Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भामंडल
ऊंचे जाता तुज नील प्रभामंडलेथी विलोक!
पत्रो केरी द्युति थकी थयो हीन अत्रे अशोक;
वा नीरागी! भगवन! वळी आपना सन्निधाने,
नीरागिता नहि अहीं कियो चेतनावंत पामे? २४
देवदुंदुभि
‘‘भो भो भव्यो अवधूणी तमारा प्रमादो सहु ने,
आवी सेवो शिवपुरीतणा सार्थवाह प्रभुने,’’
मानुं आवुं त्रण जगतने देव! निवेदनारो,
व्यापी व्योमे गरजत अति देवदुंदुभि तारो. २५
छत्रत्रय
तारा द्वारा सकल भुवनो आ प्रकाशित थातां,
तारा वृंदो सहित शशि आ स्वाधिकारे हणातां,
मौक्तिकोना गणयुत उघाडेल त्रि छत्र ब्हाने,
आव्यो पासे त्रिविध तनुने धारी निश्चे ज जाणे! २६
त्रिलोकोने बहु बहु भरी पिंडरूपी थयेला,
जाणे कांति-प्रतप-यशना संचथी निज केरा;
माणिक्यो ने कनक रजते ए रचेला गढोथी,
विभासे छे भगवन अहो! तुंही सर्वे दिशोथी. २७
२६ ][ श्री जिनेन्द्र