Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 18 of 438
PDF/HTML Page 36 of 456

 

background image
ते ऊगता रविसमी बहु छे छतांये,
रात्रि जीते शीतल चंद्र समान तेजे. ३४
जे स्वर्ग-मोक्षसम मार्ग ज शोधी आपे,
सद्धर्म तत्त्वकथवे पटु त्रण लोके;
दिव्यध्वनि तुज थतो विशदार्थ सर्व,
भाषा-स्वभाव-परिणाम गुणोथी युक्त. ३५
खीलेल हेम-कमळो सम कांतिवाळा,
फेली रहेल नख-तेज थकी रूपाळा;
एवा जिनेंद्र तुम पाद डगो भरे छे,
त्यां कल्पना कमळनी विबुधो करे छे. ३६
एवी जिनेंद्र थई जे विभूति तमोने,
धर्मोपदेश समये नहि ते बीजाने;
जेवी प्रभा तिमिरहारी रवि तणी छे,
तेवी प्रकाशित ग्रहोनी कदी बनी छे? ३७
व्हेता मदे मलिन चंचळ शिर तेवो,
गुंजारवे भ्रमरना बहु क्रोधी एवो;
ऐरावते तुलित उद्धत हाथी सामे,
आवेल जोई तुम आश्रित भो न पामे. ३८
भेदी गजेंद्र शिर श्वेत रुधिरवाळा,
मोती समूह थकी भूमि दीपावी एवा;
१८ ][ श्री जिनेन्द्र