्हारीका, क्या पावै पार सयाना है.
श्री०
वरदान दया जस कीरतका, तिहुँ लोक धुजा फहराना है;
कमलाधरजी! कमलाकरजी, करिये कमला अमलाना है,
अब मेरी विथा अवलोकि रमापति, रंच न बार लगाना है.
श्री०
उदयागत कर्मविपाक हलाहल, मोह विथा विस्तारी है;
ज्यों आप और भवि जीवनकी, ततकाल विथा निरवारी है,
त्यों ‘वृंदावन’ यह अर्ज करै, प्रभु आज हमारी बारी है.
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