Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सुरपुष्पवृष्टि
रे! चोपासे विमुख डिटडे मात्र शाने पडे छे,
वृष्टि भारी सुरकुसुमनी? हे विभु! चित्र ए छे!
वा त्हारा रे! दरशन पथे प्राप्त थातां ज निश्चे,
मुनीशा हे! सुमनगणनां बंधनो जाय नीचे. २०
दिव्यध्वनि
स्थाने छे आ गंभीर हृदयाब्धि थकी उद्भवेली,
त्हारी वाणी तणी पीयूषता छे जनोए कथेली;
तेने पीने पर प्रमदना संगभागी विरामे,
निश्चे भव्यो अजरअमराभावने शीघ्र पामे. २१
चामर
हे स्वामिश्री! अति दूर नमी ने ऊंचे ऊछळंता,
मानुं शुचि सुरचमरना वृंद आवुं वदंता
‘‘जेओ एही यतिपति प्रति रे! प्रणामो करे छे,
‘‘निश्चे तेओ उरध गतिने शुद्धभावे लहे छे.’’ २२
सिंहासन
बिराजेला कनक-मणिना शुभ्र सिंहासने ने
ह्यां गर्जंता गंभीर गिरथी, नीलवर्णा तमोने;
उत्कंठाथी भविजनरूपी मोरलाओ निहाळे,
सुवर्णाद्रि शिखरपर जाणे नवो मेघ भाळे! २३
स्तवन मंजरी ][ २५