चारित्रधाम चित् चमत्कार, चरनातमरूपी चिदाकार;
निर्वाचक निर्मम निराधार, निरजोग निरंजन निराकार. २३
निरभोग निरास्रव निराहार, नगनरकनिवारी निर्विकार;
आतमा अनक्षर अमरजाद, अक्षर अबंध अक्षय अनाद. २४
आगत अनुकम्पामय अडोल, अशरीरी अनुभूती अलोल;
विश्वंभर विस्मय विश्वटेक, व्रजभूषण व्रजनायक विवेक. २५
छलभंजन छायक छीनमोह, मेधापति अकलेवर अकोह;
अद्रौह अविग्रह अग अरंक, अद्भुतनिधि करुणापति अबंक. २६
सुखराशि दयानिधि शीलपुंज, करुणासमुद्र करुणाप्रप्रुंज;
वज्रोपम व्यवसायी शिवस्थ, निश्चल विमुक्त ध्रुव सुथिर सुस्थ. २७
जिननायक जिनकुंजर जिनेश, गुणपुंज गुणाकर मंगलेश;
क्षेमंकर अपद अनन्तपानि, सुखपुंजशील कुलशील खानि. २८
करुणारसभोगी भवकुठार, कुषिवत कृशानु दारन तुसार;
कैतवरिपु अकल कलानिधान, धिषणाधिप ध्याता ध्यानवान. २९
(दोहा)
१छपाकरोपम छलरहित, छेत्रपाल छेत्रज्ञ;
अंतरिक्षवत गगनवत्, हुतकर्मा कृतयज्ञ. ३०
(पद्धरि छन्द)
लोकांत लोकप्रभु लुप्तसमुद्र, संवर सुखधारी सुखसमुद्र;
शिवरसी गूढरूपी गरिष्ट, बलरूप बोधदायक वरिष्ट. ३१
विद्यापति धीधव विगतवाम, धीवंत विनायक वीतकाम;
धीरस्व शिलीद्रम शीलमूल, लीलाविलास जिन शारदूल. ३२
१. चंद्रोपम.
११८ ][ श्री जिनेन्द्र