❋ सुरपुष्पवृष्टि ❋
रे! चोपासे विमुख डिटडे मात्र शाने पडे छे,
वृष्टि भारी सुरकुसुमनी? हे विभु! चित्र ए छे!
वा त्हारा रे! दरशन पथे प्राप्त थातां ज निश्चे,
मुनीशा हे! सुमनगणनां बंधनो जाय नीचे. २०
❋ दिव्यध्वनि ❋
स्थाने छे आ गंभीर हृदयाब्धि थकी उद्भवेली,
त्हारी वाणी तणी पीयूषता छे जनोए कथेली;
तेने पीने पर प्रमदना संगभागी विरामे,
निश्चे भव्यो अजरअमराभावने शीघ्र पामे. २१
❋ चामर ❋
हे स्वामिश्री! अति दूर नमी ने ऊंचे ऊछळंता,
मानुं शुचि सुरचमरना वृंद आवुं वदंता —
‘‘जेओ एही यतिपति प्रति रे! प्रणामो करे छे,
‘‘निश्चे तेओ उरध गतिने शुद्धभावे लहे छे.’’ २२
❋ सिंहासन ❋
बिराजेला कनक-मणिना शुभ्र सिंहासने ने
ह्यां गर्जंता गंभीर गिरथी, नीलवर्णा तमोने;
उत्कंठाथी भविजनरूपी मोरलाओ निहाळे,
सुवर्णाद्रि शिखरपर जाणे नवो मेघ भाळे! २३
स्तवन मंजरी ][ २५