❋ भामंडल ❋
ऊंचे जाता तुज नील प्रभामंडलेथी विलोक!
पत्रो केरी द्युति थकी थयो हीन अत्रे अशोक;
वा नीरागी! भगवन! वळी आपना सन्निधाने,
नीरागिता नहि अहीं कियो चेतनावंत पामे? २४
❋ देवदुंदुभि ❋
‘‘भो भो भव्यो अवधूणी तमारा प्रमादो सहु ने,
आवी सेवो शिवपुरीतणा सार्थवाह प्रभुने,’’
मानुं आवुं त्रण जगतने देव! निवेदनारो,
व्यापी व्योमे गरजत अति देवदुंदुभि तारो. २५
❋ छत्रत्रय ❋
तारा द्वारा सकल भुवनो आ प्रकाशित थातां,
तारा वृंदो सहित शशि आ स्वाधिकारे हणातां,
मौक्तिकोना गणयुत उघाडेल त्रि छत्र ब्हाने,
आव्यो पासे त्रिविध तनुने धारी निश्चे ज जाणे! २६
त्रिलोकोने बहु बहु भरी पिंडरूपी थयेला,
जाणे कांति-प्रतप-यशना संचथी निज केरा;
माणिक्यो ने कनक रजते ए रचेला गढोथी,
विभासे छे भगवन अहो! तुंही सर्वे दिशोथी. २७
२६ ][ श्री जिनेन्द्र