पंथ वहै जहँ साधु चलै, सब चेतनकी चरचा चित्त लैये,
पंथ वहै जहँ आप विराजत, लोक अलोकके इश जु गैये;
पंथ वहै परमान चिदानंद, जाके चलैं भव भूल न ऐये,
पंथ वहै जहँ मोक्षको मारग, सूधे चले शिवलोकमें जैये. २
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श्री जिनवर – स्तुति
(सवैया)
केवलीके ज्ञानमें प्रमाण आन सब भासै,
लोक औ अलोकन की जेती कछु बात है;
अतीत काल भई है अनागतमें होयगी,
वर्तमान समैकी विदित यों विख्यात है;
चेतन अचेतनके भाव विद्यमान सबै,
एक ही समैमें जो अनंत होत जात है;
ऐसी कछु ज्ञानकी विशुद्धता विशेष बनी,
ताको धनी यहै हंस कैसें विललात है. १
छ्यानवे हजार नार छिनकमें दीनी छार,
अरे मन ता निहार काहे तू डरत है;
छहों खंडकी विभूति छांडत न बेर कीन्ही,
चमू चतुरंगनसों नेह न धरत है;
नौ निधान आदि जे चउदह रतन त्याग,
देह सेती नेह तोर वन विचरत है.
११० ][ श्री जिनेन्द्र