Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पार्श्वप्रभु स्तुति
जन्माब्धिथी विमुख वरते तोय तुं जिनराज!
तारे छे जे स्वपीठपर लागेल प्राणीसमाज;
ते तुं पार्थिवनिरूपने युक्त निश्चे ज अत्रे,
तुं आश्चर्य! प्रभु! करमविपाक विहीन वर्ते!! २८
तुं विश्वेशो दुरगत छतां लोकरक्षी कहावे!
वा स्वामी! तुं अलिपि तदपि अक्षर स्वस्वभावे!
अज्ञानीमां तम महिं नकी सर्वदा को प्रकार,
ज्ञान स्फुरे त्रण जगतने हेतु उद्योतनार! २९
कमठासुरना उपसर्ग
व्याप्या जेणे अति अति महा भार द्वारा नभोने,
उडाडी’ती शठ कमठडे रोषथी जे रजोने;
तेथी छाया पण तम तणी ना हणाणी जिनेश!
दुरात्मा एह ज रज थकी ते ग्रसायो हताश. ३०
ज्यां गर्जता प्रबळ घनना ओघथी अभ्र भीम,
विद्युत त्रूटे मुसल सम ज्यां घोर धारा असीम;
दैत्ये एवुं ज दुस्तर वारि अरे! मुक्त कीधुं,
तेनुं तेथी ज दुस्तरवारि थयुं कार्य सीधुं. ३१
छूटा केशोथी विकृतिरूपी जे धरे मुंडमाला,
ने जेना रे! भयद मुखथी नीकळे अग्निज्वाला;
स्तवन मंजरी ][ २७