तात जासु मेघराय मंगला सु कही माय,
नगरी अजोध्याके अनेक गुण गाईये.
ध्वजापै विराजै गज पेखे पाप जाय भज,
त्रिकोटनकी महिमा देखे न अघाईये.
तिहूं लोकमध्य इस अतिशै चौतीस लसै,
ऐसे जगदीश ‘भैया’ भलीभांति ध्याईये. ८
(९) श्री सूरप्रभ जिन – स्तुति
(सिंहावलोकन छप्पय)
सूरप्रभ अरहंत, हंत करमादिक कीन्हें,
कीन्हें निज सम जीव, जीव बहु तार सु दीन्हें;
दीन्हें रवि पदवास, वास विजयामहि जाको,
जाको तात सुनाग, नाग भय माने ताको,
ताको अनंतबलज्ञानधर, धर भद्रा अवतार जी;
जिहं भावधारि भवि सेवहीं, वहि नरिंद लहि मुक्तश्री. ९
(१०) श्री विशाल जिन – स्तुति
(सवैया)
नाथ विशाल तात विजयापति, विजयावति जननी जिनकी,
धन्य सु देश जहां जिन उपजे, पुंडरगिरि नगरी तिनकी;
लच्छन इंदु बसहि प्रभु पायें, गिनै तहां कोन सुरगनकी,
मुनिराज कहै भविजीव तरे, सो है महिमा महीमें इनकी. १०
स्तवन मंजरी ][ ८९