विकुर्व्यो जे प्रभु! तम प्रति एहवो प्रेतवृंद,
ते तो तेने भवभव थयो संसृति दुःखकंद. ३२
(वसंततिलकावृत्त)
❋ छे धन्य त्हारा भक्तने ❋
छे धन्य ते ज अवनी महिं जेह प्राणी;
त्रिसंध्य तेज पद भुवननाथ नाणी!
आराधता विधिथी कार्य बीजां फगावी,
रोमांच भक्ति थकी अंग महिं धरावी. ३३
❋ ना सुण्यो कदि में तने ❋
मानुं अपार भवसागरमां जिनेश !
तुं कर्णगोचर मने न थयो ज लेश;
सुण्या पछी तुज सुनाम पुनित मंत्र,
आवे कने विपद-नागण शुं ? भदंत ! ३४
❋ ना पूज्यो कदि में तने ❋
जन्मांतरेय जिन! वांच्छित दानदक्ष,
पूज्या न में तुज पदोरूप कल्पवृक्ष,
आ जन्ममां हृदयमंथि पराभवोनो,
निवास हुं थई पड्यो, इश मुनिओना! ३५
❋ ना दीठो कदि में तने ❋
में मोहतिमिरथी आवृत्त नेत्रवाळे,
पूर्वे तने न निरख्यो नकी एक वारे,
२८ ][ श्री जिनेन्द्र