जाणी सर्व जनो समक्ष क्षणमां आपी महा मंत्रने;
कीधो श्री धरणेन्द्र ने भव थकी तार्या घणा भव्यने,
आपो पार्श्वजिनेन्द्र नाशरहिता सेवा तमारी मने.
मारा चित्तचकोरने जिन तमे छो पूर्ण चंद्र प्रभु;
पाम्यो छुं पशुता तजी सुरपणुं हुं आपना धर्मथी,
रक्षो श्री महावीरदेव मुजने पापी महा कर्मथी.
शुभ लगनेजी ज्योतिष चक्र ते संचरे;
जिन जनम्याजी जेणे अवसर माता धरे,
तेणे अवसरजी इंद्रासन पण थरहरे.