अच्युअपति तिहां हुकम कीनो, देव कोडाकोडीने,
जिन मंजनारथ नीर लावो, सर्व सुर कर जोडीने;
पुत्र तुमारो धणी हमारो तरणतारण जहाज रे,
माता जतन करीने राखजो तुम सुत अम आधार रे. ५
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श्री भक्तामर स्तोत्र
(मानतुंगस्वामी रचित श्री ॠषभदेवस्तुतिनो गुजराती अनुवाद)
(राग – वसंततिलका)
भक्तामरो खचित ताज-मणिप्रभाना,
उद्योतकर, हर पापतमो जथाना;
आधाररूप भव-सागरना जनोने,
एवा युगादि प्रभु पादयुगे नमीने. १
कीधी स्तुति सकल-शास्त्रज-तत्त्वबोधे,
पामेल बुद्धिपटुथी सुरलोकनाथे;
त्रैलोक चित्तहर चारु उदार स्तोत्रे,
हुंये खरे स्तवीश आदि जिनेंद्रने ते. २
बुद्धि विना ज सुरपूजित-पादपीठ!
में प्रेरी बुद्धि स्तुतिमां तजी लाज शुद्ध;
लेवा शिशु विण जळे स्थित चंद्रबिंब,
इच्छा करे ज सहसा जन कोण अन्य. ३
स्तवन मंजरी ][ ११